छत्तीसगढ़

निगम के जोन-5 में जोन-3 की तरह फर्जीवाड़े का अंदेशा

Admin2
20 May 2021 6:12 AM GMT
निगम के जोन-5 में जोन-3 की तरह फर्जीवाड़े का अंदेशा
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रायपुर

ज़ोन 3 में हुए घोटाले के बावजूद निगम अधिकारी सबक नहीं लिए

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। निगम के जोन-5 में जोन-3 की तरह फर्जीवाड़े का अंदेशा नजर आ रहा है। जिस प्रकार से कर्मचारी उपस्थित रहते हैं, उससे ऐसा लग रहा है कहीं जोन-5 में भी वेतन घोटाला न हो जाए। रायपुर नगर निगम के जोन तीन अंतर्गत हुए वेतन घोटाले में सिविल लाइन पुलिस थाना में जोन कमिश्नरों का बयान दर्ज कर आरोपितों के खिलाफ एफ आई आर तो हो गया है और जेल भी पहुंच गए हैं। जोन कमिश्नरों के बयान में जो तथ्य सामने आए थे, वे काफी चौंकाने वाले थे । आरोपित गंगाराम सिन्हा आरटीजीएस के दौरान अतिरिक्त नाम जोड़कर अपने रिश्तेदार के खाते में पैसा भेज देता था। वह पांच लोगों के खाते में आरटीजीएस के माध्यम से पैसे भेजता था। इतने बड़े घोटाले के बावजूद नगर निगम के अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नगर निगम में एक और वेतन घोटाला होने का अंदेशा है।

जानकारी के मुताबिक जोन 5 में कम से कम 8से 10 ऐसे कर्मचारी है जिनका नाम हाजिरी के वक्त पुकारा ही नहीं जाता और वेतन उनके नाम से ट्रांसफर हो रहा है इससे दीनदयाल उपाध्याय नगर में सफाई कर्मचारी घोटाला साफ नजऱ आ रहा है। हाजिरी दरोगा जो विगत कई सालो से इसी ज़ोन में कब्ज़ा जमाये बैठा है, उसके द्वारा ऐसे कर्मचारियों का नाम लिया जाता है जो उपस्थित नहीं रहते एवं कई नाम ऐसे हैं जिनकी पुकार होती नहीं और वेतन उनके खाते में ट्रांसफर हो जाता है। पिछले दिनों ज़ोन तीन में हुए वेतन घोटाले से निगम अधिकारी सबक नहीं लिए हैं ऐसा मालूम पड़ता है। तभी तो हाथ में हाथ धरे बैठे हैं। और किसी बड़े घोटाले का इंतज़ार कर रहे हैं। ज़ोन में पदस्थ अधिकारियो को इसकी भनक तक नहीं लगती। निगम प्रशासन को संज्ञान में लेकर तत्काल इसकी जाँच करनी चाहिए ताकि बड़ा घोटाला होने से बचा जा सके।

इनके कार्यकाल में हुआ था घोटाला

सिविल लाइन पुलिस के बयान में सामने आया था कि वर्ष 2017-18 में जोन-3 में कमिश्नर के रूप में महेन्द्र कुमार पाठक पदस्थ थे। सर्वप्रथम इनके कार्यकाल में आरोपित गंगा प्रसाद सिन्हा ने अपनी पत्नी का नाम जोड़कर सबसे पहले एक लाख 16 हजार रुपये निकाले थे। ज़ोन कमिश्नर को इसकी जानकारी नहीं होने से आरोपी का हौसला बुलंद हुआ और अपना कारनामा दिखाने लगा। उसके बाद जोन कमिश्नर के रूप में रमेश जायसवाल पदस्थ हुए इनके कार्यकाल में बेटे और साले का नाम जोड़ा तथा तीसरे नंबर पर अरूण साहू जोन कमिश्नर हुए इनके कार्यकाल में नेहा परवीन की मां और बहन का नाम जोड़कर करीब 21 लाख रुपये निकाले गए। अंतिम में प्रवीण सिंह गहलोत का कार्यकाल रहा उन्हें भी इसकी भनक नहीं लगी और आरोपित का खेल लगातार जारी रहा।

ज़ोन 3 जैसा मामला ज़ोन 5 में होने की चर्चा

घोटाले का मास्टर माइंड गंगा प्रसाद सिन्हा जोन-3 में तृतीय श्रेणी में पदस्थ था । वह कंप्यूटर आपरेटर के साथ मिलकर वर्ष 2016 से अलग-अलग खाते जिसमें गंगा की पत्नी देवकुमारी सिन्हा, बेटा शुभम सिन्हा और साले अशोक सिन्हा के अलावा कंप्यूटर आपरेटर नेहा परवीन की मां और दोनों बहनों के नाम पर नगर निगम का पैसा आरटीजीएस करता था। उसने करीब 71 लाख रुपये ट्रांसफर किया है।इस बीच कई ज़ोन कमिश्नर आए गए किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। नगर निगम में लेखा अधिकारी श्रीमती रूही परवीन की सजगता से आरोपी पकडे गए वर्ना आरोपी करोडो रूपये गबन कर चुका होता।

सिविल लाइन पुलिस के मुताबिक आरोपियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर गिरफ्तार भी कर लिया गया है लेकिन इसके बावजूद ज़ोन पांच में भी इसी प्रकार का वेतन घोटाले की तयारी चल रही है। इस सम्बन्ध में जोन कमिश्नर चन्दन शर्मा से बात हुई उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण दफ्तर में आना जाना कम हो रहा है, सारे अधिकारी कर्मचारी कोविड ड्यूटी में हैं। मै चेक करवाता हूँ।

निगम के अधिकारी बेपरवाह

पूर्व में हुए जोन तीन में हुए वेतन घोटाला भी अधिकारियो की लापरवाही या उदासीनता कहा जाय या अधिकारियो की मिलीभगत भी कहा जा सकता है। तभी तो ज़ोन में पदस्थ अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगती थी। आरोपित जितने लोगों के खाते में आरटीजीएस करता था उनका एटीएम कार्ड अपने पास रखता था। जिन पांच खाते में पैसा डालता था उसमें तीन उसके रिश्तेदार और दो कंप्यूटर आपरेटर के घर वाले थे । आरोपित गंगाराम द्वारा इसके बदले में कम्प्यूटर ऑपरेटर नेहा परवीन को प्रतिमाह 15 हजार रुपये देने की बात सामने आई थी, क्या अधिकारियो को भी कुछ हिस्सा तो नहीं पहुँचता था । निगम से मिली जानकारी के अनुसार जोन-3 में करीब 252 कर्मचारी काम करते थे। सभी कर्मचारियों का वेतन आरटीजीएस के माध्यम से सीधे खाते में जाता था। कर्मचारियों के खाते में पैसा ट्रांसफर करने से पहले स्थापना लिपिक फिर आडिटर उसके बाद एकाउंटेंट के बाद जोन कमिश्नर के हस्ताक्षर के बाद कर्मचारियों के खाते में वेतन जाता था। इस बीच वह एकाउंटेंट से मिलकर 252 की जगह संख्या बढ़ा देता था और किसी को भनक तक नहीं लगती थी। जिससे कर्मचारियों के साथ ही आरोपित द्वारा दिए गये खाते में भी पैसा चला जाता था और वह आसानी से पैसा निकाल लेता था। आरोपित पिछले चार सालों से ऐसा कर रहा था।

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