ब्रह्माकुमारीज में दादी हृदयमोहिनी और जानकी की पुण्यतिथि का हुआ आयोजन
दुर्ग। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बघेरा स्थित "आनंद सरोवर" व राजऋषि भवन केलाबाड़ी दुर्ग में ब्रह्माकुमारीज की पूर्व मुख्य प्रशासिका दादी जानकी एवं दादी हृदयमोहिनी का पूण्य स्मृति दिवस मनाया गया । इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी रीटा बहन (संचालिका ब्रह्माकुमारीज दुर्ग) ने दोनों दादियों के जीवन का संस्मरण सुनते हुए कहा कि जानकी दादी ने निराकार परमपिता परमात्मा "शिव"के द्वारा अपने साकार माध्यम दादा लेखराज जिन्हें परमात्मा शिव ने ब्रह्मा नाम दिया उनके माध्यम से दिये गये आत्मज्ञान व राजयोग को जीवन में धारण कर समग्र विश्व में स्थितप्रज्ञ योगी के नाम से विख्यात हुई और परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान को संपूर्ण विश्व में अनेक आत्माओं को देकर, जो आत्मायें पाश्चात्यत संस्कृति व घोर भौतिकवाद के कारण दुःखी व अशान्त थी , उन्हें वास्तविक शान्ति व सुख के प्रकम्पन्न दे उन आत्माओं के जीवन को सुख-शान्ति से समृद्ध बनाया ।आपने आगे बताया कि दादी जानकी जी को अंग्रेजी भाषा नहीं आती थी, किन्तु अपने शुभभावना और शुभकामना के श्रेष्ठ प्रकम्पन के माध्यम से पूरे विश्व में परमात्म संदेश दिया । दादी जी की विशेषता थी दादी कभी पर्स व गाड़ी नहीं खरीदी स्वयं दादी जी कभी घड़ी नहीं पहनती थी किन्तु हर कार्यक्रम में समय के पूर्व पंहुच जाती थी । उनके साथ रहने वाली साथी बहनें बताती थी दादी जी उन्हें कहती थी कार्यक्रम शुरू होने वाला है मुझे ले चलो तो उन्हें लगता दादी जी को बिना घड़ी के भी समय का ध्यान रहता है।
दादी हृदयमोहिनी के बारे में बोलते हुए आपने कहा कि संस्था के संस्थापक दादा लेखराज के 1969 में देह त्यागने के बाद सभी को लगा कि अब यह संस्था बन्द हो जायेगी किन्तु निराकार परमात्मा "शिव" जो दादा लेखराज के तन के द्वारा शिक्षा देते थे अब दादी हृदयमोहिनी के तन का आधार ले सभी आत्माओं को परमात्म प्यार व अलौकिक पालना की अनुभूति कराकर ढेरों आत्माओं के जीवन में उमंग उत्साह का संचार कर साधारण जीवन से दिव्य जीवन बना दिया अनेक बुद्धिजीवीयों को आपके दिव्य चरित्र से यह महसूस हुआ कि इनका ऐसा जीवन बनाने वाला कोई विशेष शक्ति ही है।
इस अवसर पर संस्था से जुड़े अनेक भाई-बहनें इन दिव्य आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के लिए उपस्थित हुए व सभी ने मौन की स्थिति में रहकर परमात्मा से प्राप्त सुख-शांति के प्रकम्पन् सर्व आत्माओं को देते समग्र विश्व की सर्व आत्माओं व प्रकृति को पाँच तत्वों के लिए सुख-शांति की मंगल कामना किया व जिस प्रकार हमारी दादियों ने परमात्म ज्ञान को सर्व मनुष्य आत्माओं तक पहुंचाया उसे अन्य आत्मायें , जो इस ज्ञान से वंचित है उन्हें देकर उनका भी जीवन सुख-शान्ति से संपन्न बनाने का संकल्प लिया।