![हो न मायूस ख़ुदा से बिस्मिल, ये बुरे दिन भी गुजर जायेंगे हो न मायूस ख़ुदा से बिस्मिल, ये बुरे दिन भी गुजर जायेंगे](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/04/23/1027600-janta.webp)
ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
कुछ दिन पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और भाजपा के कई मंत्री बंगाल हथियाने जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। कोरोना के तांडव से हो रही मौतों से पूरा देश थर्राया हुआ था और प्रधानमंत्री जी चुनाव में दीदी ओ दीदी गाना सुना रहे थे और बंगाल में चुनावी वंशी बजा रहे थे। राहुल गाँधी और ममता बनर्जी कोरोना के चलते चुनावी रैली नहीं करने की घोषणा करते है तो उलटे भाजपा नेता ये कहते हैं कि वे चुनाव हार रहे हैं इसलिए कोरोना का बहाना बना रहे है। सारे नेताओ ने एक स्वर में प्रधानमंत्री जी को कहा कि बंगाल से फुर्सत निकालकर कोरोना पर ध्यान दीजिये लेकिन उनके अंदर जूनून सवार है कि हर हाल में बंगाल में सरकार बनाना है और बंगाल में ममता दीदी के जुल्म से जनता को राहत दिलाना है। जनता में खुसुर फुसुर है कि अभी राहत सिर्फ चुनावी प्रदेश की जनता को नहीं बल्कि पुरे देश की जनता को है। जब गुलाम नबी आज़ाद राज्यसभा से विदा हो रहे थे तब मोदी जी के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे लेकिन अब आपके निर्वाचन क्षेत्र में शमशान घाट का मंजर देख कर लोगो का कलेजा हिल गया था देश में मौतों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा, अस्पतालों में बेड , ऑक्सीजन एवं दवा नहीं मिल पा रही है और वे खुद बंगाल में रैली कर रहे हैं । सरकार के रवैये को देखकर लोगों को बिस्मिल अज़ीमाबादी के इस शेर पर ही भरोसा दिखाई दे रहा- ' हो न मायूस ख़ुदा से बिस्मिल, ये बुरे दिन भी गुजर जायेंगे।
मरकज़ कोरोना बम था तो चुनाव व कुम्भ एटम बम तो नहीं है?
धार्मिक आस्था पर सवाल नहीं है। हर हाल में धार्मिक आस्था का पालन होना चाहिए लेकिन समय समय पर आस्था के रूप में परिवर्तन करना ही समाज के लिए फायदेमंद साबित होता है। पिछले साल मार्च अप्रैल महीने में जब लॉक डाउन पुरे देश में लगा था तब मरकज़ को लेकर तरह तरह के सवाल खड़े किये गए थे जबकि पिछले साल कोरोना हिंदुस्तान में महामारी का रूप धारण नहीं किया था जो आज भारत में महामारी का रूप लिया हुआ है और मात्र दो हजार तब्लीगियों को जो अचानक लगाए गए लॉक डाउन से फंस कर रह गए थे उनको भारत में कोरोना फ़ैलाने के जिम्मेदार ठहराया गया था, इत्तेफाक से इस साल भी उसी महीने में कोरोना का जबरदस्त हमला हुआ और इस बीच चुनाव और कुंभ का भी साथ साथ आया. विभिन्न प्रदेशो से आये हुए लोग कुम्भ में प्रतिदिन 15 से 20 लाख लोग एक साथ एक जगह मौजूद रहे और चुनावो में भी कमोबेश यही स्थिति बनी। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने कुम्भ को सांकेतिक तथा समापन की अपील भी की थी लेकिन मजे की बात ये रही कि सुबह वे अपील करते थे और शाम को खुद चुनावी रैली करने लग जाते थे। जनता में खुसुर फुसुर है कि इसका जिम्मेदार कौन होगा।
मास्क नहीं तो जुर्माना
कोरोना ने लोगो की जिंदगी दूभर कर दी है लॉक डाउन के दौरान घरो से बाहर निकलना सख्त मनाही है बिना जरुरत निकले और यदि पकडे गए तो पुलिस द्वारा खातिरदारी की जायेगी और भारी भरकम जुर्माना वो अलग। जनता में खुसुर फुसुर है कि मास्क नहीं तो जुर्माना ठीक है लेकिन अस्पतालों में दवा, बेड, और ठीक से इलाज नहीं होने पर भी जुर्माना लगाया जा सकता है ?
राजश्री गुटखे की कालाबाज़ारी
विधायक हो तो मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ के भाजपा विधायक जैसा। क्षेत्र की जनता का हर शौक का ख्याल रखते हैं। विधायक जी ने कोरोना काल में राजश्री गुटके की कालाबाज़ारी को लेकट कलेक्टर टीकमगढ़ को पत्र लिख दिया। पत्र में उन्होंने लिखा की मेरे विधानसभा क्षेत्र टीकमगढ़ में राजश्री गुटके की कालाबाज़ारी हो रही है और गुटके के सप्लायर श्री जूली जैन द्वारा कोरोना के विषम परिस्थिति मे लॉक डाउन और कफ्र्यू का नाजायज़ फायदा उठाया जा रहा है गुटके की कालाबाज़ारी की जा रही है। जनता में खुसुर फुसुर है कि विधायक जी को कोरोना काल में दवा, इंजेक्शन या अन्य सुविधाओं की मांग पर पत्र लिखने के बजाये गुटके की कालाबाज़ारी पर पत्र लिख रहे हैं।
सौ बका एक लिखा
पुरानी कहावत है सौ बका एक लिखा। बात सही है जबानी जमा खर्च जितना भी हो कोई पकड़ नहीं होती पकड़ सिर्फ लिखे की होती है। भाजपा वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को क्या से क्या नहीं बोले लेकिन सज्जन पुरुष मनमोहन सिंह जी कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा क्योंकि प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने भाषण कम दिए और काम ज्यादा किया देखा जाये तो मनमोहन सिंह जुमलेबाज नेता नहीं हैं। मामला ये है कि मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी जी को चिठ्ठी लिखी थी और रचनात्मक सहयोग की बात लिखी थी लेकिन मोदी जी बंगाल चुनाव में व्यस्त होने के वजह से मनमोहन सिंह जी के पत्र को शायद देख नहीं पाए और उनके चिठ्ठी का जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को देना पड़ा और उन्होंने मनमोहन जी की तारीफ भी की और कहा कि आप जैसे नेता कांग्रेस में कम हैं। जनता में खुसुर फुसुर है कि भाजपाइयों को भी अब समझ में आया कि आज देश को भाषण या जुमले से ज्यादा दरकार ऑक्सीजन, दवा और बेड की है, कल तक मनमोहनसिंह जी को क्या क्या नहीं बोला गया और आज तारीफ हो रही है यही राजनीति है।
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा
कोरोनाकाल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 18 प्लस के वैक्सीनेशन खर्च उठाने की घोषणा कर राजनीति को गरमा दिया है। पूरे देश में पहले मुख्यमंत्री है जिसने युवाओं के लिए नि:शुल्क इंजेक्शन लगाने की घोषणा कर विपक्ष की बोलती बंद कर दी है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पीएम ने जनता के नाम संदेश में 18 प्लस के वैक्सीनेशन को शामिल करने की घोषणा करने के साथ ही भाजपा शासित राज्यों सहित केंद्र सरकार आगामी चुनाव नजरिए से घोषणा की थी, लेकिन पीएम की घोषणा के साथ छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने गरम लोहे में हथौड़ा मारकर वैक्सीनेशन की जंग में जीत दर्ज किया। प्रदेश के युवाओं को नि:शुल्क वैक्सीनेशन की घोषणा कर विपक्ष को इस मुद्दे को भुनाने से वंचित कर दिया है। कोरोना की स्थिति दो साल बाद कैसे रहेगी, कोई नहीं जानता, लेकिन छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री ने सबले बढिय़ा की कहावत को चरितार्थ कर दिया है। जिसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में जरूर रंग दिखाएगा। ये राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी है, जो हमेशा नहले पे दहला पटक ही देते है।
दो साल पहले ही चुनावी तैयारी
कोरोनाकाल में राजनेताओं की सक्रियता को देखते हुए छत्तीसगढ़ अभी से चुनावी हलचल सुनाई देने लगा है। जनता में खुसुर-फुसर है कि भाजपा वाले लगता है अब जाग गए है,भूपेश सरकार की अव्यवस्था को लेकर भाजपा मंडल, ब्लाक, जिला स्तर पर आंदोलन और प्रदर्शन करने वाली है और वहीं कांग्रेसी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर कोरोनाकाल में जरूरतमंद दिहाड़ी और गरीब मजदूरों को सूखा राशन के साथ कार्य स्थल पर पका हुआ भोजन देने वाले है। इससे तो जनता को ऐसे लगने लगा है कि जल्द ही चुनाव आने वाले है। क्योंकि इस तरह के आयोजन तो चुनाव के समय ही देखने और सुनने को मिलते है। जिसमें सिर्फ वोट की खेती के लिए जनता की हरियाली खुशहाली को बनाए रखने बंजर जमीन को भी उपजाऊ बनाने की मशक्कत करनी पड़ती है। राजनीति में तो सब कुछ जायज है, जैसे हालिया पांच राज्यों के चुनाव में मंजर देख रहे है।