- जमीन-प्लाट और फ्लैट खरीदने वालों के साथ धोखाधड़ी
- रेरा में बिल्डरों के खिलाफ आवेदनों की भरमार
- रेरा में हाई कोर्ट के मुकाबले कम समय में मिल रहा लोगों को न्याय
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में कोरोना काल के बाद से रियल स्टेट का कारोबार औंधे मुंह गिर गया है। राजधानी के पौश इलाकों से लेकर आउटरों में बड़ी-बड़ी कालोनी डेव्हल्प करने वाले बिल्डरों के करोड़ों रुपए कई प्रोजेक्ट्स में फंसे हुए हैं। हाल यह है कि मकानों-फ्लैट्स को खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा है। बिल्डर अपने फ्लैट्स-मकान बेचने के लिए तरह-तरह के स्कीम और प्रलोभन लेकर ग्राहकों को लुभा रहे हैं बावजूद प्रापर्टी खरीदी में बूम नहीं आ रहा है। इसके पीछे गाइड लाइन दरों में छूट भी एक बड़ा कारण है जिसके कारण लोग छोटा प्लाट लेकर स्वतंत्र घर बनाने में ज्यादा रूचि ले रहे हैं। इससे भी बिल्डरों के महंगे प्रोजेक्ट पर असर पड़ा है।
लुभावने स्कीम और सुविधाओं के नाम पर धोखा
बड़े-बड़े बिल्डर अपना प्लाट-मकान बेचने के लिए तरह-तरह के लुभावने स्कीम और उपहार व छूट का लालच देकर ग्राहकों को फांसते हैं और बाद में उन्हें कई सुविधाओं और छूट से वंचित कर घटिया निर्माण के साथ मकान सौंप देते हैं। ब्रोशर में उल्लेख सुविधाओं का भी ख्याल नहीं रखते और ग्राहकों को आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसके चलते पीडि़त ग्राहकों को रेरा और उपभोक्ता फोरम का चक्क्र लगाना पड़ता है। ऐसे बिल्डरों के खिलाफ रेरा ने सख्ती दिखाई है। पिछले कई सालों तक बिल्डरों ने जमीन-प्लाट, बंगला, फ्लेट बेचने के नाम पर लुभावने ब्रोशर से लोगों को अपनी प्रापर्टी में निवेश कराने वाले बिल्डरों ने अंधाधुंध कमाई कर मालामाल हो गए और निवेशकों को न जमीन मिला न फ्लेट, जब बिल्डरों से निवेशकों ने निवेश के बदले अब तक जमीन, प्लाट, बंगलो, फ्लेेट नहीं मिलने पर गुहार लगाई तो बिल्डरों ने मसल पावर का उपयोग करना शुरू कर दिया। हार कर निवेशकों ने रेरा में बिल्डरों के खिलाफ आवेदन लगाए और देखते ही देखते 2-3 तीन में ही उनके पक्ष में फैसला आ गया।
बुकिंग से पहले देते हैं लोगों को प्रलोभन
कॉलोनाइजर अपनी कॉलोनी में लोगों को बुकिंग करते समय कई तरह के प्रलोभन देते हैं। जिसमें आसान किश्तों पर प्लाट व डुप्लेक्स उपलब्ध कराना, सर्व सुविधा की बात करना, नगद प्लाट खरीदने पर आकर्षक उपहार में चार पहिया दो पहिया वाहन देना। आसान किश्तों को सुविधा बैंकों से फाइनेंस कराने की बात भी इनके द्वारा की जाती है। कॉलोनी के प्रचार-प्रसार और चमक-धमक देखकर कई लोग इन कॉलोनी वालों को झांसे में आ जाते हैं। प्लाट बेचने के लिए संचालक द्वारा बेराजगार युवकों का उपयोग किया जाता है। उन्हें अच्छे वेतन का लालच देकर कॉलोनी के लिए ग्राहक खोजने की जिम्मेदारी दी जाती है। वहीं जहां कॉलोनी रहती है वहां भी एक साइट आफिस बनाकर वहां आने वाले लोगों को अपने झांसे में लिया जाता है।
भवनों का किया जाता है घटिया निर्माण
कॉलोनी में कई लोगों द्वारा भवन बुक किए जाते हैं और कॉलोनी ही इन ग्राहकों के मकान बनाने का जिम्मा लेती हैं। जैसे प्रचार-प्रसार की फोटो में मकान दिखाए जाते हैं। उसी डिजाइन के मकान बनाकर तैयार किए जाते हैं, लेकिन मकान निर्माण में गुणवत्ता का खयाल बिलकुल नहीं रखा जाता। कम समय में मकान बनाकर लोगों को घर की चाबी सौंप दी जाती है। कुछ सालों में ही इन मकानों की दीवार पिलर छोड़ देती हैं दीवार चटकने लगती हैं। तब कही कॉलोनी में रहने वाले लोगों को कॉलोनी द्वारा मकान बनाते समय गुणवत्ता की हकीकत का पता चलता है। हकीकत पता लगने के बाद इन लोगों के पास केवल पछताना ही रह जाता है। या फिर उस कॉलोनी से मकान बेचना अथवा किराए पर देना ही ये लोग उचित समझते हैं।
रेरा-उपभोक्ता फोरम से मिल रहा न्याय
रेरा ने आए आवेदनों की समीक्षा कर उस पर सुनवाई की और बिल्डरों के अन्याय से निवेशकों को न्याय दिलाने में महति भूमिका अदा कर रही है। रेरा के डर से बाकी बिल्डरों ने फर्जीवाड़ा बंद करने के साथ अपनी लाखों की प्रापर्टी को औने-पौैने दाम में बेचने के लिए तैयार दिखाई दे रहे है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग और राज्य उपभोक्ता आयोग में ज्यादातर ऐसे मामले दायर हो रहे है जिसमें बिल्डर ने समय पर फ्लेट, प्लाट, बंगला का पजेशन नहीं दिया। या पिछले कई सालों से निवेशकों को घुमाते रहे है। पिछले एक साल में उपभोक्ता अदालतों में 2 हजार से ज्यादा केस आए है। इनंमें से 1012 मामलों में फैसला भी हो चुका है। पहले यह चलन नहीं था, लोग हाई कोर्ट का रूख करते थे, उपभोक्ता अदालतों में कुछ ही मामले इस तरह के आते थे। उपभोक्ता अदालतों में दायर होने वाले कुल मामलों में अब 20 प्रतिशत मामले बिल्डर -खरीदार विवादों से संबंधित है, जो पहले 5 प्रतिशत भी नहीं थे,बिलडखरों के खिलाफ खरीदारों व्दारा कई मंचों पर शिकायत की जाती है, पहला रेरा, दूसरा कोर्ट और तीसरा उपभोक्ता आयोग है। सरकार ने गाइट लाइन जारी कर निवेशकों को राहत पहुंचे बताया कि उपभोक्ता अपनी शिकायत एक सादे कागज पर दायर कर सकते है। सभी बिल और दस्तावेज संलग्न करने के साथ मुआवजे की मांग हो तो मामूली कोर्ट फीस लगती है। उदाहरण के लिए अगर 20 लाख का मुआवजा मांगते है तो 400 रुपए फीस लगती है। वकील की भी जरूरत नहीं पड़ती है। आप चाहे तो अपना केस खुद लड़ सकते है।
उपभोक्ता फोरम में शीघ्र फैसले
जमीन संबंधी जानकार विशेषज्ञों ने निवेशकों से कहा है कि वो रेरा में अपनी शिकायतों को दर्ज करा सकते है। जहां उपभोक्ता अदालतों में ज्यादतर मालों में सिर्फ 3 महीने में पैशले आ रहा है, एक भी मामला अभी तक ऐसा सामने नहीं आया जिसमें फैसला आने में 2 साल से ज्यादा समय लगा हो। उपभोक्ता आयोग में शिकायत करना आसान है, अगर दिल्ली का रहने वाला व्यक्ति रायपुर में फ्लेट खरीदता है तो उपभोक्ता संरक्षण कानून पीडि़त व्यक्ति को यह हक देता है कि वह दिल्ली में ही शिकायत दर्ज करा सकता है। फ्लेट खरीदारों को जब समय पर पजेशन नहीं मिलता तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या होम लोन की ईएमआई चुकाने की आती है। इसमे ंकही से भी राहत नहीं मिल पाता। जबकि उपभोक्ता अदालतों के प्रावधानों के मुताबिक जब तक केस चलता है, ईएमआई से छूट म्मिल जाती है। रेरा में अक्सर बिल्डर को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है। ऐसे मे ंपीडि़त का न्याय पाने का लक्ष््य अधूरा रह जाता है। इसलिए उपभोक्ता फोरम का रूख कर रहे है। कोर्ट में वकील की भारी खर्च होता है। वहीं फैसला आने में ही 5-5 साल लग जाते है। उपभोक्ता आयोग में वकील की जरूरत नहीं पीडि़त खुद अपना केस लड़ सकता है। उपभोक्ता आयोग के समक्ष केस दायर करने पर मध्यस्थता की प्रक्रिया से भी मामला जल्द सुलझने में मदद मिल रही है। उसके बाद समय सीमा के भीतर फैसले पर अमल जरूरी होता है।