ड्रग विभाग में हेराफेरी, भ्रष्टाचार चरम पर
रायपुर (जसेरि)। खाद्य एवं औषधि विभाग द्वारा करोड़ों के नकली आयुर्वेदिक दवा जब्त करने के मामले में जांच को उलझाने और आरोपियों को बचाने का षडयंत्र किया जा रहा है। जब्त दवाओं की चोरी के मामले में विभागीय अफसर खाली डिब्बे दिखाकर मामले को हल्का करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि छापेमारी के दौरान ड्रग अफसरों ने दवा गायब कर खाली डिब्बे और कार्टून की जब्ती दिखाकर मामले को छोटा कर आरोपियों को बचने का अवसर दे दिया है। चोरी के मामले में खाली डिब्बों की बरामदगी पर पुलिस को मुकम्मल जांच कर यह पता करना चाहिए था कि डिब्बों में दवा थी या सचमुच खाली डिब्बे ही मिले थे। फार्मासिस्ट और दवा कारोबारी इसे अफसरों और आरोपियों के बीच मिलीभगत बताते हुए खाली डिब्बे की जब्ती दिखाकर करोड़ों की दवाओं को गायब कर देने का आरोप लगा रहे हैं। ड्रग विभाग फेंक पैसा, पी पानी उसमे है काहे की आना कानी, ये कहावत को विभाग खुले तौर पर चरितार्थ कर रहा है। जांच को प्रभावित करने के लिए नकली दवाओं की जब्ती गायब करने के लिए करोड़ों की लेनदेन होने की आशंका जताई जा रही है।
खबर यह भी आ रही है 20 करोड़ों का लेनदेन का नकली दवाइयों को हटाया गया चोरी की घटना काल्पनिक घटना है ऐसा जानकारों का और दवाई विक्रेताओं का कहना है कि नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने यह बताया कि पूरे बाजार में चर्चा है छत्तीसगढ़ में नकली दवा सबसे ज्यादा बिकती है और यहां की पुलिस यहां के अधिकारी सभी लोग पैसे का लेनदेन खुलेआम करते हैं चोरी गई दवा की जगह पु_ा जब्ती कर गरीब देवार बस्ती की महिलाओं को आरोपी बनाकर पेश कर दिया गया। राज्य के विपक्ष के नेताओं और कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी अभी तक नकली दवाओं के मामले में कोई आवाज नहीं उठाई है। आश्चर्य का विषय है कि छत्तीसगढ़ की जनता नकली दवाइयों की मार झेल रही ह,ै महंगाई की मार झेल रही है और दवाइयों की ब्लैक मार्केटिंग की मार झेल रही है। कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार में स्वास्थ विभाग का पूरा अमला लिप्त है इसके बावजूद जनप्रतिनिधियों का खामोश रहना और मामले में लीपापोती की कोशिश होना शासन-प्रशासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। नकली दवा की जब्ती और जांच में ही लीपापोती अकेला मामला नहीं है।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अफसर अन्य विभागीय कार्यो में भी मनमाने फैसले करने के साथ अवैध कमायी के लिए भी पद और ओहदे का इस्तेमाल करते हैं। जानकारी के अनुसार विभाग में पूर्व में 16 औषधि निरीक्षक पदस्थ थे बिलासपुर नसबंदी कांड के बाद थोक के भाव में औषधि निरीक्षकों की भर्ती 112 पदों पर हुयी है और पूर्व में पदस्थ 16 औषधि निरीक्षकों को पदोन्नत कर सहायक औषधि नियंत्रक बनाया गया है। लेकिन 112 औषधि निरीक्षकों की भर्ती करने से विभाग या शासन को कोई भी फायदा नहीं हुआ उल्टा शासन का पैसा इनको वेतन देकर लाखों रूपये का नुकसान हो रहा है पहले भी एक जिले में एक औषधि निरीक्षक द्वारा कार्य / कार्यवाही किया जाता था उतना ही थोक के भाव में भर्ती होने के बाद भी हो रहा है थोक के भाव में औषधि निरीक्षकों होने से मेडिकल व्यवसायी परेशान हो रहे हैं। दवा कारोबारियों का कहना है कि पहले साल में एक बार निरीक्षण के एवज में रिश्वत देना पड़ता है अब हर 2-3 महीने में देना पड़ता है। अधिकारी खुलेआम वसूली और रिश्वतखोरी कर रहे हैं। चाहे नशे की दवा हो या नकली दवाई सभी मामले में खुले आम सौदेबाजी कर छग की जनता को नकली दवाई और नशा परोसा जा रहा है। एक होलसेल दवा विक्रेता ने जो पूर्व में विक्रेता संघ के पदाधिकारी रहे उन्होंने (नाम नहीं छापने के शर्त में बताया) मुख्यमंत्री भुपेश बघेल से जनता से रिश्ता के माध्यम से अपील की है। कि ड्रग अफसरों के भ्रष्टाचार को संज्ञान में लेकर गहराई से जांच कराएं तो कई अधिकारी नप जाएंगे।
फर्म फार्मासिस्ट नहीं पाये जानें या नकली दवाई की स्टॉक रिकार्ड सही नहीं पाये जाने पर रेट लाखों रूपये तक पहुंच जाती है। सहायक औषधि नियंत्रकों/औषधि निरीक्षकों द्वारा किराये के फार्मासिस्ट वाले फर्मों का औषधि लायसेंस जारी किया जाता है जो उनके लिये अवैध वसूली का जरिया होता है क्योंकि किराये के फार्मासिस्ट को 30 हजार से 40 हजार सालाना के दर से किराये पर फार्मासिस्ट लिया जाता है इस तरह देखें तो फार्मासिस्ट को तीन हजार से कम पड़ता है इससे ज्यादा तो दिहाड़ी मजदूर कमा लेता है तो फार्मासिस्ट का दुकान पर बैठने का सवाल ही नहीं उठता। किराये के फार्मासिस्ट वाला धंधा में रोक लगाने के लिये जो फार्मासिस्ट है वहीं दुकान का मालिक हो इस स्थिति में औषधि अनुज्ञप्ति जारी किया जाना चाहिये। औषधि निरीक्षक/खाद्य सुरक्षा अधिकारी निरीक्षण के बहाने घर पर या अपने निजी कार्य निपटाते हैं कार्यालयों में दौरा कार्यक्रम के लिये कोई रजिस्टर नहीं होता और तो और कार्यालय के कर्मचारियों को कोई सूचना नहीं होता है कि दौरे पर हैं या घर पर हैं। नवीन जिलों में पदस्थ अधिकारी/कर्मचारी अपने मुख्यालय में निवास नहीं करते और डेली अप-डाउन करते हैं जो अपने मनमर्जी से सुबह 11।00 - 11।30 बजे तक आते हैं और भोजन अवकाश के बाद कार्यालय से गायब हो जाते हैं।
घर बैठे निरीक्षण कर लेते है यात्रा भत्ता : औषधि निरीक्षकों द्वारा फर्म का निरीक्षण घर बैठे-बैठे किया जाता है। औषधि निरीक्षक मालिक से इंस्पेक्शन बुक मंगा कर आफिस / घर पर मोटर सायकल से यात्रा दिखाकर भत्ता लेते हैं। क्या शासन को ऐसे घुसखोर औषधि निरीक्षकों को यात्रा भत्ता दिया जाना न्यायसंगत होगा। साथ ही सहायक औषधि नियंत्रक जिनको प्रशासनिक अनुभव नहीं होता उनको मुख्यालय में स्थापना प्रभारी अधिकारी बनाया गया है ।