अपराधियों को छुटभैय्ये नेताओं के संरक्षण से कानून-व्यवस्था पर असर
पुलिस अपराधी को छुडाने के लिए फोन लगाने वाले छुटभैय्ये नेताओं की सूची राज्य के खुफिया विभाग को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराए
सरकार और राजनीतिक दलों को पुलिस थानों से सभी छुटभैय्ये नेताओं की जानकारी हर महीने अनिवार्य रूप से लेनी चाहिए
जुआ-सट्टा, ड्रग्स, गांजा एवं अन्य अपराध करने वालों की सही और सटीक जानकारी संबंधित पुलिस थानों के पास रहती है, थानेदार से जानकारी लेकर छुटभैय्ये नेताओं पर लगाम लगाया जा सकता है
छुटभैय्ये नेताओं के कारण राज्य सरकार के अच्छे काम पर भी पलीता लग रहा है और राज्य में गुंडे-माफिया डी-कंपनी जैसे कार्य को अंजाम दे रहे हैं
केरल जैसे छोटे राज्य में है अपराधी को पकडऩे के उपरांत उसे छुडाने फोन करने वाले की सूचना खुफिया विभाग को दी जाती है और संबधित दलों को भी अवगत कराया जाता है। यही कारण है कि वहां अपराध कम हैं। इसी के चलते स्वर्ण तस्करी के मामले में वहां के सीएम का नाम भी उजागर हो गया।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। पुलिस जब भी किसी मामले में किसी आरोपी को पकड़कर थाने लाती है तो उसे छुड़ाने और मामले में कार्रवाई नहीं करने के लिए पुलिस के पास कई फोन आने शुरू हो जाते हैं, तो कुछ मामलों में तो कुछ नेता सरीखे लोग बाकायदा थाने पहुंच कर थाना प्रभारी पर कार्रवाई नहीं करने के लिए दबाव बनाते हैं। ऐसे पिछले कुछ महीनों में कई मामले आए। क्वींस क्लब में गोलीबारी की घटना से लेकर. ड्रग तस्करों, नाइट पार्टियों यहां तक की मोहल्ले में कहा-सुनी और मारपीट के मामले में भी कुछ नेता और पदाधिकारी आरोपियों को बचाने और कार्रवाई नहीं करने के लिए दबाव बनाते हैं। विशेष तौर पर जिस दल की सरकार होती है उसके पदाधिकारी और नेता अपने को बड़ा दिखाने के लिए इस तरह के कृत्य करते हैं। उनके इस कृत्य से सरकार और संबंधित पार्टी की छबि खराब होती है, लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने से ही मतलब होता है।
कार्रवाई हुई नहीं कि छुड़ाने वालों के फोन पहुंचने लगते हैं
राजधानी में जुआ, सट्टा और शराब-गांजा व अन्य नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार जोरों पर है। ये सारे अवैध कारोबार चलाने वालों को किसी न किसी राजनीतिक दलों के नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। पुलिस जब भी इन पर कार्रवाई करती है, ये उन्हें छुड़ाने के लिए सक्रिय हो जाते हैं और पुलिस पर उन्हें छोडऩे के लिए दबाव डालते हैं। कई मामलों में तो ऊंचे लेबल पर पुलिस को फोन पर ही अपराधियों को छोडऩे के निर्देश दे दिए जाते हैं। राजधानी में अपराधियों को किस कदर राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है कि पुलिस किसी भी मामले में बड़ी कार्रवाई करने से पहले दस बार सोचती है। पुलिस ऐसे मामले में तो कार्रवाई कर लेती है जिन वारदातों में आरोपी पहली बार अपराध में संलिप्त होता है या जो घटनाएं आपसी रंजिश, निजी दुश्मनी या अन्य कारणों से घटती है अपराधी या तो स्पाट पर ही या एक दो दिनों में वारदात वाले स्थान में ही पकड़ में आ जाता है। लेकिन ऐसे वारदात जो गैंगवार, जुआ-सट्टा और अवैध शराब. गांजा, व अन्य नशीले पदार्थो की तस्करी और अवैध बिक्री से संबंिधत मामले हो तो आरोपी की धर-पकड़ में अनावश्यक देरी की जाती है और यदि किसी की गिरफ्तारी हो भी जाती है तो इनके सुरक्षा कवच बने कई छुटभैय्ये नेता उन्हें छुड़ाने सक्रिय हो जाते हैं। पुलिस पर खुद भी दबाव बनाते है और बात नहीं बनने पर ऊपर से फोन करवाकर दबाव बनाते हैं। राजधानी में प्राय: हर राजनीतिक दल के निचले स्तर के नेता जो वार्ड स्तर की राजनीति करते है वे ऐसे अपराधियों को संरक्षण प्रदान करते हैं क्योंकि इन्ही के दम पर उनकी राजनीति चमकती है। पार्टी से संबंधित किसी भी कार्य में अपने को बड़े नेताओं की नजरों में चढ़ाने के लिए ऐसे ही अवैध धंधेबाज उन्हें आर्थिक मजबूती प्रदान करते हैं बदले में ये नेता उनका धंधा चमकाने और पुलिस से उन्हें बचाने में मदद करते हैं। पार्टियों के छात्र और युथ विंग के प्राय: हर पदाधिकारियों को सटोरियों-जुआरियों और मोह्ल्लों में अपनी दुकानदारी चलाने वाले अपराधियों को छुड़ाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाते देखा जा सकता है। कई मामलों में पार्टी के बड़े स्तर के नेता भी अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाते हैं, जिससे पुलिस को कार्रवाई से हाथ खींचना पड़ता है, इससे उसकी छबि पर भी असर पड़ता है।
डी कंपनी के तर्ज पर अपराध को बढ़ावा
राजधानी रायपुर में भी मुंबई की डी कंपनी के तर्ज पर अपराध का प्रसार हो रहा है। वार्ड स्तर से लेकर राजनीतिक दलों के छात्र और यूथ विंग के नेता वार्डों-मोहल्लों में अवैध कारोबार और अपराधों में लिप्त लोगों को संरक्षण दे रहे हैं और पुलिस को भी इनके खिलाफ कार्रवाई करने से रोकते हैं। ये तथाकथित नेता अपनी राजनीति चमकाने और बड़े नेताओं की नजरों में चढऩे के लिए इन्हीं अपराधियों के दम पर पार्टी कार्यक्रमों और आयोजनों के लिए मोटे फंड जुगाडते हैं और अपना हित साधते हैं। इन्हीं अपराधियों के आड़ में ये लोग हफ्ता वसूली से लेकर कारोबारियों, उद्योगपतियों से चंदा वसूली करते हैं। नहीं देने वालों को ब्लैक मेल करते हैं। अपराधियों को संरक्षण की आड़ में ऐसे लोग खुद भी अप्रत्यक्ष रूप से अपराधों में सम्मिलित होते हैं।
सरकार को बदनाम करने की कोशिश तो नहीं
अपराधियों को संरक्षण देने और प्रोत्साहित करने वालों के इस कृत्य के पीछे कहीं सरकार को बदनाम करने की कोशिश तो नहीं हो रही है। सत्ताधारी दलों में ऐसे लोगों की भी बड़ी तादात होती है जो निजी हित पूरा नहीं होने से अपनी ही सरकार से नाराज रहते हैं। ऐसे लोग सरकार के लिए मुसीबत खड़ी करने और उसकी छबि को खराब करने के लिए कोई भी अवसर नहीं छोड़ते, मौका मिला की लपक लेते हैं। ऐसे लोग अपने कार्यों और हरकतों से सरकार को बदनाम करने की हर कोशिश करते हैं। अपराधियों को संरक्षण देने वालों की मंशा भी तो कहीं ऐसा ही तो नहीं है। सरकार जुलाई महीने में अपना ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। कहीं यह सब कुछ इसे देखकर ही तो नहीं किया जा रहा है। सीएम को इसे संज्ञान में लेकर इस तरह की हरकतों पर लगाम कसना चाहिए।
पुलिस पर दबाव बनाने वालों की जानकारी मांगे सरकार
सरकार को ऐसे सभी लोगों की जानकारी पुलिस थानों से मांगनी चाहिए। किस मामले में किस नेता-पदाधिकारी ने आरोपी को छोडऩे के लिए थानेदार को फोन किया इसकी डिटेल हर महीने मांगा जाना चाहिए। पुलिस वाले न दे तो थाना प्रभारी का काल डिटेल निकालकर पता करना चाहिए कि उससे कब किस नेता ने बात की, इससे यह पता चलेगा कि ऐसे कितने लोग हैं जो पुलिस कार्रवाई में हस्तक्षेप कर आरोपियों को बचाने का काम करते हैं। सरकार इस तरह अपने उन नेताओं और पदाधिकारियों की जानकारी हासिल कर सकेगी जो अपने कृत्यों से सरकार और पार्टी को बदनाम कर उसकी छबि खराब कर रहे हैं। पुलिस को भी ऐसे नेताओं के नाम और मोबाइल नंबर संबंधित राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराना चाहिए और बताना चाहिए कि उक्त नेता द्वारा फलां आरोपी को छोडऩे अथवा मामले में कार्रवाई नहीं करने के लिए पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे राजनीतिक दल को यह तो पता चलेगा कि उसका फलां नेता अपने पद और पार्टी के नाम का किस तरह गलत फायदा उठा रहा है।