छत्तीसगढ़
रीपा से स्वरोजगार की उम्मीद, काष्ठ शिल्प से महिलाएं दिखा रही अपनी हुनर
Shantanu Roy
10 Aug 2023 5:59 PM GMT
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छग
बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ शासन की गौठान को रूरल इंडस्ड्री पार्क रीपा बनाने की परिकल्पना अब साकार होने लगे है। साथ इसके नित नये सकारात्मक परिणाम मिलने लगे है। रीपा के माध्यम से स्वरोजगार के नये अवसर की तलाश में पलारी विकासखण्ड के अंतर्गत ग्राम गिर्रा स्थित जय तुलसी स्व सहायता समूह की महिलाएं काष्ठ शिल्प की माध्यम से अपनी हुनर दिखा रही है। समूह की महिलाएं ट्रेनिंग लेकर बड़े पैमाने में काष्ठ शिल्प से संबंधित विभिन्न वस्तुओं व डिजाइनों का निर्माण कर रही है। समूह की अध्यक्ष सत्यभामा वर्मा ने बताया कि हमारी समूह में कुल 30 महिलाएं कार्य कर रही है। जो काष्ठ से विभिन्न गिफ्ट आइटम, छत्तीसगढ़ महतारी, चाबी रिंग सहित अन्य वस्तुओं को बनाने का कार्य कर रही है। इसके साथ ही हमारे द्वारा छत्तीसगढ़ महतारी 2500 रुपए, अन्य गिफ्ट आइटम 200 रुपए प्रति नग व चाबी रिंग 30 रुपए प्रति नग की दर से बेचा जा रहा है। यदि किसी व्यक्ति या संस्था को बड़ी संख्या में गिफ्ट हेतु आर्डर करना चाहते है तो वह समूह के अध्यक्ष 9111918687 में कॉल कर आर्डर दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जिला पंचायत के सहयोग से उक्त उत्पादों को विक्रय के लिए ई-कामर्स कम्पनी अमेजॉन से बातचित जारी हैं जल्दी ही इनके उत्पाद ई-कामर्स पर उपलब्ध होंगें। काष्ठ शिल्प के यह अभिनव प्रयोग जिले में पहली बार हो रही है। निश्चित ही महिलाओं को इससे आर्थिक आमदनी प्राप्त होगी।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की अंचल में काष्ठ कला की परम्परा अत्यंत प्राचीन रही है। यहां के निवासीयों में अपनी विभिन्न आवश्यकताओं के लिए काष्ठ के उपयोग उदाहरण मिलते है। आम व्यक्ति के लिए सुलभ और मनोवांछित आकार बनाने में आसान होने के कारण काष्ठ का उपयोग प्राचीन काल से होता रहा है। छत्तीसगढ़़ में भी लकड़ी की प्रचुर मात्रा यहां की प्राकृतिक संपदा के रूप में उपलब्ध रही है इसलिए यहां पर काष्ठ शिल्पकला का सुंदर उदाहरण मिलते है। छत्तीसगढ़ी लोकजीवन में प्रचलित काष्ठ कला कलाकारों के लिए अर्थोपार्जन का स्रोत है। लोगों की आवश्यकता के अनुरूप वे अपनी कला का उपयोग अपने शिल्प में करते है। छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से तीज त्यौहारों, मेले, मड़ई अवसरों पर काष्ठ शिल्प का निर्माण किया जाता है। इसके अतिरिक्त जो शिल्प बनाए जाते है वे दैनिक आवश्यकताओं से जुड़े होते है। ग्रामीण अंचल में बैलगाड़ियां काष्ठ कला का एक सुंदर उदाहरण है यह आवागमन व समान ढोने का एक आदिमयुगीन साधन है। इसके पहिए, ढाचा आदि सभी लकड़ी के बने होते है। लोक जीवन में लकड़ी के बने वस्तुओं का बहुताय में प्रयोग की जाती है। जैसे- पीढ़ा, खटिया, माची, हल, कोपर मचान, लाठी मकान आदि लकड़ी से ही बनते है। चाकू, हंसिया ख्ेती के औजारों की मुठिया, बांसुरी आदि सभी चीजों में की गई नक्काशीदार, स्तंभ व दरवाजे देवस्थलों के खंभे भी काष्ठ शिल्प के उदाहरण है। पोला पर्व के अवसर पर बच्चों के लिए खिलौनों में बैल मुख्य रूप से बनाए जाते हैं, जिन्हे आकर्षक रंगों से सजाए जाते है। आदिवासी नर-नारी और सींग मुकुटधारी गंवर नर्तक की कलात्मक मुर्तियां अद्वितीय रहती है। इसके अलावा देवी देवताओं, पशु पक्षियों, बच्चों के खिलौने के रूप में काष्ठ शिल्प देखे जा सकते है।
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Shantanu Roy
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