- कांग्रेस के तथाकथित सिपहसालारों ने ही पीठ पर घोपा छुरा, परिणाम से कांग्रेस पार्टी आहत हुई
- प्रियंका गांधी के कैंपेन को भुनाने में बरती लापरवाही ने कांग्रेस को गर्त में धकेल दिया
- 28-30 मार्च को उत्तरप्रदेश के हारे हुए प्रत्याशी अपना दुखड़ा सबूतों के साथ आलाकमान को देने जा रहे है।
- यूपी प्रवक्ता जिशान हैदर जिन्होंने आवाज उठाई थी गद्दार नेताओं के खिलाफ वह भी सबूतों के साथ दिल्ली में अपनी गुहार लगाएंगे।
- 24 मार्च को विधानसभा के प्रत्याशियों ने आलाकमान से मिलकर शिकायतों को पुलिंदा भी दिया
- पार्टी आलाकमान ने वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े के एक समाचार वीडियो को संज्ञान में लेकर गंभीरता से शिकायतों में शामिल किया है
राजनीतिक संवाददाता
रायपुर। पिछले दिनों यूपी विधानसभा चुनाव में एक पुरानी कहावत चरितार्थ हुई जिसमें छाछ से मक्खन को बना लिया, लेकिन घी बनाने से कांग्रेसी चूक गए। इसके पीछे कारणों पर नजर डाले तो साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि चुनाव के पहले ही दौर में प्रियंका गांधी ने कैंपेन शुरू कर लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे ने पूरे यूपी में तहलका मचा दिया था। महिलाओं की भीड़ कांग्रेस के समर्थन में उमड़ पड़ी थी। यूपी में आम कांग्रेसजनों की शिकायत आलाकमान के पास लगातार पहुंच रही है। कुछ हारे हुए उम्मीदवार पैसों के लेनदेन की भी शिकायत लेकर आलाकमान से पुख्ता सबूतों के साथ पेश हो चुके है। यूपी में आम कांग्रेसजनों का मानना है कि तथाकथित आरएसएस के छुपे हुए एजेंट और तथाकथित नेता के कारण कांग्रेस की दुर्गति हुई है। यूपी के तमाम छोटे बड़े नेताओं ने यहां तक कि नाम लेकर आमलाकमान से शिकायत की है। और कमोबेश यूपी में सभी कांग्रेसजन चुनाव प्रभारियों की सूची लेकर जिसमें यूपी प्रभारी सचिव राजेश तिवारी, संदीप सिंह, प्रदीप नरवाल और पीएल पुनिया के परिवार तक की शिकायत उपर पहुंचाई है। स्थानीय कांग्रेसियों ने कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के लड़की हूं लड़ सकती हूं को भुना नहीं पाए कि बात भी की है। जिसके कारण विपरीत परिणाम आए, यदि ये लोग इमानदारी से कांग्रेस के पक्ष में काम करते तो परिणाम कुछ अलग होते। राजनीतिक पंडितों ने प्रियंका गांधी में उनके दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की झलक देखी थी, यूपी चुनाव में उनकी दूरदर्शिता का झलक दिखा जिसका तहत उन्होंने लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा देकर महिलाओं को अपने पाले में लाने की भरपूर कोशिश की लेकिन विभीषणों ने प्रियंका गांधी के मंसूबे पर पानी फेर दिया। जिसके कारण यूपी में महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में जमकर वोटिंग की। चुनाव परिणाम से मुख्यमंत्री भूूपेश बघेल भी आहत हुए, जिन पर उन्होंने विश्वास किया, उन्हीं लोगों ने उनके पीठ में छुरा घोपा। कांग्रेस की यूपी में जिस तरह की दुर्गति हुई उसके लिए ये तीनों-चारों विभीषणों को मुख्य जिम्मेदार माना जा रहा है। भाजपा की विचारधारा ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। जो एक समय में कांग्रेस की ताकत हुआ करती थी। लोग खुद को कांग्रेसी कहलाने में गर्व महसूस करते थे। लेकिन आज कांग्रेसी कहलाने में हिचकिचाने लगे हैं। अभी हाल में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की हालत और भी पतली कर दी है। लगातार कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम होते जा रहा है। और कांग्रेसी अभी भी इस मुगालते से निकल ही नहीं रहे हैं कि उनके भी अच्छे दिन आएंगे। आज ऐसा हो गया है भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिलते। कांग्रेस के पास बड़े नेताओं का अभाव सा हो गया है। बड़े नेताओं की कमी हो गई है। बचे-खुचे बड़े नेता जी 23 का ग्रुप भी अलग थलग हो गया है। हालांकि जी 23 ग्रुप से सोनिया गांधी खुद बात कर उन्हें महत्वपूर्ण पद देने का भी प्रस्ताव रखी हैं। लेकिन अब लगातार एक के बाद एक नेता कांग्रेस से अलग होते गए। आज कांग्रेस में बिखराव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। कांग्रेस में कार्यकत्र्ता कम और नेता ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। पार्टी हाईकमान के विश्वासपात्र और करीबी समझे जाने वाले आप और भाजपाई हो रहे हैं। हार के बाद हार मिलने से कार्यकर्ताओं में बेचैनी और असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस की हालत पतली कर दी। जी-23 नेताओं का ग्रुप ऐक्टिव हो चुका है। लेकिन कांग्रेस आलाकमान खामोश है। पिछले चुनावों के परिणामो को देखने से पता चलता है कि देश में सत्तासीन भाजपा के हर चाल को आत्ममुग्ध कांग्रेसी समझने में चूक करते गए। हाल में द कश्मीर फाइल्स फिल्म रिलीज़ होने के बाद देखा जाये तो भी कांग्रेसी पीछे रह गए। जब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार थी फिर कश्मीरी पंडितो के दुर्दशा के लिए दूसरी पार्टी जिम्मेदार कैसे। इस बात को भी कांग्रेसी देश की जनता के सामने दमदारी से नहीं रख सके। इस बीच कपिल सिब्बल ने भी बयान दिया था कि 2014 के बाद 177 सांसदों और विधायकों के अलावा 222 उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस छोड़ दी। किसी दूसरी पार्टी में इस तरह का पलायन नहीं देखा गया है। जो भी लोग कांग्रेस नेतृत्व के काफी करीब थे, वे छोड़कर चले गए।
वर्षों से पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन और चुनाव की मांग हो रही है जी 23 ग्रुप भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग को लेकर हाशिये में डाल दिए गए थे लेकिन कुछ पुराने दिग्गज नेता गांधी परिवार के ही इर्द गिर्द कांग्रेस को रहने देना चाहते हैं।
पिछले दिनों जब इस बारे में जी 23 ग्रुप के नेता कपिल सिब्बल ने भी खुलकर बोल पड़े कि वक्त आ गया है अब कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन हो। सिब्बल ने यह भी कहा है कि सोनिया गांधी अध्यक्ष हैं तो राहुल गांधी ने आखिर किस हैसियत से फैसले लेते हैं। पंजाब में नए सीएम के नाम का ऐलान करना भी कांग्रेस को भारी पड़ गया। कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन का फैसला सीडब्यूसी लेती है और ऐसा लगता है कि इसमें शामिल लोग अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए बदलाव नहीं चाहते। और संगठन को इसी प्रकार चलाना चाहते हैं।
समस्या यह है कि एक तरफ भाजपा के एक से बढ़कर एक नेता जनता से जुड़ते जा रहे हैं, तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी, जनता इनकी बातों को तवज्जो नहीं दे रही है। यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की जोर आजमाइश के बाद भी पार्टी की शर्मनाक हार हुई। 2022 में लड़की हूं लड़ सकती हूं... का नारा बुलंद करते हुए प्रियंका ने पार्टी के चुनाव प्रचार को लीड किया लेकिन कांग्रेस को 2.33 प्रतिशत ही वोट मिले। 2014 से अब तक का हाल देखें तो गांधी परिवार के नेतृत्व में पार्टी 36 चुनाव हार चुकी है। सोनिया के वफादार कह रहे हैं कि गांधी परिवार के हाथों में नेतृत्व नहीं रहेगा तो पार्टी बिखर सकती है जबकि सच्चाई यह है कि आज भी कांग्रेस बिखर ही रही है।
आज यह पार्टी के भीतर की मांग ही नहीं, भाजपा को टक्कर देने के लिए सबसे बड़ी जरूरत भी बन चुका है। जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता भाजपा से जुड़ते चले गए और एक परिवार के इर्द गिर्द कांग्रेस की छवि मजबूत होती गई जो पार्टी के लिए ठीक नहीं है। भाजपा परिवारवादी कांग्रेस कहकर लगातार हमले करती रही है और पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा नेताओं की बैठक में साफ कर दिया था कि वह परिवारवाद और वंशवाद बर्दाश्त नहीं करेंगे। बीजेपी संसदीय दल की बैठक में मोदी ने कहा कि उनके कारण ही विधानसभा चुनाव में सांसदों के बच्चों को टिकट नहीं दिए गए क्योंकि वह वंशवाद की राजनीति के खिलाफ है। जनता में इसका बड़ा संदेश जाता है। जी-23 ग्रुप के नेताओं ने यह भी कहा कि कांग्रेस में गैर गांधी भी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके हंै तो वर्तमान परिस्थिति में गैर गांधी अध्यक्ष बन जाए तो क्या नुकसान हो सकता है, ये सब कांग्रेस को बचाने की कवायद का हिस्सा है। जिस प्रकार कांग्रेस से वरिष्ठ नेताओं का पलायन का सिलसिला चालू हुआ अभी तक बदस्तूर जारी है। 1998 में ममता बनर्जी, 1999 में शरद पवार, 2014 के बाद जगदंबिका पाल से लेकर जितिन प्रसाद और न जाने कितने कार्यकर्ता पाटी4 छोड़ गए। इस पतन को रोक ने के लिए जी-23 ग्रूप की बात को तवज्जो देना पड़ेगा।