खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग में चल रही हेराफेरी और भारी भ्रष्टाचार नकली सिरप और दवा का खेल
रायपुर। विगत दिनों नकली दवाई जब्त होने जाने के उपरांत विभाग की मिली भगत से दवाई गायब , खाली पुट्ठा जब्ती कराया गया. इस कारनामें की जानकारी पुलिस विभाग को अब तक नहीं है. या किसी स्तर पर किसी पुलिस अधिकारी को मालूम होने पर भी इसमें मुक्कामल जांच नहीं की. ये आरोप दवाई विक्रेताओं से जुड़े बड़े-बड़े जानकर लोग मेडिकल काम्प्लेक्स में पाए जा रहे है. फेंक पैसा , पी पानी उसमे है काहे की आना कानी, ये कहावत को विभाग खुले तौर पे चरितार्थ कर रहा है. जांच को प्रभावित करने हेतु नकली दवाओं की जब्ती गायब करने के लिए करोड़ों की लेनदेन किए जाने की खबर है. शासन की सभी योजनाओं को और सीएम की मनशाओं को भारी धक्का और बदनामी का तमंगा पहनाने में विभाग पीछे नहीं है. खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग आम जनता के भलाई के लिये है, लेकिन यहां कार्यरत अधिकारी/कर्मचारी विभाग का उपयोग अपने फायदे एवं अवैध कमायी का जरिया बना कर रखे हैं। जैसे...विभाग में पूर्व में 16 औषधि निरीक्षक पदस्थ थे बिलासपुर नसबंदी कांड के बाद थोक के भाव में औषधि निरीक्षकों की भर्ती 112 पदों पर हुयी है और पूर्व में पदस्थ 16 औषधि निरीक्षकों को पदोन्नत कर सहायक औषधि नियंत्रक बनाया गया है।
लेकिन 112 औषधि निरीक्षकों की भर्ती करने से विभाग या शासन को कोई भी फायदा नहीं हुआ उल्टा शासन का पैसा इनको वेतन देकर लाखों रूपये का नुकसान हो रहा है पहले भी एक जिले में एक औषधि निरीक्षक द्वारा कार्य / कार्यवाही किया जाता था उतना ही थोक के भाव में भर्ती होने के बाद भी हो रहा है थोक के भाव में औषधि निरीक्षकों होने से मेडीकल व्यवसायी परेशान हो रहे हैं पहले साल में एक बार देना निरीक्षण के एवज में रिश्वत देना पड़ता है अब हर 2-3 महीने में देना पड़ता है पहले से दुगुना सहायक औषधि नियंत्रक एवं औषधि निरीक्षक के नाम से। विगत कई वर्षो से खाद्य औषधी विभाग को भष्ट्राचार की चरम सीमा पर पहुंचाया गया और इंसानियत के नाम पर कलंकित किया जा रहा है. चाहे नशे की दवा हो या नकली दवाई सभी मामले में खुले आम सौदेबाजी कर छग की जनता को नकली दवाई और नशा परोसा जा रहा है. इससे छग शासन की और सीएम की इमेज को भारी धक्का पहुंचाया जा रहा है. मुख्यमंत्री इस मामले को संज्ञान में लेकर गहरी जाँच कराकर तत्काल नोटिस जारी करना चाहिए। एक होलसेल दवा विक्रेता ने जो पूर्व में विक्रेता संघ के पदाधिकारी रहे उन्होंने (नाम नहीं छापने के शर्त में बताया) मुख्यमंत्री भुपेश बघेल से जनता से रिश्ता के माध्यम से अपील की है.
घर बैठे निरीक्षण
वही औषधि निरीक्षक द्वारा फर्म का निरीक्षण फर्म के बैठे-बैठे किया जाता है। औषधि निरीक्षकों द्वारा दौरा हेतु मालिक से इंस्पेक्शन बुक मंगा कर आफिस / घर पर मोटर सायकल से अनुमति हेतु अनुमति मांगा गया है. क्या शासन को ऐसे घुसखोर औषधि निरीक्षकों को यात्रा भत्ता दिया जाना न्यायसंगत होगा। साथ ही सहायक औषधि नियंत्रक जिनको प्रशासनिक अनुभव नहीं होता को मुख्यालय में स्थापना प्रभारी अधिकारी बनाया गया है जिन्हें केवल घुसखोरी के अलावा और कुछ नहीं आता है उनकी श्रीमती रायपुर जिले में औषधि निरीक्षक के द्वारा औषधि फर्म वालों को सीधे धमकी दी जाती है कि घूस दो नहीं लायसेंस नहीं मिलेगा, फर्म पर कार्यवाही होगी क्योंकि मेरे पति ही लायसेंस जारी करते हैं।
घूसखोरी के रेट इस प्रकार है-
नये औषधि अनुज्ञप्ति दर - पच्चीस हजार से पैंतालीस हजार तक
स्थल परिवर्तन दर - पच्चीस हजार से पैंतालीस हजार तक
संविधान परिवर्तन दर = पच्चीस हजार से पैंतालीस हजार तक
फर्म का निरीक्षण दर - पांच हजार से दस हजार तक
लायसेंस नवीनीकरण - पांच हजार से पंद्रह हजार तक
फार्मासिस्ट परिवर्तन - पांच हजार से पंद्रह हजार तक
फर्म फार्मासिस्ट नहीं पाये जानें या नकली दवाई की स्टॉक रिकार्ड सही नहीं पाये जाने पर रेट लाखों रूपये तक पहुंच जाती है।
सहायक औषधि नियंत्रकों/औषधि निरीक्षकों द्वारा किराये के फार्मासिस्ट वाले फर्मों का औषधि लायसेंस जारी किया जाता है जो उनके लिये अवैध वसूली का जरिया होता है क्योंकि किराये के फार्मासिस्ट को 30 हजार से 40 हजार सालाना के दर से किराये पर फार्मासिस्ट लिया जाता है इस तरह देखें तो फार्मासिस्ट को तीन हजार से कम पड़ता है इससे ज्यादा तो दिहाड़ी मजदूर कमा लेता है तो फार्मासिस्ट का दुकान पर बैठने का सवाल ही नहीं उठता। किराये के फार्मासिस्ट वाला धंधा में रोक लगाने के लिये जो फार्मासिस्ट है वहीं दुकान का मालिक हो इस स्थिति में औषधि अनुज्ञप्ति जारी किया जाना चाहिये।
औषधि निरीक्षक/खाद्य सुरक्षा अधिकारी निरीक्षण के बहाने घर पर या अपने निजी कार्य निपटाते हैं कार्यालयों में दौरा कार्यक्रम के लिये कोई रजिस्टर नहीं होता और तो और कार्यालय के कर्मचारियों को कोई सूचना नहीं होता है कि दौरे पर हैं या घर पर हैं।
नवीन जिलों में पदस्थ अधिकारी/कर्मचारी अपने मुख्यालय में निवास नहीं करते और डेली अप-डाउन करते हैं जो अपने मनमर्जी से सुबह 11.00 - 11.30 बजे तक आते हैं और भोजन अवकाश के बाद कार्यालय से गायब हो जाते हैं।