छत्तीसगढ़

आंखें भी होती हैं किसी के दिल की जुबां, कोशिश कीजिये जनाब इन्हें पढऩे की

Bhumika Sahu
7 Aug 2021 5:02 AM GMT
आंखें भी होती हैं किसी के दिल की जुबां, कोशिश कीजिये जनाब इन्हें पढऩे की
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ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

कोरोना अभी ख़त्म नहीं हुआ है। कोरोना के सामने बड़े बड़े शक्तिशाली देश भी घुटने तक दिए हैं तो छोटे और गरीब देशों का क्या होगा। अमेरिका ने मास्क में छूट क्या दिया लेने के देने पड़ गए हैं। सबसे पहले अमेरिका के आधे से ज्यादा नागरिको को दोनों डोज़ लग चुके हैं उसके बावजूद उनको अब मास्क लगाने कहा जा रहा है। वैज्ञानिको ने कोरोना की तीसरी लहर के बारे में दुनिया को आगाह कर चुके हैं। जिस हिसाब से कोरोना काल में ऑक्सीजन,बेड की कमी और चिकित्सा क्षेत्र में उपकरणों की कमी के चलते लाखों लोगो ने अपनी जान गवाईं है अभी लोग भूले नहीं हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी मन की बात में बिना प्लान और बिना सोच विचार कर लगाए गए लाकडाउन से जनता को हुई परेशानी के लिए माफ़ी मांगी है। गरीबों के बारे में बिना सोचे ऐसा फैसला ले लिया गया था। किसी ने ठीक ही कहा है ये आंख भी होती हैं किसी के दिल की जुबां, कोशिश कीजिए जनाब इन्हे पढऩे की। गरीब जनता को उन्होंने काफी मुश्किलों में झोक दिया था। इस बात की गवाह देश की जनता है। भाजपा के कई मंत्री और सांसद भी लाकडाउन के पक्ष में नहीं थे बाद में अफ़सोस जाहिर जरूर कर रहे थे,लेकिन क्या फायदा। 30 जनवरी को भारत में कोरोना का पहला मामला सामने आया था और 24 फऱवरी को लाखो लोगो के साथ नमस्ते ट्रंप खेल रहे थे। जबकि कई देश अलग अलग एरिया में लाकडाउन लगा चुके थे. कोरोना की दूसरी लहर की हालातो में हुए जनहानि की वह त्रासद भुलाये नहीं भूलती। ऑक्सीजन और बेड के आभाव में कोरोना संक्रमितों को तड़पते और उनके परिजनों को अस्पतालों के चक्कर लगाते गिड़गिड़ाते, और लोगो द्वारा वेक्सीन,ऑक्सीजन सिलेण्डर आदि की कालाबाज़ारी मानवता को शर्मसार करने वाली स्थिति को क्या हम इतनी जल्दी भूल गये। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था को सही करना जरुरी भी है लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना है कि कोरोना अभी गया नहीं है। तमाम ताक़ीदों के बावजूद स्कूल खोलना, सारे काम पहले जैसा चालू करवाना, कहीं हम जल्दबाजी तो नहीं कर रहे हैं।

अडानी एयरपोर्ट पर हमला

पिछले दिनों शिवसेना द्वारा मुंबई एयरपोर्ट पर हमला बोलकर दिया गया। एयरपोर्ट पर जमकर उत्पात किया गया। अडानी के बोर्ड को नुकसान पहुंचाया गया। पहले एयरपोर्ट छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट के नाम से जाना जाता था। अब चूँकि केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचना शुरू किया तो मुंबई एयरपोर्ट का भी नंबर आ गया उसे अडानी ग्रुप ने खरीद लिया। स्वाभाविक है करोडो खर्च करके ग्रुप ने खऱीदा है तो नाम भी अपना रखेगा। जब केंद्र और राज्य सरकारें जनभावना के नाम पर सिर्फ वोट के लिए शहर और स्टेशनों का नाम बदल सकती है तो अडानी जी ने बाकायदा करोडो खर्च करके एयरपोर्ट को नीलामी में खऱीदा है, नाम तो उसका बनता ही है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि अब शिवसैनिकों को चाहिए कि वे अडानी जी के पास जाएँ और नाम नहीं बदलने का निवेदन करें हो सकता है अडानी जी मान जाएँ।

140 करोड़ कौन देगा

संसद की मानसून सत्र भी किसानो और पेगासस मुद्दे का भेट चढ़ गया। दोनों मुद्दे पर केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच अंत तक गतिरोध जारी रहा। संसद की कार्रवाई में बाधा होने से देश की जनता की लगभग 140 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि इन रुपयों का हिसाब कौन देगा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि एक सौ चालीस करोड़ में कितने अस्पताल, स्कूल ,कालेज बन जाते लेकिन इनको कौन बोले जनता से ज्यादा समझदार तो ये ही हैं।

बाबुल सुप्रियो का दर्द

पिछले दिनों मंत्री पद से हटाए गए गायक बाबुल सुप्रियो का दर्द जुबां पर आ ही गया। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे जल्द ही सरकारी आवास छोड़ देंगे, संसद की सदस्यता भी छोड़ देंगे और राजनीती से सन्यास ले लेंगे। हालांकि भाजपा अध्य्क्ष नड्डा जी ने कान में क्या बोले दूसरे दिन चारो खाने चित और फिर पटरी पर आ।

भाजपा से बगावत किये हुए नेताओ का हाल उनसे छुपी नहीं है बंगले से सीधे बड़े बंगले में। सो उन्होंने अपना इरादा बदल दिया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि बाबुल ने ठीक ही किया वर्ना मिथुन दा जैसा हश्र हो जाता कि गए थे लंगर खाने लंगर तो ख़त्म हो चुका था और बाहर आये तो जूता भी गायब।

देश की सुरक्षा को खतरा

जम्मू कश्मीर में पुलिस अधिकारी रहे देविंदर सिंह आतंकवादियों की मदद करने के आरोप में पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया है। और अब इस मामले में कोई इंक्वायरी भी नहीं होगी क्योकि इससे राज्य की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। अजीबोगरीब तर्क है। यह देश के इतिहास में पहली बार ही हुआ होगा कि किसी आतंकवादियों की मदद के आरोपी की जाँच करने से सुरक्षा को खतरा हो सकता है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कहीं देविंदर सिंह की जाँच न करके अन्य लोगो को बचाया तो नहीं जा रहा है। ऐसे कौन लोग हैं जो देवेंदर सिंह को बचाना चाह रहे हैं।

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