छत्तीसगढ़

नकली इंजेक्शन मामले में गंभीर जांच की जरूरत

Admin2
15 May 2021 6:49 AM GMT
नकली इंजेक्शन मामले में गंभीर जांच की जरूरत
x

महामारी में जीवन अनमोल, फिर भी हो रहा खिलवाड़, रेमडेसिविर के कालाबाजारियों से हो दोबारा पूछताछ

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। छत्तीसगढ़ के दवा कारोबारी द्वारा कई राज्यों में नकली रेमडेसिविर खपाने वाले गिरोह के मुख्य आरोपी की कंपनी को इंजेक्शन का आर्डर दिए जाने की जानकारी सामने आने के बाद अब स्थानीय पुलिस को मामले में जांच का दायरा बढ़ाते हुए पूर्व में सामने आए रेमडेसिविर की कालाबाजारी के मामलों की दोबारा और बारिकी से जांच करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में भी रेमडेसिविर का कृत्रिम अभाव पैदाकर इंजेक्शन की कालाबाजारी की गई और मरोजों को दस गुना ज्यादा रेट पर इंजेक्शन खरीदने के लिए मजबूर किया गया। इस मामले में अस्पतालों के साथ दवा कारोबारियों और मेडिकल फिल्ड से जुड़े लोगों के अलावा कुछ ऐसे लोग जो आपदा के नाम पर लोगों को सुविधा पहुंचाने के नाम पर मुनाफा कमाने का धंधा चलाने वालों की भूमिका संदिग्ध है। जिसकी पड़ताल करने की जरूरत है। पुलिस पहले ही कालाबाजारी के मामले में पकड़े गए आरोपियों से सख्ती से पूछताछ करती तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते थे लेकिन पुलिस ने मामूली धाराओं में कार्रवाई कर महज खानापूर्ति की वहीं ड्रग विभाग ने इन मामलों में कोर्ट में केस लगाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली, जबकि पकड़े गए आरोपियों से कड़ी पूछताछ कर उनके पीछे सक्रिय लोगों को बेनकाब किया जाना था। इस पूरे मामले में अस्पतालों की भूमिका की भी सख्ती से जांच की जानी चाहिए।

कालाबाजारी के मामलों को पुलिस ने हल्के में लिया

राजधानी की पुलिस ने रेमडेसिविर कालाबाजारी के मामले को बड़े ही हल्के में लिया और आरोपियों को 151 जैसी मामूली धारा लगाकर जमानत पर छुटने दिया। जबकि अगर पकड़े गए आरोपियों को रिमांड पर लेकर कड़ी पूछताछ की जाती तो बड़े चेहरे बेनकाब हो सकते थे। लेकिन न ही सरकार ने और नही पुलिस ने कालाबाजारी को मामलों को गंभीरता से लिया। कालाबाजारी में दवा कारोबार से जुड़े लोग और अस्पतालों की भूमिका संदिग्ध रही है, इसकी पड़ताल की जानी चाहिए थी। इससे राजधानी और अन्य शहरों में इस्तेमाल किए गए रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी कहां से हो रही है और इंजेक्शन नकली है या असली इसका सच सामने आ सकता था। लेकिन पुलिस बड़े अस्पताल प्रबंधनों और राजनीतिक संरक्षण वाले जिम्मेदारों पर हाथ डालने से बचने के लिए कालाबाजारी के मामलों में खानापूर्ति करती रही। अब नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खपाने वाली कंपनी का रायपुर कनेक्शन सामने आने के बाद पुलिस को कालाबाजारी के मामलों में दोबारा जांच और आरोपियों से फिर से पूछताछ की जरूरत है, ताकि यह पता चल सके कि इंजेक्शन की कालाबाजारी के पीछे आखिर कौन सी ताकत काम रही थी, कहीं ऐसा तो नहीं कि छग में भी नकली इंजेक्शन खपाए गए हों? ऐसी आशंका इसलिए भी है क्योंकि सरकार द्वारा रेमडसिविर की बाजार में बिक्री पर रोक लगाने से पहले बड़े पैमाने पर लोगों ने बाजार से खरीद कर इंजेक्शन अपने मरीजों को लगवाए थे और रेमडसिविर लगने के बाद भी बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हुई थी।

डायमंड एजेंसी से हो पूछताछ

गुजरात की आदिनाथ डिस्पोजल को रेमडेसिविर इंजेक्शन का आर्डर देने वाली डायमंड एजेंसी से भी पुलिस को कड़ी पूछताछ करनी चाहिए कि आखिर उसे इस कंपनी के बारे में कहां से जानकारी मिली। किसके माध्यम से खरीदी तय हुई। यह भी पता करना चाहिए कि डायमंड एजेंसी के अलावा क्या किसी और भी स्थानीय एजेंसी ने उक्त कंपनी से इंजेक्शन खरीदी है, अगर खरीदी है तो क्या उसकी डिलिवरी मिली और यदि डिलिवरी मिली तो इंजेक्शन कहां खपाए गए इसकी भी पड़ताल की जानी चाहिए। जाहिर जब शहर के एक एजेंसी ने उक्त कंपनी को इंजेक्शन के आर्डर दिए तो कई और एजेंसियां भी होंगी जिसे उक्त एजेंसी के बारे जानकारी रही हो और उसने भी इंजेक्शन के लिए आर्डर दिए हों. पुलिस को अब रेमडेसिविर की कालाबाजारी और नकली इंजेक्शन दोनों मामलों में बारीकी से जांच करने की जरूरत है ताकि आपदा को अवसर बनाकर लोगों को लूटने वाले बेनकाब हो सकें।

कहीं सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं थी?

रेमडेसिविर का कृत्रिम अभाव पैदाकर और कालाबाजारियों के माध्यम से जरुरतमंदों को दस गुना ज्यादा कीमत पर इंजेक्शन बेचने के पीछे कहीं राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं थी? पुलिस को इस एंगल से भी मामले की जांच करनी चाहिए। क्योंकि बाजार में रेमडेसिविर इंजेक्शन की बिक्री पर रोक लगाने से पहले इंजेक्शन आसानी से दवा दुकानों में मिल रही थी फिर अचानक इसका शार्टेज और कालाबाजारी होने लगी। अस्पतालों में भी लोग इंजेक्शन का अनाप-शनाप चार्ज लेने लगे। एक तरह से इंजेक्शन के लिए मारामारी की स्थिति निर्मित हो गई। इस हालात के लिए मुनाफा कमाने की मंशा रखने वाले दवा कारोबारी और अस्पताल प्रबंधन के अलावा इन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले जिम्मेदार हो सकते हैं। जिनकी नियत सरकार को बदनाम कर तात्कालिक लाभ कमाना रहा हो। मध्यप्रदेश में पकड़े गए नकली इंजेक्शन के आरोपियों में कई सरकार से जुड़े संगठनों से संबद्ध रखते हैं बावजूद वहां की सरकार और पुलिस ने रासुका के तहत उन पर कार्रवाई करने में कोई गुरेज नहीं की। छत्तीसगढ़ सरकार को भी इस मामले को गंभीरता से लेकर इसकी गहराई से जांच करानी चाहिए।

नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन: मप्र में एक और गिरफ्तारी

इंदौर की विजय नगर पुलिस लगातार नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के कालाबाजारियों को पकड़ रही है. पुलिस ने गुरुवार को 4 अन्य आरोपी पकड़े. एक आरोपी को भोपाल से, एक आरोपी को सांवेर से जबकि 2 अन्य आरोपियों को शहर से गिरफ्तार किया है. अब तक इस मामले पुलिस एक दर्जन से अधिक आरोपियों को हिरासत में ले चुकी है. जानकारी के मुताबिक, इंदौर पुलिस जल्द ही कालाबाजारी के मुख्य आरोपियों सुनील मिश्रा, पुनीत शाह और कौशल वोरा को गुजरात से इंदौर ले आएगी. पुलिस ने भोपाल से आरोपी प्रशांत पाराशर को गिरफ्तार किया है. ये पेशे से इंजीनियर है और सब इंस्पेक्टर की तैयारी कर रहा था. इसने 100 इंजेक्शन मुख्य आरोपी सुनील मिश्रा से खरीदे थे और इंदौर जिले से बाहर बेचे. जानकारी मिली है कि प्रशांत पाराशर कांग्रेस से सक्रिय तौर पर जुड़ा है और संक्रमण के वक्त में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए राजनैतिक दल से दायित्व भी दिए गए थे।

सुविधा नहीं होने के बाद भी मरीजों की भर्ती, फिर रेफर कर रहे निजी अस्पताल

राजधानी के निजी अस्पतालों में कमाई के लिए सरकार के आंख में धूल झोंककर कोविड अस्पताल बनाकर सिर्फ आपदा को अवसर बनाने का रहा है जितना हो सके मरीजों के परिजनों को लूट लो। पैसा देकर भी परिजन अपनों की जान नहीं बचा पा रहे है। इसके लिए कापी हद तक निजी अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेदार माना जा रहा है। एक खबर आ रही है कि एक निजी अस्पताल में सामान्य मरीज को अस्पताल ने सुविधा नहीं होने के बाद भी लोक लुभावन आश्वासन देकर भर्ती करवा लिया, फिर लगातार बिल वसूलते रहे। जब ज्यादा तबीयत बिगड़ गई तो हाथ उठा दिया और जिला अस्पताल रेफर कर दिया, जहां मरीज की मौत हो गई । इस तरह के सैकड़ों घटनाएं कोरोनाकाल के दौरान सामने आए है जिसमें निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर, आक्सीजन,मरीजों के बीमारी के स्पेशयलिस्ट नहीं होने के बाद भी पैसा कमाने के लिए के भर्ती कर लेते है बाद में रेफर का खेल खेलते रहते है। निजी अस्पतालों में मरीजों के जीवन के साथ हो रहे खिलवाड़ को जिला प्रशासन स्वास्थ्य विभाग अब सख्त कार्रवाी करनी चाहिए ये निजी अस्पताल वाले सरकारी नोटिस को कोई तवज्जों नहीं देते है। विगत दिनों जीवन अनमोल अस्पताल, बांठिया अस्पताल में जो मरीजों के साथ हुआ वह सबके सामने है। इसके पहले भी बांठिया अस्पताल की कारगुजारियां और मरीजों के साथ बदतमीजी, अवैध वसूली, दवाइयों की अनाप शनाप उगाही की गई जिसको जनता से रिश्ता समाचार पत्र में प्रमुखता से स्थान दिया।

Next Story