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रायपुर। जनता से रिश्ता के पाठक ने होली पर्व पर समसामयिक व्यंग्य रचना ई मेल किया है.
बुरा न मानो...होली है।
फूलों से लदे टेसू से
मुलाकात हो गई उस दिन।
मैंने कहा-
बहुत मुस्कुरा रहे हो
रंगने के लिए इतरा रहे हो।
उसने कहा -
लोगों में
नॉन केमिकल और
आर्गेनिक का डिमांड है
मल्टीनेशनल प्रोडक्ट ,
अनेकानेक ब्रांड है ।
बुरा न मानो होली है
वे कहते।
एक दूजे को रंग जाते हैं
अबीर गुलाल लगाते है
और हम कहां??
रंगे हुए उन्हें देख हम
मन्द- मन्द मुस्काते हैं।
तुमने देख लिया ,
बस यही काफी है।
मेरी ओर से आपको
होली की शुभकामनाएं हैं।।
रोशन साहू ( मोखला )
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