रायपुर। आज कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल अनुसुईया उइके से मुलाकात की. और ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन के प्रमुख बिन्दु:
कोविड-19 ने लगभग हर भारतीय परिवार को अप्रत्याशित तबाही एवं असीम पीड़ा दी है।
दुख की बात है कि मोदी सरकार ने कोरोना से लड़ने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।
सच्चाई यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार कोविड-19 के आपराधिक कुप्रबंधन की दोषी है।
उग्र कोविड-19 महामारी के बीच वैक्सीनेशन ही एकमात्र सुरक्षा है।
मोदी सरकार की वैक्सीनेशन की रणनीति भारी भूलों की एक खतरनाक कॉकटेल है।
भाजपा सरकार ने 'वैक्सीनेशन की योजना' बनाने का अपना कर्तव्य ही भुला दिया।
भाजपा सरकार निंदनीय रूप से 'वैक्सीन की खरीद' से बेखबर रही।
केंद्र सरकार ने जानबूझकर एक 'डिजिटल डिवाईड' पैदा किया, जिससे वैक्सीनेशन की प्रक्रिया धीमी हो गई।
केंद्र सरकार ने 'विभिन्न कीमतों के स्लैब' बनाने में जानबूझकर मिलीभगत की, यानि एक ही वैक्सीन के लिए अलग-अलग कीमतें तय कीं, ताकि आम आदमी से आपदा में लूट की जा सके।
जहां अन्य देशों ने मई, 2020 से वैक्सीन खरीदने के ऑर्डर देने शुरू कर दिए थे, वहीं मोदी सरकार ने भारत को इसमें विफल कर दिया।
केंद्र सरकार ने वैक्सीन का पहला ऑर्डर जनवरी, 2021 में जाकर दिया। जन पटल पर मौजूद जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार + राज्य सरकारों ने 140 करोड़ की जनसंख्या के लिए आज तक केवल 39 करोड़ वैक्सीन खुराकों का ऑर्डर दिया है।
भारत सरकार के अनुसार, 31 मई, 2021 तक केवल 21.31 करोड़ वैक्सीन ही लगाई गईं। लेकिन वैक्सीन की दोनों खुराकें केवल 4.45 करोड़ भारतीयों को ही मिली हैं, जो भारत की आबादी का केवल 3.17 प्रतिशत है।
पिछले 134 दिनों में, वैक्सीनेशन की औसत गति लगभग 16 लाख खुराक प्रतिदिन है। इस गति से, देश की पूरी वयस्क जनसंख्या को वैक्सीन लगाने में तीन साल से ज्यादा समय लग जाएगा। यदि ऐसे ही चलता रहा, तो हम देश के नागरिकों को कोरोना की तीसरी लहर से कैसे बचा पाएंगे, इस सवाल का जवाब मोदी सरकार को देना होगा।
इस विकराल महामारी के बीच हमारे देश के नागरिक कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार वैक्सीन का निर्यात करने में व्यस्त है।
केंद्र की भाजपा सरकार आज तक वैक्सीन की 6.63 करोड़ खुराक दूसरे देशों को निर्यात कर चुकी है। यह देश के लिए सबसे बड़ा नुकसान है।
मोदी सरकार द्वारा वैक्सीन के लिए तय की गई अलग-अलग कीमतें लोगों की पीड़ा से मुनाफाखोरी का एक और उदाहरण हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड की एक खुराक की कीमत मोदी सरकार के लिए 150 रू., राज्य सरकारों के लिए 300 रू. और निजी अस्पतालों के लिए 600 रू. है।
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की एक खुराक की कीमत मोदी सरकार के लिए 150 रू., राज्य सरकारों के लिए 600 रू. और निजी अस्पतालों के लिए 1,200 रू. है। निजी अस्पताल एक खुराक के लिए 1500रू. तक वसूल रहे हैं। दो खुराकों की पूरी कीमत की गणना इसी के अनुसार होगी।
मोदी सरकार द्वारा एक ही वैक्सीन की तीन अलग-अलग कीमतें तय करना लोगों की पीड़ा से मुनाफाखोरी कमाने का नुस्खा है।
आज जरूरत है कि केंद्र सरकार वैक्सीन खरीदे और राज्यों एवं निजी अस्पतालों को निःशुल्क वितरित करें, ताकि वह भारत के नागरिकों को मुफ्त लगाई जा सके। इससे कम कोई भी काम भारत एवं भारत के नागरिकों का बड़ा नुकसान है।
साथ ही हमें 31 दिसंबर, 2021 तक या उससे पहले 18 साल से अधिक आयु की पूरी व्यस्क जनसंख्या को वैक्सीन लगाने का काम पूरा करने की जरूरत है।
देश के नागरिकों का बचाव का यही एकमात्र रास्ता है। एकमात्र उपाय है कि एक दिन में कम से कम एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जाए, न कि एक दिन में औसतन 16 लाख लोगों को।
इसीलिए हम राष्ट्रपति जी से निवेदन करते हैं कि आप मोदी सरकार को दिन में एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाए जाने एवं यूनिवर्सल मुफ्त वैक्सीनेशन का निर्देश दें।
कोविड-19 महामारी से लड़ाई एवं इस बीमारी को हराए जाने का यही एकमात्र रास्ता है। हर भारतीय को कोरोना से जीत दिलाने का भी यही एकमात्र रास्ता है।