NAGLOK की कई कहानियां आपने धार्मिक कथाओं में जरूर सुनी होगी। लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ के नागलोक के बारे में बताने जा रहें हैं। छत्तीसगढ़ के इस नकलोक में सांपों की कई प्रजातियां है। जिसे देखने देश विदेश से पर्यटक यहां पहुंचते हैं। लेकिन खास बात यह है कि अब इस नागलोक में अब देश का दूसरा स्नेक रिसर्च सेंटर बनाने की तैयारी की जा रही है। जिससे इस क्षेत्र में पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा।
जशपुर के डीएफओ जितेंद्र उपाध्याय ने बताया कि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने जशपुर जिले में स्नेक रिसर्च सेंटर शुरू करने के लिए सेंट्रल जु अथॉरिटी को दो साल पहले पत्र लिखा था। इसमें स्नेक पार्क और स्नेक रिसर्च सेंटर, सर्प विष संग्रहण केंद्र शुरू करने की अनुमति मांगी गई थी। लेकिन कुछ महीने पहले ही जु अथॉरिटी को संसोधित प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है । जिससे जल्द ही अनुमति मिलने की संभावना जताई जा रही है। केंद्रीय जु अथॉरिटी के नियमों का पालन करते हुए तपकरा के इस स्नेक पार्क को विकसित किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ के तपकरा क्षेत्र में कई गांव ऐसे गई जहां सांपो का बसेरा है। जीव विज्ञान से जुड़े जानकारों ने जंगलों और यहां के वातावरण को सर्प समुदाय के लिए अनुकूल बताया है। इलाके में भुरभुरी मिट्टी होने के कारण दीमक यहां अपनी बांबियां (मिट्टी के टीले) बना लेते हैं जिनमें घुस कर सांपों के जोड़े प्रजनन करते हैं और दीमकों को चट कर जाते हैं। इस इलाके में जाने से पहले ही स्थानीय लोग सावधानी रखने की हिदायत दे देते हैं।
दूसरा रिसर्च सेंटर, एंटी वेनम बनाने में मिलेगी मदद जु ऑथरिटी ऑफ इंडिया की अनुमति मिलते ही जल्द ही रिसर्च सेंटर पर काम शुरू होगा। बताया जा रहा है कि चेन्नई स्थित द मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट के बाद छत्तीसगढ़ के जशपुर में भारत का दूसरा सर्प विष संग्रहण केंद्र होगा। देश में सर्पदंश पीड़ितों के इलाज में उपयोग होने वाली दवा एंटी स्नेक वेनम तैयार करने के लिए इससे मदद मिलेगी है। राज्य सरकार के वन विभाग ने सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया को इसका भी प्रस्ताव भेजा है। इसके अलावा वन विभाग ने दो रेंजर को आवश्यक प्रशिक्षण के लिए चेन्नई भेजा था।
यहां हैं सांपों की 60 प्रजातियां,संरक्षण बनेगा स्नेक पार्क जशपुर के तपकरा क्षेत्र में सांपों की सबसे ज्यादा और विषैली प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें कोबरा की चार और करैत की तीन विषैली प्रजातियां,मशहुर किंग कोबरा, रसेल वाइपर और माम्बा जैसे सांप भी पाए जाते हैं। लगभग 60 प्रजातियों के सर्प यहां के जंगलों में पाए जाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इस इलाके में आदिवासियों के आने के बाद सांपों की संख्या में वृद्धि हुई है। यहां देश-विदेश के पर्यावरण प्रेमी व सर्प मित्र पहुंचते हैं। इसके बावजूद भी यहां देश-विदेश के पर्यावरण प्रेमी व सर्प मित्र पहुंचते हैं। वह सांपों की तरह-तरह की प्रजातियों पर शोध भी करते हैं। यहां सर्पदंश के बावजूद भी यहां के स्थानीय निवासी सांपों से बैर नहीं रखते।