जाकिर घुरसेना
मरवारी उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने शानदार जीत दर्ज की है। जनता से रिश्ता ने पहले ही इस बात का अनुमान जताया था कि मरवाही की जनता कांग्रेस के पक्ष में अपना भरोसा जतायेगी और वही हुआ। भाजपा सत्ता में रहते हुए जिस तरह चुनाव में जी-जान से लड़ती थी, ऐसा जज्बा मरवाही में कहीं भी दिखाई नहीं दिया, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। ऐसा लगता है कि 15 साल सत्ता में रहने के कारण नेता-कायकर्ता अघा गए हैं या फिर सत्ता चले जाने के गम से उबर नहीं पाए हैं। बड़े नेताओं के ठंडे पडऩे से कार्यकर्ता भी हताश दिखे। कांग्रेस की इस शानदार जीत में प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम की मेहनत साफ नजर आया। वे भूपेश बघेल के सलाह का पालन करते हुए मरवाही में शुरू से अंत तक जीत का परिणाम आते तक डटे रहे।
उपचुनाव में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार से था, जोगी कांग्रेस का कोई प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं होने का फायदा मिला और इससे मुकाबला पूरी तरह से एकतरफा हो गया। जोगी परिवार के सपोर्ट के बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी का जोगी के गांव से पिछड़ जाना इस बात की तसदीक करती है कि जनता भूपेश सरकार के काम से खुश है जनता से रिश्ता ने अपने चुनाव पूर्व के अनुमानों में इस बात की सम्भावना भी जतायी थी। चुनाव की घोषणा होते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मरवाही में कांग्रेस के जीतने की घोषणा कर दी थी और मतों की गिनती में पहले दौर से ही कांग्रेस के डॉ.ध्रुव भाजपा के डॉ. गंभीर से आगे रहे जो अंतिम दौर तक चला और जीत हासिल किया वहां की जनता ने मुख्यमंत्री की बात को सही साबित कर दिया। मरवाही चुनाव परिणाम आने के बाद सियासी गलियारे में लोग चर्चा कर रहे हैं कि इस चुनाव में किसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ लोग नफा नुकसान पर चर्चा कर रहे हैं। लोग यह भी चर्चा कर रहे हैं कि भूपेश बघेल का दिल्ली दरबार में कद तो बढ़ा ही है साथ ही कोरबा विधायक और प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार साबित हुए निश्चित तौर पर उनका कद प्रदेश कांग्रेस संगठन में बढ़ेगी। जिस दिन से मरवाही उपचुनाव की घोषणा हुई उस दिन से मरवाही में डटे रहे। जयसिंह ने मरवाही में अपनी क्षमता का लोहा मनवा दिया है। मरवाही का मुकाबला तो वैसे भाजपा और कांग्रेस के बीच था पर वास्तव में यह कांग्रेस-भाजपा न होकर जोगी परिवार बनाम भूपेश बघेल हो गया था। एक प्रकार से यह मुकाबला अमर अग्रवाल और जयंिसंह अग्रवाल के बीच भी था।
जोगी परिवार ने भाजपा को समर्थन देकर अपनी खोई हुई ताकत को वापस पाने की सोची थी, लेकिन ऐसा कर वे अपनी बची खुची ताकत से भी हाथ धो बैठी। कुल जमा चार विधायकों में दो का झुकाव कांग्रेस की ओर था तो दो का भाजपा की ओर। कुल मिलाकर प्रतिष्ठा पूर्ण लड़ाई में कांग्रेस ने बाजी मार ली और उसने जोगी कांग्रेस को मरवाही से हमेशा के लिए खत्म कर अब जोगी कांग्रेस को मरवाही से बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर कर दिया है।
ऐसा है मरवाही का राजनीतिक इतिहास
राज्य गठन और अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद रामदयाल उइके जो भाजपा के तत्कालीन विधायक थे, उन्होंने उस वक्त अजीत जोगी के लिए यह सीट छोड़ी थी। अजीत जोगी का गृह ग्राम भी इसी क्षेत्र में है। इसके बाद से यह सीट लगातार कांग्रेस के कब्जे में रही। पिछले विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया और इस सीट से चुनाव जीते थे। उनके निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस जीत के साथ ही कांग्रेस के विधायकों की संख्या 69 से बढ़कर 70 हो गई है।
जोगी परिवार ने भाजपा को समर्थन देकर अपनी खोई हुई ताकत को वापस पाने की सोची थी, लेकिन ऐसा कर वे अपनी बची खुची ताकत से भी हाथ धो बैठी। कुल जमा चार विधायकों में दो का झुकाव कांग्रेस की ओर था तो दो का भाजपा की ओर। कुल मिलाकर प्रतिष्ठा पूर्ण लड़ाई में कांग्रेस ने बाजी मार ली और उसने जोगी कांग्रेस को मरवाही से हमेशा के लिए खत्म कर अब जोगी कांग्रेस को मरवाही से बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर कर दिया है।
ऐसा है मरवाही का राजनीतिक इतिहास : राज्य गठन और अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद रामदयाल उइके जो भाजपा के तत्कालीन विधायक थे, उन्होंने उस वक्त अजीत जोगी के लिए यह सीट छोड़ी थी। अजीत जोगी का गृह ग्राम भी इसी क्षेत्र में है। इसके बाद से यह सीट लगातार कांग्रेस के कब्जे में रही। पिछले विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया और इस सीट से चुनाव जीते थे। उनके निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस जीत के साथ ही कांग्रेस के विधायकों की संख्या 69 से बढ़कर 70 हो गई है।