बाजार में करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदारी नकली उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति रोकने में सरकारी एजेंसिया फेल, सख्त कानून की जरूरत
सरकार बनाए सख्त कानून
होता यह है कि आज लोग जानते हैं कि सस्ता और उनकी पहुंच का उत्पाद अमुक शहर में कहां पर मिलेगा। यह जानकारी ऐसी नहीं है कि कपंनियों या सरकार को न पता हो, पर इस पर रोकथाम कौन करे, यही समस्या का मूल कारण है। कभी पकड़े भी जाते हैं तो अधिकांश मामले पुलिस को ले-दे कर सुलटा लिए जाते हैं। ऐसे में सरकार को इस संबंध में सख्त कानून बनाने होंगे, कड़ी सजा के प्रावधान करने होंगे और उत्पादकों को भी बाजार पर नजर रखनी होगी तभी आम आदमी को नकली उत्पादों से राहत और सरकार का राजस्व बढ़ सकेगा। हमें भी खरीदारी करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नकली उत्पाद हमारे लिए हानिकारक हैं।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। इन दिनों बाजार नकली उपभोक्ता वस्तुओं से कराह रहा है। इससे उत्पादक कंपनियां तो घाटा उठा ही रही हैं, उपभोक्ता भी ठगी के शिकार हो रहे हैं और सरकारें राजस्व से वंचित हो रही हैं। खुली अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता वस्तुओं की सभी के लिए सहज पहुंच के साथ ही नकली उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार चुनौती बनता जा रहा है। उद्योगपतियों के संगठन एसोचैम के एक सर्वे के अनुसार 2016 में देश में जाली उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार 2500 करोड़ रुपए था। पिछले पांच सालों में यह आंकड़ा लगभग दुगुना हो गया है।
ऐसोचैम का कहना है कि नकली उत्पादों के बाजार को बढऩे से रोकने के लिए सरकार को सुधारात्मक उपाय लागू करने होंगे। इसके लिए बौद्धिक संपदा प्रवर्तन के साथ ही कानूनी और न्यायिक ढांचे की खामियों को भी दूर करना होगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदारी नकली उपभोक्ता वस्तुओं की बाजार में देखने को मिल रही है। माना जा रहा है कि इंटरनेट और ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से नकली विलासिता वस्तुओं का बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है। विभिन्न चैनलों पर भी ऑनलाइन शॉपिंग के विज्ञापन प्रमुखता से लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं। लगभग सभी डीटीएच संचालकों द्वारा ऑनलाइन कंपनियों से जुड़े चैनलों को प्रमुखता से दिखाया जाता है और तत्काल आर्डर देने पर छूट के नाम पर धड़ल्ले से आर्डर प्राप्त कर लेते हैं। फिर चैनलों पर इसे आकर्षक तरीके से उत्पादों को प्रदर्शित किया जाता है कि लोग प्रभावित हो जाते हैं और बिना सोचे समझे ऑर्डर दे देते हैं।
एक समय जिन्हें विलासिता की वस्तुएं माना जाता था, आज उन्हें जरूरत के रूप में देखा जाने लगा है। इन वस्तुओं की पहुंच सभी वर्ग के लोगों तक आसानी से हो गई है। मोबाइल, कूलर, फ्रिज, टीवी और इसी तरह की वस्तुएं अब लोगों की जरूरत की चीज हो गई हैं। वाशिंग मशीन, ओवन, ओटीजी, मिक्सी, रेडिमेड वस्त्र, नकली ज्यूलरी, इलेक्ट्रिक आइटम आदि से बाजार अटा पड़ा है। एक कमरे के मकान में रहने वालों के लिए भी यह चीजें आम हैं। सामान्य और मध्य वर्ग के परिवारों में भी घर के सदस्यों के पास एक से अधिक सिम के मोबाइल हंै। अब तो एंड्राइड फोन भी आम हो रहे हैं।
इसे गलत भी नहीं माना जा सकता। लोगों के जीवन स्तर में सुधार होना अच्छा है। पर परेशानी का कारण नकली उपभोक्ता वस्तुओं से बाजार का अटा होना है। इन वस्तुओं का टिकाऊपन कम होने के कारण देश में तेजी से इ-कचरा बढ़ रहा है।
कार्रवाई के लिए सरकारी एजेंसियां पुलिस पर निर्भर
आमतौर पर राज्यों में खाद्य एवं औषधि प्रशासन व उपभोक्ता संरक्षण विभाग बाजारों में उपलब्ध उत्पादों की गुणवत्ता व विश्वसनीयता जांचने का काम करते हैं लेकिन कार्रवाई के लिए ये एजेंसियां भी पुलिस पर ही निर्भर रहती हैं। ये एजेंसियां कभी कभी जांच के लिए दुकानों-गोदामों में दबिश देती हैं और खानापूर्ति करती हैं। ज्यादातर मामले पहले कार्रवाई पुलिस ही करती है जो व्यापारी संगठनों और रसूखदारों के दबाव में ज्यादातर मामलों को थाने से निपटा देती है ऐसे में नकली उत्पाद के मामलों में शिकायतों और जप्तियों के मामले में उचित कार्रवाई नहीं हो पाती। इससे नकली उत्पाद बेचने और बनाने वाले दोनों ही बच जाते हैं और सेंटिग से ही अपना कारोबार चलाते हैं।
बड़ी कंपनियों को ध्यान देने की जरूरत
नकली वस्तुओं के बिकने की एक बड़ी वजह होती है उनका सस्ता होना। इस बात को बड़ी कंपनियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। अगर वे अपने उत्पादों को सस्ता कर दें तो काफी-हद तक नकली बाजार से छुट्टी पाई जा सकती है। इसके साथ ही उत्पादकों और सरकार को बाजार पर भी नजर रखनी होगी। नकली उत्पादों की बिक्री पर सख्ती के साथ ही ऐसे प्रयास किए जाने होंगे कि विक्रेता इस तरह के उत्पाद रखने से बचने का प्रयास करे।
ऑनलाइन शॉपिंग में 33त्न ग्राहकों को मिलते हैं नकली उत्पाद
ऑनलाइन शॉपिंग में नकली उत्पादों का खतरा बढ़ रहा है. हाल में दो सर्वे में पता लगा है कि कई ई-कॉमर्स कंपनियों की वेबसाइट से एक-तिहाई से ज्यादा ग्राहकों तक नकली उत्पाद पहुंच रहे हैं। ग्राहकों में से 38फीसदी को ऑनलाइन शॉपिंग में नकली उत्पाद मिले। कई ग्राहकों का कहना है कि ई-कॉमर्स साईट पर उन्हें परफ्यूम और खुशबू वाले अन्य उत्पाद के मामले में नकली सामान भेजे जाते हैं. इसके अलावा जूते, खेल के सामान और फैशन अपैरल-बैग आदि खरीदने वालों को भी नकली सामान की आपूर्ति की जाती है। नकली सामान सिर्फ ग्राहकों के लिए ही नुकसान का सबब नहीं हैं, बल्कि ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए टैक्स के हिसाब से भी ये दिक्कत पैदा कर सकते हैं। ग्राहकों का कहना है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को न सिर्फ सामान वापस लेने को कहा जाना चाहिए, बल्कि नकली सामान के मामले में जुर्माने के साथ रकम वापस होनी चाहिए।
ऑनलाइन कंपनियों की ठगी से बचने के लिए इन बातों पर ध्यान जरुरी
ज्यादातर नकली उत्पाद कमजोर रेटिंग वाली वेबसाइट बेच रही हैं. इनका बेस विदेश में है. आप भरोसेमंद वेबसाइट से ही शॉपिंग करें।
जिस वेबसाइट से सामान खरीद रहे हैं, उसका लुक एंड फील आपको कैसा लगता है? कंपनी की रिटर्न पॉलिसी क्या है? विक्रेता का पता और फोन नंबर है? अगर ये जानकारियां नहीं हैं तो ऐसी वेबसाइट से शॉपिंग करने से बचें।
वेबसाइट पर उत्पाद की तस्वीर की क्वालिटी कैसी है? अगर लो-पिक्सल की फोटो है तो आपको शक करना चाहिए।
जिस कंपनी का उत्पाद खरीद रहे हैं, पता करें कि वह ऑनलाइन सामान बेचती भी है या नहीं. अगर आप इन कंपनियों के उत्पाद वेबसाइट पर कम कीमत में देखते हैं तो डील आकर्षक लगती है और आप उसे खरीद लेते हैं. इससे बचें।
सामान की कीमत पर ध्यान दें. अगर यह आपको दूसरी जगह से या बाजार के हिसाब से बहुत सस्ता मिल रहा है तो आपको इस पर शक करना चाहिए. ऑनलाइन खरीदने पर उत्पाद थोड़ा सस्ता मिल सकता है, लेकिन उसकी कीमत में जमीन-आसमान का अंतर नहीं हो सकता।
हर उत्पाद एक विशेष सीरियल नंबर के साथ आता है. जिस कंपनी का सामान है, उसे फोन करके या उसकी वेबसाइट से यह पता करें कि उत्पाद असली है या नहीं।
सामान बेचने वाले की रेटिंग पर गौर करें. कई वेबसाइट रेटिंग और उन लोगों के कमेंट साइट पर डालती हैं, जिन्होंने उस विक्रेता से सामान खरीदा है. अगर इनमें असंतुष्ट लोग ज्यादा हैं तो समझें कुछ गड़बड़ है।
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