- शासन के आदेश की उड़ा रहे धज्जियां
- वन विभाग में अपने ही अधिकारी के आदेश का नहीं हो रहा पालन
- दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को वेतन के लाले - वन कर्मचारी महा संघ ने बताया कि रायपुर वन मंडल परिक्षेत्र अंतर्गत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का वेतन 4 माह से वेतन प्रदाय नहीं किया है। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। घर का गुजारा करना मुश्किल हो रहा है।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। प्रदेश शासन ने तीन साल बाद स्थान्तरण का नियम इसलिए बनाया है ताकि कर्मचारियों के हित, विकास और सरकारी कामकाज में बेहतरी दिखे लेकिन कई सरकारी कर्मचारी और अधिकारी इसे अपना अधिकार समझकर कुर्सी छोडऩा ही नहीं चाह रहे हैं। इस सम्बन्ध में अधिवक्ता राजकुमार कुशवाहा ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख को पात्र लिखकर मांग की कि वन मुख्यालय,वृत्त,वनमंडल और परिक्षेत्र में बहुत से कर्मचारी ऐसे है जो एक ही प्रभाग में पिछले कई सालों से जमे हुए हैं। इससे कर्मचारियों को अन्य शाखाओं का कार्यानुभव नहीं हो पता और निरंतर एक ही जगह में जमे होने के कारन भरष्टाचार और रिश्वतखोरी का अड्डा भी बन जाता है। हर विभाग में एक स्थान से दूसरे स्थान पर कर्मचारियों का ट्रांसफर किया जाता है तो वन विभाग में क्यों नहीं किया जा रहा है। वन विभाग में देखा गया है कि मुख्यालय में लगातार कई सालों से स्थापना शाखा में मानचिन बाबू काबिज होकर अन्य कर्मचारियों के हितो की अवहेलना कर रहे हैं। कुशवाहा ने नवम्बर माह में पत्र लिखा था लेकिन अभी तक कोई करवाई नहीं हुई,उन्होंने मई 2022 में फिर से एक पत्र लिखा है। उन्होंने बताया कि जब विभाग प्रमुख ने खुद पत्र लिखकर वन विभाग में एक ही शाखा में लगातार कुछ खास बाबुओं से काम लेना भी संदेह को जन्म देता है, जबकि विभाग ने ही सभी वन वृत्तों में कार्यरत कर्मचारियों को ट्रांसफर करने लिए निर्देश दिया लेकिन अपने ही मुख्यालय में कार्यरत कर्मचारियों पर विशेष मेहरबानी क्यों किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि शासकीय कर्मचारियों को तीन साल में ट्रांसफर करने का नियम है तो वन विभाग अलग ही अपना नियम लागू कर रखा है जो राजधानी में जंगलराज को दिखता है। ऐसा लगता है कि वनविभाग के अधिकारियो को मुख्यमंत्री, वन मंत्री और नियमो की कोई परवाह नहीं है। ऐसा एक विभाग में नहीं है बल्कि सारे विभाग में ऐसे स्थिति दिखेगी। आलम यह है कि कई विभाग प्रमुखों ने तीन साल में स्थानांतरण के नियम को दरकिनार कर अधिकारियों व अन्य कर्मचारियों को कई साल तक एक ही स्थान पर तैनाती दे रखी है। उन्हें हटाना तो दूर उसके बारे में चर्चा करना पसंद नहीं करते। कुछ कर्मचारी नेताओ ने बताया कि ये कर्मचारी ही बड़े अधिकारियो के लेनदेन कार्यकत्र्ता होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारी व कर्मचारी कुर्सी को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति मानने लगे हैं। इतना ही नहीं, कुछ का खौफ इस कदर हावी है कि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद उसी पद पर सविंदा नियुक्ति के लिए प्रयास करते देखा जा सकता है। कई इस प्रयास में कामयाब भी हो जाते हैं। पीडब्लूडी, आरइएस,प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, फारेस्ट विभाग सहित अन्य कई विभाग इसका उदाहरण है।
कुर्सी का रौब दिखाने में कमी नहीं
कुर्सी का खेल इस कदर हावी है कि ड्यूटी लगवाने, अवकाश दिलाने, वीआईपी ड्यूटी से मुक्ति और नाइट शिफ्ट से बचाव तक का जुगाड़ इसके बल पर किया जा रहा है। और ऊपर तक पहुँच का हवाला दिया जाता है। इससे निचले व अनुबंध पर तैनात कर्मचारी बेहद परेशान हैं, क्योंकि कुर्सी पर जमे अधिकारियों व कर्मचारियों के कारण उन नए कर्मचारियों की सुनवाई नहीं हो रही। उनको न्याय दिलाने के लिए लिए कर्मचारी संगठनो ने मोर्चा खोल रखा है
अधिकारी भी खामोश हैं
मानकों की अनदेखी पर उच्चाधिकारी भी मौन हैं। सूत्रों का कहना है कि जब कभी स्थानांतरण का जिक्र होता है, अधिकारी व्यवस्था में रुकावट का हवाला देकर उसे टाल देते हैं, जबकि इसकी भी चर्चा है कि एक ही जगह तैनात रहने के लिए अधिकारियों की आवभगत भी जमकर की जाती है।
इसलिए जरूरी है तीन साल बाद ट्रांसफर
राज्य शासन ने तीन साल बाद ट्रांसफर का नियम इसी लिए बनाया है कि कर्मचारियों के हित,प्रदेश के विकास और सरकारी कामकाज में बेहतरी हो। स्थानांतरण के बाद वहां आने वाले नए कर्मचारी को अगली व्यवस्था समझने का मौका मिले और एक स्थान पर जमे कर्मचारियों के कारण काम में आने वाली रुकावटों को दूर करने और काम सुचारु रूप से होकर करप्शन को रोकना भी एक कारण है।
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