जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। नशे का कारोबार राजधानी में लगातार फैलते जा रहा है। नशे के सौदागर अब स्कूली बच्चों को भी नहीं बख्श रहे है। राजधानी में संचालित सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के आस-पास इन सौदागरों ने अपने ठीहे बना रखे है जहां से बच्चों को नशे के सामान उपलब्ध कराए जा रहे है। नशे के कारोबारियों ने स्कूलों के आस-पास चाय टपरी और ठेले वालो को अपने धंधे में सहभागी बना लिया है जिसके माध्यम से वे स्कूली बच्चों को आसानी से नशे के आदि बना रहे है। शहर में हो रहे अपराधों को कम करने के लिए पुलिस भी अथर प्रयास कर रही है बावजूद अपराध पर लगाम लगाना थोड़ा मुश्किल नजऱ आ रहा है। और वही दूसरी तरफ नशे का कारोबार भी चल रहा है जिसके चलते नवयुवक-युवतियां नशे में मदमस्त है और नशे की पार्टियों में भी संलिप्त रहने लगे है। ड्रग तस्करों से कोई भी राज्य अछूता नहीं रहा है। मुंबई और गोवा से ड्रग्स लेने वालो पर पुलिस ने भी कड़ी कार्रवाई की थी मगर उसके बाद भी नशे का कारोबार जोर शोर से चले जा रहा है। पुलिस ने अपने अभियान में भी नशेखोरो को जड से उखाड़ कर फेंका। मगर नशे के कारोबारी अब स्कूल के बाहर स्कूली बच्चों को नशा देने की फिराक में चल रहे है। आज के युवक-युवती भी कम नहीं है हर गली मौहल्ले में सिगरेट का कश लगाते नजऱ आते है। युवा नशाखोरी में सबसे अधिक संख्या में ग्रसित हो चुके हैं, जिनमें ज्यादातर शिक्षित और संपन्न परिवारों से हैं, जो नशे को शुरुआत में फैशन और शौक के लिए अपनाते हैं और बाद में इसके आदी हो जाते हैं, जिसके लिए ड्रग माफियाओं द्वारा कई प्रलोभन भी दिए जाते हैं, मगर कई लोगों के लिए नशा दिनचर्या का हिस्सा भी बन चुका है और इस धंधे में कई बड़े नाम भी सामने आ चुके हैं।
नशाखोरी समाज में फैलने का कारण : नशाखोरी युवाओं और पूरे समाज में फैलने के कई कारण है मगर कुछ ऐसे कारण सामने आये है जिसकी वजह से युवाओं में नशाखोरी बढ़ते जा रहा है।
संगति का असर : स्कूल के बच्चों में ये नशाखोरी संगति के चलते फैलती है कम उम्र में ये बच्चे भटक जाते है, और ऐसे लोगों के साथ संगती करते है, जो नशा को अपना जीवन समझते है। बच्चों के अलावा युवा को भी कई बार संगति ही बिगाड़ती है। युवा पीढ़ी के कई ऐसे दोस्त भी होते है, जो नशा करते है, और देखा देखी में वे भी इसे करने लगते है। जो लोग इस नशा को करते है, वे अपने साथ वालों को भी इसे करने के लिए प्रेरित करते है।
नशाखोरी का युवाओं पर दुष्परिणाम
नशा एक ऐसी समस्या है, जो दूसरी समस्याओं को न्योता देती है। इससे गरीबी आती है, बेरोजगारी, अपराध फैलता है। अपराधियों की संख्या भी बढऩे लगती है।
घरेलु हिंसा को बुलावा
नशा करने वाला व्यक्ति अपना आपा खो देता है, उसे याद नहीं होता है वो कहाँ है, क्या कर रहा है। नशे का आदि व्यक्ति घरेलु हिंसा को दावत देता है, वो आने घर में अपनी बीवी, बच्चों को मारने लगता है। ये सब नशा है घरेलु इंसान के सिर चढ़ कर बोलता है।
नशा अपराधी बना देता है : नशा एक अपराध से कम नहीं है, और नशा करने वाला व्यक्ति एक अपराधी है। नशे की तलब को पूरा करने के लिए इन्सान चोरी करने लगता है, और छोटे-छोटे अपराध कब बड़े अपराध में बदल जाते है पता ही नहीं चलता। अफीम, चरस, कोकीन का नशा लेने के बाद इंसान के अंदर उत्तेजना आ जाती है, जिससे वो अपने काबू में नहीं रहता और इस नशे के बाद व्यक्ति चोरी, मृत्यु, हिंसा, लड़ाई-झगड़े, बलात्कार जैसे कामों को अंजाम देता है, जो उसे एक बड़ा अपराधी बना देता है।
नशाखोरी का युवाओं पर बुरा असर
राजधानी की सबसे बड़ी समस्या में से एक युवाओं में फैलती नशाखोरी भी है। नशा एक ऐसी समस्या है, जिससे नशा करने वाले के साथ-साथ उनके परिजनों को भी काफी तकलीफ होती है। लोगों को नशे के इस दलदल में एक कदम रखने की देरी होती है, जहाँ आपने एक कदम रखा फिर आप मजे के चलते इसके आदि हो जायेगें, और दलदल में धसते चले जायेगें। नशे के आदि इन्सान, चाहे तब भी इसे नहीं छोड़ पाता, क्योंकि उसे तलब पड़ जाती है, और फिर तलब ही उसे नशा की ओर बढ़ाती है। नशे क़े कई प्रकार है गांजा, चरस, अफीम, ड्रग्स, सिगरेट, हुक्का, शराब, दारू, मारिजुआना ये सब नशा है। जो युवाओं के भविष्य के साथ खेलती है।
सिनेमा का प्रभाव
टीवी, फिल्मों में खुलेआम शराब, सिगरेट, गुटखा खाते हुए लोगों को दिखाया जाता है, जिससे आम जनता विशेषकर बच्चे और युवा प्रभावित होते है, और उसे अपने जीवन में उतार लेते है, टीवी पर तो इसके बड़े-बड़े विज्ञापन भी आते है, युवा पीढ़ी टीवी पर देखती है, कैसे किसी का दिल टूटने पर जब गर्लफ्रेंड या पत्नी छोड़ कर चली जाती है तो हीरो शराब पीने लगता है, बस वो भी इसे देख अपने जीवन में उतार लेता है। गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप होने पर वो भी देवदास बन शराब पीने लगता है।
युवाओं के लिए जहर बनता
जा नशे का सामान
राजधानी में जवान हो रही पीढ़ी में नशे की लत तेजी से फैल रही है, यह नशा शराब या सिगरेट का नहीं है, बल्कि गांजा, कोकीन, अफीम, कोकीन, चरस और नशीली दवाओं का है। इस तरह का नशा करने की वजह से युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है और वो अपराध की दुनिया में कदम रखते हैं। युवा खुद को अपने साथियों से बेहतर दिखाने के प्रयास में जुटे हैं। युवाओं की चाहत रहती है कि उनके पास अच्छा मोबाइल, लैपटॉप, बाइक, ब्रांडेड, जूते व कपड़े हों। जिससे साथियों के बीच उसकी अलग पहचान बन सके। यह स्थिति युवाओं को उनके साथियों को देखकर नशा करने के लिए भी प्रेरित करती है। वह नशा करने में भी साथियों से पीछे नहीं रहना चाहते। बेहतर दिखने की होड़ कई बार उन्हें चोरी के लिए प्रेरित करती है। वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए पहले छोटी-मोटी चोरी और फिर बड़ी आपराधिक घटनाओं करने लगते हैं। शहर में बढ़ी चोरी की वारदातों में अधिकतर ऐसे ही नशाखोर युवा शामिल हैं, जो इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपराध कर रहे हैं।
मॉडर्न बनने के लिए नशा
नशा को कुछ लोग मॉडर्न मानते है, उनका मानना होता है, नशा करने से लोग उन्हें एडवांस समझेगें, और उनकी वाह वाही होगी। नशा को अमीरों की शान भी माना जाता है, उन्हें लगता है, नशा करने से हमारा रुतबा सबको दिखेगा। जो व्यक्ति शिक्षित है, वो भी नशा से दूर नहीं है।