छत्तीसगढ़
पिता ने लिवर देकर बचाई बेटी की जान: 6 महीने की बच्ची का हुआ लिवर ट्रांसप्लांट
Deepa Sahu
29 July 2021 6:56 PM GMT
x
जब निराशा के बादल चारों तरफ से घेर लें, तब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए
रायपुर। जब निराशा के बादल चारों तरफ से घेर लें, तब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए. उम्मीद की रोशनी अंधियारे को चीरती हुई, जिन्दगी में उजाले जरूर लाती है. कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ रायपुर के लव सिन्हा और उनकी पत्नी सीमा सिन्हा के साथ जब उन्हें पता चला कि उनकी 6 महीने की बच्ची (वजन सिर्फ 5 किग्रा) एक ऐसी बीमारी से ग्रसित है. जिसे बिलारी अत्रेसिआ कहते हैं. यह बीमारी बच्चों में जन्मजात होती है. इसमें पित्त की नलियां ब्लॉक होने की वजह से पीलिया बढ़ता जाता है और लिवर क्षतिग्रस्त होने लगता है. मात्र 4-6 महीने में ही मृत्यु भी हो सकती है.
दंपत्ति अपनी बच्ची को कई अस्पतालों में गए, लेकिन कहीं से भी राहत न मिली. बच्ची की हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी, लेकिन पिता ने हार नहीं मानी. आखिर में ये लोग बच्ची को लेकर रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल पहुंचे, जहां डॉ. अजीत मिश्रा ने परीक्षण के बाद पाया की बच्ची को बिलारी अत्रेसिआ नामक लिवर की एक गंभीर बीमारी है. बच्ची के पास सिर्फ 1 या 2 महीने का ही वक्त है. ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है. पिता ने तुरंत एक कठिन निर्णय लिया और बच्ची को अपने लिवर का एक हिस्सा देने का फैसला किया. फिर अस्पताल के डॉयरेक्टर डॉ. संदीप दवे के मार्गदर्शन में इस ऑपरेशन को एक मिशन का रूप दिया गया.डॉ. मोहम्मद अब्दुन नईम और डॉ. अजीत मिश्रा की टीम ने इस जटिल ऑपरेशन को 8 से 9 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद सफलतापूर्वक संपन्न किया. यह ऑपरेशन मध्यभारत का पहला ऐसा ऑपरेशन है. जिसमें इतनी कम उम्र की बच्ची का लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से पहले उन्हें लगा कि वो अपनी बच्ची को नहीं बचा पाएंगे, लेकिन अस्पताल प्रबंधन और छत्तीसगढ़ सरकार के संयुक्त प्रयास, सहयोग से यह कार्य सफल हुआ. इसमें परिवार का कुछ भी खर्च नहीं लगा.
अस्पताल के एम. डी. डॉ. संदीप दबे ने बताया कि यह बीमारी छत्तीसगढ़ और आसपास के क्षेत्र में काफी आम बात है, लेकिन जागरूकता न होने की वजह से लोग इसे समझ नहीं पाते और न ही सही ढंग से इलाज करा पाते हैं, जो लोग खर्च से डरते हैं, उन्हें ये नहीं पता कि सरकारी योजनाओं के तहत कम या न्यूनतम खर्च पर भी इलाज संभव है. उन्होंने इस दंपत्ति की भी सराहना की, क्योंकि राज्य में एक 6 माह की बच्ची को बचाने पहली बार कोई दपत्ति आगे आया, ऐसी भावना और साहस बेटी बचाओं के सिद्धांतों पर खरी उतरती है. इस ऑपरेशन को सफल बनाने में हॉस्पिटल के विभिन्न विभागों की टीम का सहयोग रहा है. जिसमें जनरल सर्जरी विभाग से डॉ. विक्रम शर्मा, गैस्ट्रो विभाग से डॉ. संदीप पांडे, डॉ. ललित निहाल, पीडियाट्रिक विभाग से डॉ. पवन जैन, डॉ. राकेश सिंग, क्रिटिकल केयर विभाग से डॉ. विशाल कुमार, डॉ. धर्मेश, डॉ. अभिषेक, निश्चेतना विभाग से डॉ. शैलेन्द्र बक्शी, डॉ. सर्वेश लाल, डॉ. राजकुमार, डॉ. वचन, डॉ. युक्ताश एवं नर्सिंग विभाग व टीम का अहम योगदान रहा.
Next Story