रायपुर। मोदी सरकार षड्यंत्रकारी तरीके से न्याय मांग रहे देश के अन्नदाता किसानों को थकाने और झुकाने की साजिश कर रही है। काले कानून खत्म करने की बजाय 40 दिन से मीटिंग-मीटिंग खेल रहे हैं तथा किसानों को तारीख पर तारीख दे रही है। 73 साल के देश के इतिहास में ऐसी निर्दयी व निष्ठुर सरकार कभी नहीं बनी, जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी व अंग्रेजों के जुल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। 40 दिन से अधिक लाखों अन्नदाता दिल्ली की सीमाओं पर काले कानून खत्म करने की गुहार लगा रहे हैं। हाड़ कंपकपाती सर्दी बारिश व ओलो में 60 से अधिक किसानों ने दम तोड़ दिया। देश का दुर्भाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मुंह से आज तक किसानों के प्रति सांत्वना का एक शब्द नहीं निकला। साफ है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार 60 किसानों की कुर्बानी के लिए जिम्मेदार है।
ये लड़ाई किसानों की आजीविका और सरकार की अवसरवादिता की है।
ये लड़ाई किसानों की खुद्दारी और सरकार की खुदगर्जी के बीच है।
ये लड़ाई किसानों की बेबसी और सरकार की बर्बरता की है।
ये लड़ाई सत्ता के सिंहासन पर मदमस्त सरकार और न्याय मांगते सड़क पर बैठे किसानों के बीच है।
ये लड़ाई दीया और तूफान की है।
किसान देश की उम्मीदों का दीप है और सरकार पूंजीपतियों के हित के लिए देश का सब कुछ तबाह कर देने वाला तूफान। कमाल यह है कि 73 साल में यह देश की पहली सरकार है जो अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा देश के अन्नदाताओं को कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट चले जाओ। सरकार को जनता ने चुना है। फिर उसी जनता और अन्नदाता को सरकार कहीं और क्यों भेजना चाहती है? यह तीनों विवादास्पद कृषि कानून सुप्रीम कोर्ट ने नहीं बनाए हैं। संसद में जबरन मोदी सरकार ने बनाए हैं। किस तरह बनाएं पूरे देश ने देखा था। फिर सरकार अपनी जिम्मेदारी कोर्ट की तरफ क्यों टाल कर रही है? नीतिगत फैसले लेने के लिए कौन जवाबदेह है?
भारतीय संविधान में कानून बनाने की जिम्मेदारी कोर्ट को नहीं दी, संसद को दी है। यदि सरकार अपनी जिम्मेदारी संभालने में असक्षम है तो मोदी सरकार को 1 मिनट भी सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने निर्णय किया है कि किसानों के समर्थन में हर प्रांतीय हेड क्वार्टर पर कांग्रेस पार्टी 15 जनवरी को किसान अधिकार दिवस के रूप में एक जन आंदोलन करेगी। रैली और धरने के बाद राजभवन तक जाकर सरकार को तीनों काले कानून खत्म करने के लिए गुहार लगाएंगे। समय आ गया है कि मोदी सरकार देश के अन्नदाता की चेतावनी को समझे क्योंकि अब देश का किसान काले कानून खत्म करवाने के लिए करो या मरो की राह पर चल पड़ा है।