छत्तीसगढ़

पत्रकारिता को कलंकित कर रहे फर्जी पत्रकार, न्यूज वेब-पोर्टल पर लगे लगाम

Admin2
24 March 2021 5:55 AM GMT
पत्रकारिता को कलंकित कर रहे फर्जी पत्रकार, न्यूज वेब-पोर्टल पर लगे लगाम
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प्रदेश स्तर पर न्यूज पोर्टलों के लिए कड़े कानून की जरूरत, डीपीआर तय करे मापदंड

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। प्रदेश में न्यूज वेब पोर्टल की आड़ में व्लैकमेलिंग और अवैध वसूली की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। अनाधिकृत और कुकुरमुत्ते की तरह उग आए वेब पोर्टलों पर सरकार द्वारा कारगर रोक नहीं लगाने तथा न्यूज पोर्टलों को सरकारी विज्ञापन की सुविधा मिलने से इसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। स्वतंत्र पत्रकारिता के नाम पर वेब पोर्टल की आड़ में तथाकथित पत्रकार अवैध उगाही और ब्लैकमेलिंग के जरिए मोटी कमाई का रास्ता ढूंढते हैं। लोग इसे शार्टकट से कमाई का जरिया बनाने लगे हैं। बिलासपुर से संचालित एक न्यूज पोर्टल से संचालकों द्वारा मुंगेली के एक रेंजर से एक करोड़ से ज्यादा वसूली के मामले में कुछ दिन पहले ही एक महिला सहित दो पत्रकार पकड़े गए थे। अब राजधानी में ही एक वेबपोर्टल से जुड़े तीन पत्रकार पुलिस के हत्थे चढ़े हैं। हैरानी की बात यह है कि पकड़े गए पत्रकारों में एक ऐसा पत्रकार भी शामिल है जो देश के सबसे बड़े न्यूज चैनल का राज्य ब्यूरो रह चूका है। स्थापित तथा बड़े संस्थानों में काम कर चूके पत्रकार का अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग में संलिप्त होना पत्रकारिता के गिरते स्तर को दर्शाता है। यही नहीं कुछ संस्थाएं न्यूज वेबसाइट्स के नाम पर विदेशों से भी फंडिंग कर रहे हैं। ऐसे ही आरोप में हालहि में दिल्ली की एक न्यूज पोर्टल के दफ्तर और उससे जुड़े पत्रकारों के घरों में प्रवर्तन निदेशालय ने छापे की कार्रवाई की थी। छत्तीसगढ़ में भी लगभग 45 हजार न्यूज पोर्टल और वेबसाइट्स रजिस्टर हैं जिनमें से लगभग 100 न्यूज पोर्टल्स को राज्य सरकार के संबंधित विभाग ने शार्टलिस्ट कर इंम्पेनलिस्ट किया है। जिन्हें सरकारी विज्ञापन की पात्रता मिली हुई है। इनमें से ज्यादा तर किसी भी अखबार की वेबसाइट नहीं है और इनका आरएनआई नहीं है।

न्यूज पोर्टल की आड़ में वसूली-ब्लैकमेलिंग

प्रदेश में भाजपा सरकार से जुड़े और उपकृत अधिकारी-नेताओं ने शार्टकट कमाई का नया रास्ता निकाल लिया है। सरकार में बैठे नेताओं और मंत्रियों के चहेतों के साथ पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के मुंह लगे अधिकारी और नेताओं को विभाग में बैठे अधिकारी सरकार के जनसंपर्क फंड को लुटाने के लिए वेबपोर्टलों के रुप में नया रास्ता दे दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी ऊपरी कमाई का जरिया बनाए रखने के लिए नेताओं और अधिकारियों के बेटे-बेटियों को वेबपोर्टल शुरू करने की सलाह देकर पत्रकार बनाकर बिना मेहनत के कम खर्च में लाखों कमाने का जरिया दे दिया है। इनपेनलमेंट कमेटी में शामिल लोगों को भी नहीं मालूम की वेबपोर्टल का आरएनआई में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। सरकारी विज्ञापन की बाध्यता भी प्रिंट मीडिया की तरह नहीं है। फिर भी मनमर्जी से वेबपोर्टल को धड़ाधड़ लाखों के विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं। अखबार में 60-40 के रेसो के साथ प्रसार संख्या के आधार पर विज्ञापन दिया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उल्टा खेल चल रहा है। प्रदेश में दौड़ रहे अधिकांश वेबपोर्टल आरएनआई में न रजिस्टर्ड है और न ही गूगल एनालेस्टिक में उनकी गुणवत्ता क्राइटेरिया में है, फिर भी पोर्टलवालों को सरकार में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों का एक वर्ग लाभ पहुंचा रहे है। परिणाम प्रदेश में कुकुरमुत्ते की तरह वेबपोर्टल मोबाइल पर चल रहे है। जिसे देखिए वही मार्केट में कम्प्यूटर आईटी इंजीनियरों और साफ्टवेयर का काम करने वालों से 5 से 15 हजार में वेबपोर्टल बनाकर सरकार से हर महीने 50 से एक लाख तक विज्ञापन लेकर सरकारी धन डकार रहे हंै।

एक नाम पर 40-50 डोमिन

न्यूज पोर्टल की प्रदेश में ऐसी दुकानदारी चल रही है कि लोगों ने इससे लाभ कमाने के एक नाम पर ही कई-कई डोमिन रजिस्टर करा ली है। इसमें से कुछ संचालन स्वयं कर रहें बाकि को दूसरे लोगंों के माध्यम से संचालित करवा रहे हैं ताकि सरकार से ज्यादा विज्ञापन और अधिकारियों-ठेकेदारों से भी ज्यादा वसूली की जा सके। इस तरह के न्यूज पोर्टल संचालित करने वालों में ज्यादातर राजनीतिक दलों, सरकार और संबंधित विभाग के अधिकारियों के नजदीकी और उनसे जुड़े हुए लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं कई अवैध गतिविधियों और कारोबारों लिप्त लोगों के साथ उद्योगपति और रियल स्टेट से जुड़े लोग भी न्यूज पोर्टल संचालित कर रहे हैं।

पत्रकारों की प्रतिष्ठा हो रही धूमिल

न्यूज पोर्टल के लिए किसी तरह की पात्रता या अनिवार्यता से संबंधित मापदंड नहीं होने से अखबार की तरह ही कोई भी व्यक्ति एक वेबसाइट बनाकर न्यूज पोर्टल संचालित कर लेता है। अखबारों-चैनलों से जुड़े पत्रकारों के साथ स्वतंत्र पत्राकारिता करने वाले इसे अपना माध्यम तो बना ही रहे हैं। बड़े उद्योगपति, बिल्डर, कारोबारियों के अलावा छुटभैय्ये नेता और अपराध से जुड़े लोग भी न्यूजपोर्टल चला रहे हैं। जेल में बंद अपराधी भी अपने परिजनों-गुर्गो के सहयोग से न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। न्यूज पोर्टलों की बाढ़ से आम पत्रकारों की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। न्यूज पोर्टल चलाने वाले तथाकथित पत्रकार वास्तविक पत्रकारों को भी नहीं बख्शते और पांच-दस हजार में पत्रकार तैयार करने की बात कहकर मजाक भी उड़ाते हैं। ऐसे न्यूज पोर्टलों को सरकार और उसके संबंधित विभाग भी उपकृत कर रहा है जिससे ऐसे पचासों न्यूज पोर्टल रोज पैदा हो रहे हैं।

न्यूज पोर्टल के लिए मापदंड जरूरी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने की खातिर दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं ताकि सरकार की ऑनलाइन पहुंच को कारगर बनाया जा सके और एक बयान भी दिया जिसमे यहां कहा गया कि दिशानिर्देशों का उद्देश्य सरकारी विज्ञापनों को रणनीतिक रूप से हर महीने सर्वाधिक विशिष्ट उपयोगकर्ताओं वाले वेबसाइटों पर डालकर उनकी दृश्यता बढ़ाना है। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा। हालांकि विदेशी कंपनियों के स्वामित्व वाली वेबसाइट को इस स्थिति में सूचीबद्ध किया जाएगा कि उन कंपनियों का शाखा कार्यालय भारत में कम से कम एक साल से पंजीकृत हो एवं संचालन कर रहा हो। पत्रकारिता हो रही कलंकित मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। व्यवस्थागत कमियों को दूर करने की पहल के साथ समाज और लोकहित में शोषितों-वंचितों और पीडि़तों के लिए आवाज उठाना पत्रकारिता का धर्म है, लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। मीडिया भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है। लोग इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगे हैं। पत्रकार भी अब पत्रकार नहीं रहा। स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले जहां अखबार, न्यूज पोर्टल की आड़ में आर्थिक लाभ के रास्ते तलाशते रहते हैं वहीं बड़े-बड़े बैनर्स, अखबार और न्यूज चैनल से संबद्ध पत्रकारों को संस्थानों ने पत्रकार की जगह समाचार संकलक और लाइजनर बना दिया है। जिन्हें ये विशेषज्ञता हासिल नहीं है उनकी पत्रकारिता ही संकट में है। अब न्यूज पोर्टलों को माध्यम बनाकर कोई भी आदमी पत्रकारिता के आड़ में व्यवसाय के साथ ब्लेमेलिंग और धौंस दिखाकर वसूली जैसा कृत्य कर रहे हैं। राज्य सरकार को भी सभी वेबपोर्टल की निगरानी केे लिए कदम उठाने चाहिए। प्रदेश में भी उन्हीं न्यूज वेबपोर्टल को अनुमति मिलनी चाहिए जो किसी न किसी प्रिंट अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया से संबंधित हो, वहीं स्वतंत्र वेबपोर्टल के लिए आरएनआई अथवा डीपीआर में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अवैध गतिविधियों में संलिप्त वेबपोर्टल को ब्लैकलिस्ट कर उसका रजिस्ट्रेशन निलंबित करने के अलावा ब्लैकलिस्ट कर उसकी सरकारी सुविधा व मान्यता खत्म करने की कार्रवाई की जानी चाहिए।

अवैध वसूली के आरोपी पत्रकार भेजे गए जेल

इधर राजधानी के एक रेस्टोरेंट संचालक से अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को माना पुलिस ने मंगलवार को कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। उल्लेखनीय है कि एक आरोपी बड़े न्यूज चैनल का राज्य ब्यूरो रह चूका है। उसके खिलाफ पुलिस ने सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप अलग से भी मामला दर्ज किया है। पुलिस ने केस डायरी में कोर्ट को बताया था कि उक्त आरोपी के मोबाइल में नक्सली पर्चा भी मिला है। कोर्ट ने उसके आफिस और घर की तलाशी के लिए सर्च वारंट भी जारी किया है।

आपको बता दें कि माना थाना पुलिस ने पिछले दिनों होटल संचालक से ब्लैकमेलिंग और पैसा उगाही के मामले में तीन पत्रकारों को गिरफ्तार किया था जिसके बाद माना थाना प्रभारी ने मुख्य आरोपी सुनील नामदेव के घर जाकर उसकी गिरफ्तारी की जिसका विरोध करते हुए सुनील नामदेव ने टीआई के साथ गाली गलौज की और जान से मरने की धमकी देने लगा जिस पर टीआई ने खुद अपने ही थाने में सुनील की एफआईआर लिखवाई। पत्रकारिता जगत के लिए पिछले दो सालों में वेबपोर्टलों में अनेक समस्याएं खड़ी कर दी है। हर रोज धौंस-धपट के साथ अवैध वसूली की खबरों ने पत्रकारिता जगत को कलंकित कर दिया है। जनता से रिश्ता लगातार इस तरह की घटना को शासन -प्रशासन के संज्ञान में लाने की लगातार कोशिश करते रहे है। जनता से रिश्ता की खबर पर रोज पुलिस की कार्रवाई से सच की मुहर लग रही है।

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता में किसी खबर को छपवाने अथवा खबर को छपने से रूकवाने का अगर कोई व्यक्ति दावा करता है और इसके एवज में रकम वसूलता है तो इसकी तत्काल जानकारी अखबार प्रवंधन और पुलिस को देवें और प्रलोभन में आने से बचें। जनता से रिश्ता खबरों को लेकर कोई समझोता नहीं करता, हमारा टैग ही है-

जो दिखेगा, वो छपेगा...

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