छत्तीसगढ़

रायपुर में देश के प्रख्यात साहित्यकारों का हुआ संगम

Shantanu Roy
21 April 2022 4:20 PM GMT
रायपुर में देश के प्रख्यात साहित्यकारों का हुआ संगम
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रायपुर। राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव, राज्य स्तरीय जनजाति नृत्य महोत्सव एवं राज्य स्तरीय जनजाति कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता के तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन आज 21 अप्रैल को हुआ। इसका आयोजन भारत सरकार, जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के सहयोग से किया गया। आयोजन के दौरान विविध कार्यक्रमों के साथ-साथ देश के प्रख्यात साहित्यकारों ने जनजातीय साहित्य और संस्कृति पर गहन विचार-विमर्श किया गया।

गौरतलब है कि इस आयोजन का शुभारंभ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 19 अप्रैल को किया था। आज इसका समापन राज्यपाल सुश्री अनुसइया उईके की गरिमामय उपस्थिति में हुआ। शिक्षा एवं आदिम जाति कल्याण मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के निर्देशानुसार एवं सचिव, डी.डी.सिंह तथा आयुक्त सह संचालक शम्मी आबिदी के कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में यह तीन दिवसीय कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित हुए।
राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का सफल आयोजन
इस साहित्य महोत्सव के अंतर्गत साहित्य परिचर्चा एवं शोध पत्र वाचन किया गया। साहित्य परिचर्चा कार्यक्रम के अंतर्गत कुल 08 सत्र आयोजित किये गये। जिसमें देश के प्रख्यात साहित्यकारों ने भाग लिया। प्रथम दिवस को कुल 20 प्रतिभागियों एवं द्वितीय दिवस को 33 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। इसके अंतर्गत ''भारत जनजातीय भाषा एवं साहित्य का विकास-वर्तमान एवं भविष्य, भारत में जनजातीय विकास-मुद्दे, चुनौतिया एवं भविष्य, भारत में जनजातियों में वाचिक परंपरा के तत्व एवं विशेषताएं तथा संरक्षण हेतु उपाय, भारत में जनजातीय धर्म एवं दर्शन, जनजातीय लोक कथाओं का पठन एवं अनुवाद तथा विभिन्न बोली, भाषाओं में जनजातीय लोक काव्य पठन एवं अनुवाद आदि विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा, प्रो. एस.जेड.एच. आबिदी, डॉ. मदन सिंह एवं डॉ. स्नेह लता नेगी, डॉ. मदन सिंह ने टंटिया, रूद्र नारायण पाणीग्रही, श्रीमती जोबा मुरमू, बी.आर.साहू, प्रो. पी. सुब्बाचारी, प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. वरजिनियस खाखा, प्रो. सरत कुमार जेना, डॉ. विपीन जौजो, डॉ. सत्यरंजन महाकंुल, डॉ. रूपेन्द्र कवि, डॉ.सत्यरंजन महाकुल, डॉ. स्नेहलता नेगी, डॉ. गंगा सहाय मीणा, वाल्टर भेंग, वंदना टेटे, प्रो.पी. सुब्बाचार्य, रूद्रनारायण पाणिग्रही, बी.आर.साहू, डॉ. संदेशा रायपा, जयमती कश्यप, डॉ. रेखा नागर, डॉ. अल्का सिंह, डॉ. किरण नुरूटी आदि साहत्यकारों ने साहित्य परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त किये।
इसी प्रकार शोधपत्र वाचन में प्रथम दिवस 23 शोधपत्र एवं द्वितीय दिवस 44 से अधिक शोधपत्र पढे गये। इनमें जनजातीय साहित्य: भाषा विज्ञान एवं अनुवाद, जनजातीय साहित्य में जनजातीय अस्मिता एवं जनजातीय साहित्य में जनजातीय जीवन का चित्रण एवं जनजातीय समाजों वाचिक परम्परा की प्रासंगिकता एवं जनजातीय साहित्य में अनेकता एवं चुनौतियां, जनजातीय साहित्य में लिंग संबंधी मुददे, जनजातीय कला साहित्य, जनजातीय साहित्य में सामाजिक-सांस्कृतिक संघर्ष, जनजातीय साहित्य में मुद्दे, चुनौतियां एवं संभावनाएं तथा जनजातीय विकास मुददे एवं चुनौतियां विषय पर शोधपत्र का वाचन किया गया।
शोधपत्र वाचन में टी.के. वैष्णव, चितरंजन कर, डॉ.के.एम.मैत्री, डॉ. रेखा नागर, डॉ. अभिजीत पायेंग, डॉ. प्रमोद कुमार शुक्ला, डॉ. प्रियंका शुक्ला, गिरीश शास्त्रीय एवं डॉ. कुवंर सुरेन्द्र बहादुर, डॉ. हितेश कुमार, डा. सुनीता पन्दों, तरूण कुमार, कोया पुनेम, डॉ. किरण नुरूटी आदि ने इसमें प्रमुख रूप से भागीदारी की एवं अपने विचार व्यक्त किए।
इस शोधपत्र वाचन एवं साहित्य पर परिचर्चा सबसे प्रमुख बात यह रही कि इसमें छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा पूरे देश से प्रख्यात साहित्यिक विभूतियां शामिल हुई। पहली बार छत्तीसगढ़ राज्य में राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का आयोजन हुआ। इसके माध्यम से जनजातीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने के संबंध में अच्छे सुझाव प्राप्त करने में यह आयोजन सफल रहा।
कला एवं जनजातीय संस्कृति पर आधारित चित्रकला प्रतियोगिता
साहित्यिक शोधपत्र पठन एवं जनजातीय साहित्य पर परिचर्चा के अलावा इस अवसर पर कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। इसके अंतर्गत 18 से 30 आयु वर्ग एवं 30 से ऊपर प्रतिभागियों के लिए कैनवास पेंटिंग की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। वहीं दूसरी ओर 12 से 18 आयु वर्ग के लिए ड्राईग सीट पर पेटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसके अलावा हस्तकला प्रदर्शन के अंतर्गत बांस कला, छिंदकला, गोदना कला, रजवार कला, शीसल कला, माटी कला एवं काष्ट कला के प्रतिभागी अपने प्रतिभा का जीवन्त प्रदर्शन भी किया गया। इसमें विभिन्न आयु वर्ग के कुल 238 प्रतिभागियों ने अपनी कला का लोहा मनवाया।
शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय, मठपुरैना रायपुर के बच्चों का शानदार प्रदर्शन
समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय, मठपुरैना रायपुर के दिव्यांग बच्चों ने भी जनजातीय संस्कृति पर आधारित चित्रकला प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर भाग लिया और सराहनीय प्रदर्शन किया। इसमें कुल 54 दिव्यांग बच्चों ने भाग लिया। उल्लेखनीय है कि शासकीय दिव्यांग महाविद्यालय के छात्र प्रणीत सरकार ने उद्घाटन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को स्वंय का बनाया हुआ, सी.एम. सर का खूबसूरत स्कैच भेंट किया था, जिसकी मुख्यमंत्री ने भी बहुत प्रशंसा की थी।
जनजातीय इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित बुक स्टॉल बना मुख्य आकर्षण का केन्द्र
कार्यक्रम स्थल पर एक बुक स्टॉल भी लगाया गया था, जिसमे जनजातीय इतिहास, संस्कृति पर आधारित दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा देखने को मिला। बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी एवं छात्र जनजातीय साहित्य क्रय किया। इस जनजातीय इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित बुक स्टॉल में कुल 14 विशिष्ट स्टॉल लगाई गई। इनमें सत्यम पब्लिकशिंग हाउस, नई दिल्ली, कौशल पब्लिकशिंग हाउस, भोपाल, सरस्वती बुक्स, भिलाई, राजकमल प्रकाशन, प्रा.लि. नई दिल्ली, कावेरी बुक सर्विस, नई दिल्ली, वाणी प्रकाशन एवं भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली, वन्य प्रकाशन, श्यामला हिल्स, भोपाल, वैभव प्रकाशन, रायपुर, हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर, गोंडवाना साहित्य, रायपुर, फरवर्ड प्रेस, नई दिल्ली, गोंडवाना किरण कैलेण्डर एवं पुस्तकें, रायपुर तथा स्वंय आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान ने अपने साहित्य प्रकाशन के स्टॉल लगाए।
इस बुक स्टॉल की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें समृद्ध जनजातीय इतिहास, शब्दकोष, उनकी लोक संस्कृति (जनजातीय लोक नृत्य एवं लोक गाथाओं) पर आधारित अत्यन्त दुर्लभ अध्ययन सामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध कराना संभव हो सका है, जिसके कारण बड़ी संख्या में जनजातीय इतिहास में रूचि रखने वाले साहित्यकार, शोधार्थी एवं विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राएं बड़़ी संख्या में यहां पहुंचकर खरीदी की।
संध्या कालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम
संध्या कालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत प्रतिदिन जनजातीय संस्कृति पर आधारित लोक नृत्यों का मंचन किया गया। प्रथम दिवस क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर नाट्य मंचन एवं करमा, सैला, मड़ई एवं ककसाड़ नृत्यों का मंचन हुआ। दूसरे दिवस शहीद वीर नारायण सिंह पर नाटय मंचन एवं कुडुख, गेड़ी, गवरसिंग, सोन्दों, कमार विवाह नृत्य एवं डण्डार नृत्य प्रस्तुति हुई, जबकि समापन के अवसर पर ''लमझना'' पर काव्य नाट्य का मंचन एवं मांदरी, डण्डा एवं सरहुल नृत्य प्रस्तुत किए गए।
उल्लेखनीय है कि यह समस्त कार्यक्रम भारत सरकार, जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के सहयोग से किया गया है। यह आयोजन न केवल समृद्ध जनजातीय सांस्कृतिक विरासत से आमजन को अवगत कराने में सफल रहा, बल्कि जनजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
Shantanu Roy

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