छत्तीसगढ़

दंतेवाड़ा : मत्स्यपालन से श्रवण ने कमाए चार लाख रूपये...हाथों-हाथ बिकी मछलियां और खुशहाल हुई जिंदगी

Admin2
9 Dec 2020 10:33 AM GMT
दंतेवाड़ा : मत्स्यपालन से श्रवण ने कमाए चार लाख रूपये...हाथों-हाथ बिकी मछलियां और खुशहाल हुई जिंदगी
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तालाब में कमर तक पानी है, श्रवण नाग पानी में बड़ा सा जाल डाल चुके हैं, धीरे-धीरे जाल खींचा जा रहा है, और जाल में सैकंड़ो की संख्या में मछली फंस चुके हैं। श्री नाग के मछली निकालते ही हाथों-हाथ मछलियां बिक भी गयी और वे पैसे लेकर खुशी-खुशी घर की ओर चल पड़े। आज जहां वे माटी और पानी से सोना उगा रहे हैं, कल तक वो बंजर पड़ी भूमि थी जिसमें अब तक सिर्फ दुःख ही दुःख भरे हुए थे। पर जब ब्लाक दंतेवाड़ा अन्तर्गत बड़ेबचेली निवासी कृषक श्री नाग को मत्स्य अधिकारियों द्वारा मछली पालन योजना के बारे में बताया गया तो उन्होंने वर्ष 2017-18 में विभागीय एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधी अंर्तगत अनुदान तथा बैंक ऋण लेकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में तालाब का निर्माण कराया। उनके पास रोजगार के कोई अन्य साधन नहीं थे और घर की स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी। लेकिन उक्त तालाब निर्माण कर विभागीय योजनाओं प्रशिक्षण का लाभ लेकर तकनीकी रूप से मछली पालन से चार लाख रूपय की आमदनी हुई। जिससे श्री नाग ने मोटर सायकल क्रय तथा मकान निमार्ण कार्य किया और साथ ही बैंक का ऋण भी जमा किया । उनका कहना है कि मछली पालन ने मेरी गरीबी का जाल काट लिया है। अब वे अत्यंत प्रसन्न हैं। अब वे अन्य लोंगों से इस योजना का लाभ लेकर आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए प्रेरित करते हैं। दंतेवाड़ा के सहायक संचालक मत्स्य विभाग श्री दीपक बघेल ने बताया की मछली अत्यंत प्रोटीन युक्त सुपाच्य भोजन है। साथ ही इसके तेल में विटामिन डी भी पाया जाता है। पोषण से भरपूर मछली लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अहम भूमिका निभा रही है। जिले के मछली पालकों द्वारा पचांयती तालाबों, जलाशयों में मछुआ सहकारी समिति, मछुआ समूह एवं स्वसहायता समूहों द्वारा पट्टे पर लेकर मछली पालन का कार्य किया जा रहा है। इसी प्रकार जिले में निजी मछली पालकों द्वारा भी स्वयं के व्यय से निर्मित एवं विभिन्न योजनातर्गत निर्मित तालाबों में मछली बीज का संचयन कर उनका रखरखाव तथा प्रबंधन कार्य किया जा रहा है। समय-समय पर मछलियों की अच्छी पैदावार हेतु प्रोटीनयुक्त मत्स्य आहार, सिफेक्स दवाई का मछली पालकों को दिया जाने लगा है। जिससे उन्हे इस आदिवासी बाहुल्य जिले में प्रोटीनयुक्त भोजन, स्वरोजगार उपलब्धता के साथ -साथ अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो रही है। मछलीपालकों के द्वारा क्षेत्र में विशेष रूचि लेकर मछलीपालन का कार्य किया जा रहा है। साथ ही विभाग द्वारा जाल, आईस बाक्स और प्रशिक्षण भी प्रदाय किया जाता है। इसमें कम लागत में अच्छा उन्पादन होता है केवल चोरी से बचाव हेतु देखभाल की जरूरत होती है और मौसम का प्रभाव भी नहीं पड़ता है।


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