छत्तीसगढ़ के सरगुजा में रहने वाली महिला मजदूर, जिन्होंने अपने बचपन में कभी किताबों की शक्ल नहीं देखी. बड़े होकर मजदूरी कर पेट पाला, मजदूरी से ही अपनी दोनों बच्चियों को पढ़ाया और उन्हें खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. अब उनकी दोनों बेटियों ने भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल खेल अपनी मां और प्रदेश का नाम देशभर में ऊंचा कर दिया. इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आइए जानते हैं सरगुजा की इन मां-बेटियों की कहानी...
सरगुजा जिले के सीतापुर में रहने वाली तेरसा एक्का पेटला गांव में मजदूरी करती हैं. बावजूद इसके वह अपनी दोनों बेटियों का पालन-पोषण बखूबी करती हैं. इन्होंने अपनी परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानी और बेटियों को आगे बढ़ाया. इनकी दोनों बेटियों शबनम और नीतू ने अपनी खेल प्रतिभा का लोहा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनवाया और अपनी मेहनत के दम पर ही दोनों राजनांदगांव के प्राइवेट स्कूल में निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रही हैं.
दोनों कुछ दिनों पहले ही जूनियर बास्केटबॉल टीम में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने फ्रांस की राजधानी पेरिस गई थीं. बड़ी बेटी शबनम ने शासकीय कस्तूरबा स्कूल से अपने खेल प्रतिभा के हुनर को निखारा और इसी के दम पर उन्होंने शासकीय साई खेल परिसर में जगह बनाई. आज प्राइवेट स्कूल में निशुल्क शिक्षा ले रहीं शबनम ने कहा कि वह अपने पैरों पर खड़े होकर अपने घर की स्थिति को सुधारना चाहती हैं.
वहीं तेरसा एक्का की दूसरी बेटी नीतू एक्का ने बताया कि उन्हें उनकी मां ने ही आगे पढ़ाई और खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हीं के प्रयासों के कारण वह ऑस्ट्रेलिया जाकर भारत के लिए बास्केटबॉल खेल सकीं. उन्होंने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपनी मां के साथ ही अपने गुरु को भी दिया. उन्होंने बताया कि उनकी मां ने कभी पढ़ाई नहीं की लेकिन, उन्होंने दोनों बहनों को खेलने से भी नहीं रोका. मां ने दोनों को खेलने और पढ़ने के लिए हमेशा सपोर्ट किया, उन्हीं के कारण वे आज इस मुकाम पर पहुंच सकीं.