मरता है किसान तो मरने दो, कोई सुशांत थोड़ी है...
ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
किसान आंदलन को जो लोग राजनीति से प्रेरित बताकर इस पर खालिस्तान और आतंकवाद की मुहर लगा रहे है वास्तव में वे उन बड़े औद्योगिक घराने के गुर्गे है जिनको इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए लगाया गया है। बचीखुची कसर केंद्रीय मंत्री साहब ने कर दिया है। उन्होंने इस आंदोलन में चीन और पाकिस्तान का हाथ बताया है। धन्य हैं अनन्दाता जो अपने हक के लिए पिछले कई दिनों से दिल्ली बार्डर में सर्दी में गर्मी का माहौल बना रहे है। किसानों को वैसे भी सदी-गर्मी से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वो ऐसे मौसम की परवाह किए बगैर धरती मां की गोद में रह कर अनाज पैदा करने दिनरात एक कर देते हैं। तो दिल्ली बार्डर हो या कहीं भी आंदोलन से इन्हें कोई फर्क नहीं पडऩे वाला, फर्क तो सरकार में बैठे लोगों को पड़ रहा है, सर्दी के मौसम में इनके माथे पर पसीना नजर आ रहा है। सच्चाई यह है कि इन कानूनों का जितना कुप्रभाव किसानों पर होगा उससे कहीं ज्यादा आदमी पर होगा। किसान आंदोलन की गूंज देश के अलावा विदेशों तक पहुंच गई है। अन्नदाताओं के समर्थन में लंदन, अमेरिका में भी सड़कों पर लोग उतर गए हैं। पहली बार ऐसा देखा गया है कि सरकार जबरदस्ती किसानों की भलाई करने पर ऊतारू है, जबकि किसान ऐसी भलाई नहीं चाहते । अजीब वाकया है, अन्दाताओं की खुद्दारी तो देखिए जनाब विज्ञान भवन में ये सरकारी दावत उड़ाने के बजाय घर से लेकर आए हुए भोजन को जमीन पर बैठकर ग्रहण करते हंै। ऐसे अन्नदाताओं के शत-शत नमन... । हिन्दुस्तान के मशहूर शायर मरहूम राहत इंदौरी साहब का एक सेर किसानों को समर्पित करते हुए जनता से रिश्ता के एक पाठक ने खुसुर-फुसुरु टीम को विशेष रूप से भेजा है। मरता है किसान तो मरने दो, कोई सुशांत थोड़ी है, उजड़ता है खेत खलिहान को उजडऩे दो, कोई कंगना का मकान थोड़ी है।
नायक फिल्म के अनिल कपूर बने डीएम अवस्थी : फिल्म नायक में अभिनेता अनिल कपूर एक दिन के सीएम बने थे और धड़ाधड़ जनता की समस्या सुन रहे थे और तुरंत सुलझा रहे थे, हमारे डीजीपी डीएम अवस्थी भी पुलिस विभाग और उनके परिजनों के लिए अनिल कपूर की भूमिका अदा कर रहे है, वे उनकी समस्या को सुन रहे हैं और ऑन द स्पाट निराकरण भी कर रहे हैं । जय हो अवस्थी जी।
सच है चच्चा उम्मीद में दुनिया कायम :
छजकां के मीडिया प्रमुख वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल अहमद रिजवी का पिछले दिनों बयान आया कि छत्तीसगढ़ की जनता जोगी कांग्रेस की सरकार बनाता चाहती है, भाजपा और कांग्रेस को परख चुकी है, सब फेल हो गए हैं। यहां की जनता जोगी कांग्रेस को आगामी चुनाव में सत्ता की बागडोर देने की मानसिकता बना चुकी है। अब इकबाल चच्चा को कौन बताए कि जोगी कांग्रेस में कार्यकर्ताओं का टोटा है जो भी हैं सब नेता हैं। कुल जमा चार विधायकों में दो विधायक कांग्रेस में आने को आतुर हैं। बहरहाल उनके बयान में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि कोई भी सुनार अपने सोना को खोटा नहीं बोलता है। जनता में खुसुर फुसुर है कि उम्मीद में तो दुनिया कायम है भाई।
गिरदावरी है या गोदावरी : प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गिरदावरी का आदेश दिया था ताकि किसानों का सही ढंग से धान बिके और बिचौलिए के चंगुल से बचते रहे. लेकिन अफसरों ने गिरदावरी को गोदावरी समझ बैठे और रकबा में घालमेल कर इस गोदावरी के पानी से अपनी जेबों की फसल लहलहाने लगे मजबूरन किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पड़े । जनता में खुसुर-फुसुर है कि सरकार को इसे संज्ञान में लेकर गिरदावरी को गोदावरी समझने वाले अफसरों को तत्काल बर्खास्त करें।
सब कुछ पुनिया को ही देना-लेना है : निगम-मंडल आयोग में नियुक्ति हो चुकी है, मुख्यमंत्री प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मंत्रिमंडल ने मिलकर लिस्ट फाइनल कर लिए हैं। ऐसा सूत्रों से पता चल रहा है। एक दो रोज में पीएल पुनिया के रायपुर आने के बाद लिस्ट जारी होने की उम्मीद है। एक कांग्रेसी का कहना है कि जब सारे बड़े मिलकर तय कर लिए हैं तो इसमें पुनिया का क्या लेना-देना। जनता में खुसुर फुसुर है कि निगम मंडल के नियुक्त में पुनिया को ही देना-लेना है भाई।
अब कंगना बन गई किसान : लगता है कंगना रनौत के पास काम की कमी है, तभी तो हर मामले में टांग अड़ा देती है। जनता में खुसुर-फुसर है कि सुशांत केस से चर्चा में आई कंगना अभी हाल में किसान आंदोलन में शामिल हुई 88 साल के दादी मां के बारे में ट्विट किया कि ऐसे 100 रुपए में मिल जाते है। फिर क्या दादी मां कहा चुप बैठने वाली है,उन्होंने कहा 15 एकड़ खेती है, काम नहीं है तो रोजी में रख लूंगी।
किसानी पर राजनीति : प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय प्रदेश में किसान व्दारा आत्महत्या किए जाने पर कहा कि भूपेश बघेल किसानों के जीवन में कहर बरपा रहे हैं वे किसानों के दुश्मन बन गए हैं आदि-आदि। जनता में खुसुर-फुसर है कि क्या दिल्ली बार्डर में किसान आंदोलन नहीं बल्कि पिकनिक मनाने गए है?
ये कैसी मानसिकता है : मामला पिछले दिनों छतरपुर का है जहां एक दलित युवक को खाना छूना भारी पड़ गया। उसके दो सवर्ण साथियों ने खाने को छूने के कारण इतना पीटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि 21 सदी में भी हम इस प्रकार संकीर्ण मानसिकता लेकर चले तो विश्व गुरु कैसे बनेंगे।
सरोज पांडे भी खिसिया रही हैं : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कभी गेंड़ी चढ़ रहे तो कभी भौंरा खेल रहे है। तो कभी छत्तीसगढ़ की संस्कृति धरोहर को सहेजते हुए हरेली, तीजा-पोरा, राऊत नाचा और भी छत्तीसगढ़ी त्योहारों को अपने बंगले में मनाकर लुत्फ उठा रहे हंै। सरोज पांडे इसे नौटंकी बता रही हैं। अब सरोज दीदी को कौन बताए कि ये नौटंकी नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की गौरव अस्मिता और परंपरा है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि दीदी आप भी सुआ नाच चुकी हो। उस समय परंपरा थी अब नोटंकी कैसे? हमारे मुख्यमंत्री तो सिर्फ छत्तीसगढ़ की गौरव अस्मिता और परंपरा को कायम संस्कृति को पुनर्जीवित कर रहे हंै।