रायपुर। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि सहज-सरल धर्म का मार्ग जीने के लिए अहिंसा, अचौर्य सत्य, शील और अपरिग्रह को जीवन में जीने की कोशिश कीजिए। कभी किसी का दिल न दुखाएं। पराई वस्तु और धन को अपना बनाने की कोशिश न करें। सत्यवादी बनते हुए कभी झुठ न बोलें और जीवन में निर्मलता और पवित्रता को जीते हुए शीलव्रत का पालन करें और अपनी आवश्यकता से ज्यादा धन अपने पास हो तो जरूरतमंदो को अपनी तरफ से समर्पण कर दें।
संत प्रवर सोमवार को श्री ऋषभदेव जैन मंदिर ट्रस्ट द्वारा एमजी रोड स्थित जैन दादावाड़ी में नवपद ओली पर आयोजित विशेष प्रवचन माला के तीसरे दिन नवकार मंत्र में आचार्य पद और निर्मल जीवन जीने का रहस्य विषय पर श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्य पद हमें आचरण को श्रेष्ठ और धर्ममय बनाने की प्रेरणा देता है। धर्म को केवल परम्पराओं में बांधने की बजाय प्रेक्टिकल स्वरूप में जीने की कोशिश कीजिए। धर्म की हमें सिखावन है - अपने कर्तव्यों का पालन कीजिए, इंसान होकर इंसान के काम आइए, मनोविकारों पर विजय प्राप्त कीजिए और सब धर्मों का सम्मान कीजिए। उन्होंने कहा कि अंतरमन में त्याग, वैराग्य और संयम के प्रति श्रद्धा रखिए। अपने कषाय और मनोविकारों पर विजय प्राप्त कीजिए। अगर हम निर्मल कर्म और विचारों के मालिक बनते हैं, तो हमारा स्वरूप चलते-फिरते मंदिर जैसा ही होगा।
उन्होंने कहा कि आप जिस धर्म के अनुयायी है, उसका आचरण कीजिए, पर अन्य धर्मों के प्रति भी प्रेम रखिए। इस दुनिया में प्रेम के मंदिर हों, प्यार के गिरजे हों और मोहब्बत की मस्जिदें बनें, तो धरती को स्वर्ग बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा हो जाएगी। अगर हम धर्म का ऐसा स्वरूप बनाते हैं, तो पूरी दुनिया धर्म का आचरण करने के प्रति स्वतः ही समर्पित हो जाएगी और यह धरती किसी भगवान का मंदिर और तीर्थ बन जाएगी।
प्रवचन में संतप्रवर ने श्रीपाल रास से जुड़े घटनाक्रम का भी विवेचन किया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को ओम रीं श्रीं श्री नमो आयरियाणं मंत्र का सामूहिक जाप करवाया। इस अवसर पर मुनि शांतिप्रिय सागर जी ने कहा कि निर्मल जीवन का मालिक बनने के लिए और आचरण शुद्धि के लिए आचार्य पद का ध्यान करवाया। संघ अध्यक्ष विजय कांकरिया ने बताया कि मंगलवार को सुबह 9 बजे संतप्रवर नवकार मंत्र में उपाध्याय पद का रहस्य विषय पर संबोधन देंगे।