छत्तीसगढ़

बेटे को कस्टडी में लेने हाईकोर्ट पहुंचा पिता, याचिका खारिज

Nilmani Pal
26 Dec 2022 11:39 AM GMT
बेटे को कस्टडी में लेने हाईकोर्ट पहुंचा पिता, याचिका खारिज
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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाई. एक फैसले में कहा है कि पिता अपने नाबालिग बेटे का प्राकृतिक अभिभावक है लेकिन वह कस्टडी के मुद्दे पर सदैव उसके पक्ष में फैसला नहीं किया जा सकता। मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले कि सही ठहराया है जिसमें बच्चे की कस्टडी में देने के पिता के आवेदन को खारिज कर दिया गया है। पिता ने हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट की धारा 6 के तहत अपने 9 बेटे की कस्टडी पाने के लिए फैमिली कोर्ट में आवेदन लगाया था, जो अपने नाना के साथ रहता है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 (1) के तहत पिता का आवेदन खारिज कर दिया।

अपीलकर्ता पिता ने कहा कि 15 वर्ष पहले उसका विवाह हुआ था। विवाह के बाद उसका बेटा पैदा हुआ। बाद में पत्नी की रीढ़ की हड्डी टूट गई और वह उसकी देखभाल करता रहा। सन् 2014 में वह घर छोडक़र मायके चली गई और अनुरोध के बाद भी वापस आने से इंकार कर दिया। पत्नी ने भरण-पोषण के लिए कोर्ट में आवेदन लगाया था, जिस पर 2000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश भी हुआ था। इस बीच उसका देहांत हो गया। तब कोर्ट ने पिता को कानूनी रूप से कस्टडी में रखने की अनुमति दी।

इस पर पिता ने फैमिली कोर्ट में बच्चे को अपने पास रखने के लिए आवेदन लगाया। उसने कहा कि वह बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है, जिसके नाते वह कानूनी रूप से उसकी कस्टडी का अधिकार रखता है। पिता ने यह भी दलील दी कि वह आर्थिक रूप से सक्षम है, जिससे बच्चे की वह अच्छी तरह देखभाल कर सकता है। बच्चे को पिता के स्नेह और प्यार से वंचित रखना उचित नहीं है। फैमिली कोर्ट में आवेदन खारिज होने के बाद आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की गई। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में प्रतिवादी नाना की ओर से कहा गया कि बच्चे की मां की मौत आवेदक की शारीरिक कू्ररता की वजह से हुई है। मायके आने के बाद वह कभी भी बच्चे को देखने के लिए नहीं आया। न ही बच्चे के दादा-दादी ने कभी बच्चे का हालचाल जानना चाहा। इस बीच आवेदक ने दूसरी शादी भी कर ली है। डिवीजन बेंच ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में दोहराया है कि बच्चे के कल्याण को माता-पिता के अधिकारों के ऊपर प्राथमिकता दी जाए। अपीलकर्ता की दूसरी शादी उसे बच्चे की कस्टडी से वंचित नहीं करता लेकिन निर्णय लेते समय यह ध्यान देने का एक कारण हो सकता है। अपीलकर्ता न तो बच्चे से कभी मिलने गया न ही उसके बारे में कोई पूछताछ की। इसलिए, पिता को सिर्फ प्राकृतिक अभिभावक होने के कारण बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती। बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुए अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने पिता को छूट दी है कि वह माह में एक बार फैमिली कोर्ट में आकर बच्चे से मिल सकता है साथ ही 15 दिन में एक बार फोन से बात कर सकता है।

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