अकिफ फरिश्ता
कमीशन खोरी में सब लिप्त
बिना खर्चा पानी के काम होता नहीं
लोग कहते हैं कफऩ में जेब नहीं होती फिर भी गरीबों को किसके लिए लूटा जा रहा है
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य विभाग को जिस हिसाब से हर बीमारी के इलाज के लिये मेकाहारा जैसे बड़े अस्पताल को तैयार रखना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य है स्वास्थ्य अमला इस महत्वपूर्ण हॉस्पिटल को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल को इस हाल में पहुंचाने और बुरा हाल करने के जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि प्रदेश के ही नेता और सरकार के बड़े पदों में बैठे आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं। इन लोगों ने षड्यंत्र पूर्वक अपने द्वारा या रिश्तेदारों द्वारा संचालित निजी अस्पतालों में मरीजों को रिफर कर रहे हैं और बेतहाशा कमाई कर रहे हैं। इन लोगो का एक प्रकार से संगठित ग्रुप है जो सरकारी सुविधाओं का लाभ तथा स्वास्थ्य समस्याओं का निदान प्रदेश के गरीब तबकों और शहर की आम जनता के लिए उपलब्ध करने को अपना कर्तव्य नहीं समझते।
गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं
मेकाहारा में देखा गया है कि गरीब मरीजों को दवाइयां, डाक्टर उपलब्ध नहीं होते क्योकि इनकी नजऱ मोटी कमाई में रहती है। अधिकतर मरीज गांव और शहर के गरीब तबके के लोग होते हैं साथ ही पढ़े लिखे कम होते हैं, ऐसी बात का फायदा सरकारी अमला उठाता है। सरकारी अस्पतालों में डाक्टर समय भी नहीं देते ,नंबर नहीं आने का या कोई अन्य बहाना कर किसी भी प्रकार से मरीजों एवं उनके परिजनों को परेशान करते हैं ताकि मजबूरन परिजन मरीज को जहाँ से वे आये होते है वहां के निजी अस्पतालों में भर्ती करने का मन बना लें और भर्ती भी कर दें। सरकारी अस्पतालों में मरीज के परिजनों को थका देने का हर संभव प्रयास किया जाता है और ये इसलिए करते हैं कि मरीज के परिजन हड़बड़ी और हैबत में मरीज को अच्छा इलाज करने के लिए निजी अस्पतालों में ले जाएँ। जहाँ इनका कमीशन बंधा होता है।
मेकाहारा या किसी अन्य सरकारी अस्पताल में मरीजों के परिजनों को बेहतर इलाज के नाम पर ये प्राइवेट अस्पतालों का रुख करने बोलते हैं जहाँ पर इनका कमीशन हर मरीज के पीछे फिक्स रहता है। एक बार मरीज बस इनके गिरफ्त में आ जाये फिर लुटने से भगवान भी नहीं बचा सकता। प्राइवेट अस्पताल वालों के दोनों हाथो में लड्डू होता है खुदा न खास्ता मरीज ठीक हो गया तो भारी भरकम बिल परिजनों को थमाया जाता है और अगर मरीज दुनिया से रुखसत हुआ तो भी बिल कम का नहीं होता।इनको सिर्फ बिल की चिंता होती है ये नहीं सोचते कि परिजन पैसा कहां से लेकर आरहे हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री एवं उनके विभाग का नियंत्रण बिलकुल नहीं है तभी तो सरकारी के साथ प्राइवेट अस्पताल वाले भी लूटखसोट से बाज नहीं आ रहे हैं। देखा जाये तो प्राइवेट अस्पताल से ज्यादा सुविधा सरकारी अस्पतालों में होती है लेकिन प्राइवेट अस्पतालों से मिले कमीशन के बोझ तले दबे होने के कारण स्वास्थ्य अमला भी जान बूझकर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजते हैं। ऐसा लगता है कि ये सब राज्य सरकार को बदनाम करने की शाजिश तो नहीं ? सरकार को बदनाम करने में स्वास्थ्य अमले के अधिकारी,कर्मचारी पीछे नहीं हैं ।
उपेक्षा का शिकार बना मेकाहारा
कहने को तो सर्वसुविधा युक्त अस्पताल है वास्तव में सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। अस्पताल साफ सुथरा होने के बजाये गन्दगी से अटा पड़ा है। चारो तरफ गन्दगी का आलम है। कबाड़ जिधर देखो पड़ा हुआ नजऱ आएगा। स्ट्रेचर टूटी हुई है जंग लगी हुई है हैंडल भी सही सलामत नहीं है। ऐसी प्रकार व्हील चेयर भी ऐसी स्थिति में पायी गई है। रस्सी बांधकर काम चलना पद रहा है। भरकम बजट प्रतिवर्ष सरकारी अस्पतालों के लिए दिए जाते हैं अधिकारी किस माध में खर्च करते हैं समझ से परे है। स्वास्थ्य अमले की लापरवाही से उपेक्षाओ का शिकार बना छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में सुविधाओं के नाम पर असुविधा ही दिक्ति है। स्वास्थय कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही का खामियाज़ा मेकाहारा के मरीज और उनके परिजन भुगत रहे हैं । प्राइवेट अस्पताल के मालिक सरकारी अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारी से सांठगांठ कर इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं. । यहाँ के कर्मचारी मरीजों के परिजनों को उसी प्राइवेट अस्पताल जाने की सलाह देते हैं जहां उनका कमीशन तगड़ी होती है। कोरोना काल में मेकाहारा में आम मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा था उस वक्त निजी अस्पतालों में सारे मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा जाता था जहां जम कर इनसे लूटपाट किया गया था।
स्वास्थ्य मंत्री चाहते क्या हैं?
ऐसा लगता है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भारी मन से स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे हैं, ऐसा महसूस होता है कि स्वास्थ्य विभाग पर मंत्री की पकड़ ढीली पड़ गई है। साथ ही यह भी लगता है कि स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं के बारे में स्वास्थ्य मंत्री की क्या मंशा है समझ से परे है। लोगों को ऐसा भी लगता है की कहीं स्वास्थ्य मंत्री की नजऱ किसी और की कुर्सी पर तो नहीं है। तभी तो प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के बदहाली को सुधारने की कोई कवायद करते नजऱ नहीं आ रहे। कहीं को-वेक्सीन टीका नहीं लगाने पीछे के कारण भी यही तो नहीं...!
टूटी और रस्सी बंधी हुई व्हील चेयर-स्टे्रचर बयां कर रही अस्पताल की हकीकत
प्रदेश के अधिकांश निजी अस्पताल विधायकों, ढ्ढ्रस्-ढ्ढक्कस् अधिकारियों के
जनता से रिश्ता संवाददाता ने पिछले कई सालों का स्वास्थ्य सेवाओं के ब्यौरा का अध्ययन करने के बाद गोपनीय और चौकाने वाली बात यहे पाया कि जो अधिकतर लोगो की जानकारी में नहीं था लोग इस बात से अनभिज्ञ थे कि कई विधायक और प्रदेश के उच्च पदों पर बैठे आईएएस और आईपीएस अधिकारी अपना निजी फायदा देखते हुए प्रदेश में या तो अपने परिवारवालों के नाम से या किसी दोस्त,जानपहचान वालों के साथ पार्टनरशिप करके या फिर किसी कंपनी के नाम से बड़े बड़े आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण अस्पताल का संचालन कर रहे हैं। अधिकांश बड़े अस्पतालों में कहीं न कहीं से नौकरशाहों का और नेताओं का अवैध कमाई की रकम बड़े पैमाने में निवेश किया गया है। इसलिए सरकारी अस्पताल में किसी भी प्रकार के गंभीर बीमारी का इलाज करना तो दूर की बात रही मरीजों के पास तक नहीं जाते। ऐसे मरीजों को जो जिस क्षेत्र से आए हुए होते हैं वहां के निजी अस्पतालों में ही इलाज करने की सलाह देते हैं।