नहीं जाना चाहते बच्चे स्कूल।
लॉकडाउन और स्कूलों से दूर रहकर पढ़ाई करने के बाद अब बच्चे स्कूल की ओर लौट रहे हैं। इसे लेकर छात्र चिंतित हो सकते हैं कि उनकी वापसी की अनिश्चितता का अकादमिक और सामाजिक रूप से उनके लिए क्या मतलब हो सकता है।
कई छात्रों के घरों पर हो सकता है कि आर्थिक तनाव जैसी कोई परेशानी चल रही हो जिसका असर पढ़ाई के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। अध्ययन बताते हैं कि स्कूल बंद होने से बच्चों में नकारात्मक भावना बढ़ी है। लम्बे समय तक घरों में रहे बच्चे अवसाद, चिंता, अकेलेपन की ओर बढ़ रहे हैं। व्यग्रता के सामाजिक और भावनात्मक प्रभावों पर तो अध्ययन हुए हैं लेकिन कई लोगों को यह मालूम नहीं होगा कि चिंतित रहने की इस स्थिति का बच्चे के आकादमिक कार्य पर भी प्रभाव हो सकता है
ऑस्ट्रेलिया के सात लोगों में से एक को बेचैनी का अहसास हो रहा है। बच्चों में व्यग्रता चिंता का विषय है क्योंकि 6.1 फीसदी लड़कियां और 7.6 फीसदी लड़के इससे प्रभावित हैं। अध्ययन बताते हैं कि व्यग्रता की परेशानी औसतन 11 वर्ष की आयु में हो सकती है। खास बात यह है कि ये आंकड़े महामारी से पहले के हैं।