
रायपुर। मधुमेह यानि डायबिटीज आज जनस्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बनते जा रहा है। चिंताजनक बात यह है कि इस रोग से न केवल शहरी जीवन जीने वाले बुजुर्ग, युवा, किशोर और महिलाएं बड़ी तेजी से प्रभावित हो रही हैं, बल्कि शारीरिक श्रम करने वाले और नियमित दिनचर्या अपनाने वाले ग्रामीणों को भी यह अपनी गिरफ्त में लेते जा रहा है।
मोटापा, मानसिक तनाव और नियमित व्यायाम या योग के अभाव सहित अनिद्रा, अनियमित दिनचर्या, अनियंत्रित खानपान जिसमें ज्यादा घी, तेल व वसायुक्त खाद्य पदार्थो जैसे जंक या फास्ट फूड, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, डिब्बा बंद भोजन, मांसाहार, धूम्रपान और शराब का सेवन मधुमेह के मुख्य कारण हैं।
आज के दौर में अधिकांश बच्चे, किशोर और युवा इन खान-पानों और जीवन शैली को अपना रहे हैं, जिसके फलस्वरूप वे तेजी से मधुमेह से ग्रस्त हो रहे हैं। शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं, अपितु संपूर्ण जीवन पद्धति है। इसे अपनाकर जीवन शैली से जुड़े अनेक रोगों से बचा जा सकता है। आधुनिक जीवन शैली से जुड़े इस रोग को अनुवांशिक भी माना गया है।
लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में बताए गए दिनचर्या, ऋतुचर्या और खान-पान अपनाकर तथा नियमित व्यायाम व योग से इस बीमारी से बचाव संभव है। असल में मधुमेह स्वयं में एक गंभीर बीमारी होने के साथ-साथ अनेक रोगों का कारण तथा रोगमुक्ति की प्रक्रिया को धीमा करने वाला कारक भी है। इसलिए इस रोग के शुरुआती लक्षण, बचाव और नियंत्रण के उपायों के प्रति सतर्क होना जरूरी है।
डॉ. शुक्ला ने बताया कि आमतौर पर मधुमेह के शुरुआती दौर में बहुत ज्यादा भूख या प्यास लगना या बार-बार पेशाब होना, थकान, वजन घटना, नजर का धुंधलापन, शरीर में चिपचिपाहट, हाथ-पैर के तलुओं में जलन सहित यौनांगों में खुजली, जलन या घाव के लक्षण मिलते हैं।
किसी व्यक्ति को जब भी यह लक्षण मिले तो बिना विलंब किए उसे तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। डॉ. शुक्ला ने बताया कि चूंकि मधुमेह के बचाव में प्रमुख भूमिका संतुलित भोजन, नियमित दिनचर्या और शारीरिक सक्रियता की है, इसलिए इन अनुशासनों का पालन आवश्यक है।
