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छग
रायगढ़। हाथियों के संरक्षण की सारी बातें खोखली लगती हैं, जब इस संबंध में किए गए काम और मौतों का आंकड़ा सामने आता है। रायगढ़, जशपुर और धरमजयगढ़ वनमंडल में तीन सालों में 12 हाथियों की मौत हो चुकी है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व बनाने की घोषणा की है। रायगढ़,जशपुर, कोरबा, सरगुजा और रायगढ़ वनमंडल में हाथियों की आवाजाही साल भर चलती रहती है। एक तय रूट में हाथी विचरण करते रहते हैं। इतने सालों में हाथी-मानव द्वंद्व को रोकने के लिए कोई भी ठोस प्रयास नहीं किए गए। न तो हाथी बच रहे हैं और न ही स्थानीयों की मौत रुक रही है। वन विभाग ने इन क्षेत्रों में हाथियों के लिए क्या काम किए, इसकी समीक्षा की जाए तो पता चलेगा कि कुछ खास किया ही नहीं गया। बीते तीन सालों में जशपुर, रायगढ़ और धरमजयगढ़ वनमंडलों में करीब आठ करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
इस राशि से रहवास क्षेत्र विकास, भू-जल संसाधन प्रबंधन, अधोसंरचना विकास कार्य और हाथी मानव द्वंद्व प्रबंधन कार्य किए गए हैं। हाथियों के विचरण के लिए बने रूट पर पर्याप्त कार्य नहीं किए जा सके, इसलिए हाथी आबादी बसाहट की ओर चले आते हैं। यह राशि लेमरू हाथी परियोजना के तहत व्यय किए गए हैं। सह सब बेकार जा रहा है, क्योंकि हाथियों की मौतें नहीं रुक रही हैं। 19-20, 20-21 और 21-22 में तीनों वनमंडलों में 12 हाथियों की मौत हो चुकी है। सवाल यह है कि अगर सरकार ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व की घोषणा की है, तो उसे डेवलप करने के लिए गंभीर और विस्तृत कार्ययोजना बनाए, ताकि जंगली हाथियों के हाथों लोग न मारे जाएं। वहीं करंट से हाथियों को भी मारा जा रहा है। राज्य हाथियों की मौतों का आंकड़ा बेहत तेजी से बढ़ रहा है। छग में तीन सालों में 43 हाथियों की मौत हो चुकी है। लेमरू एलीफेंट रिजर्व को लेकर केवल घोषणाएं की गई हैं। इसे पूरा करने के लिए कोई काम नहीं किया जा रहा है। जंगल नष्ट होने के कारण हाथी-मानव द्वंद्व भी बढ़ रहा है।
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