छत्तीसगढ़

शहर की मकानें बिकी नहीं, जंगल में बनाने की तैयारी

Admin2
1 July 2021 6:01 AM GMT
शहर की मकानें बिकी नहीं, जंगल में बनाने की तैयारी
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छपोरा-भुरकोनी में प्रस्तावित राजीव नगर आवास योजना का अभी से विरोध

छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल राजधानी सहित प्रदेशभर में मकान और दुकानें तो बना रहा है, लेकिन उन्हें बेचना मुश्किल हो रहा है।

पर्यावरण को नुकसान होगा

चारागाह की जमींन में मकान बनाने का प्लान

मंदी के दौर में मकान बनाने का क्या औचित्य, जब कोई खरीदार ही नहीं मिल रहे हैं

शहर में मकान कोई खरीद नहीं रहे तो आउटर में कौन लेगा

अपराधियों, असामाजिक तत्वों का अड्डा बना बोर्ड के खाली पड़े मकान

सारे अवैध काम वहीं से हो रहे

तालपुरी में 3000 करोड़ का घोटाला, जांच अभी तक पूरी नहीं हुई

जनता की गाढ़ी कमाई को फंसाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों का नया कारनामा

ग्राम छपोरा का चारागाह जिसे आवासीय योजना के

लिए हाऊसिंग बोर्ड आरक्षित कराना चाह रहा है

चारागाह में मकान बनाने की तैयारी

बोर्ड के कर्ताधर्ताओं द्वारा अब ग्राम पंचायत छपोरा भुरकोनी जिसका खसरा नंबर 207 रकबा 10 .934 हे. ( कुल 27 .01 एकड़) राजीव नगर आवास योजना के तहत मकान बनाने जा रही है। सरपंच,कोटवार और ग्रामीणों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनको इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि यहां आवासीय प्रोजेक्ट आ रहा है। सबने एक स्वर में इस प्रोजेक्ट का विरोध किया है। अब सवाल यह उठता है कि जब बोर्ड के हजारों मकान अभी तक बिके ही नहीं हैं तो नया प्रोजेक्ट लेकर आने से क्या और किसे फायदा है। जिस जगह मकान बनाने की योजन बोर्ड ला रही है वह वर्तमान रिकार्ड के मुताबिक निजी अपरिवर्तित भूमि है जिसके भूस्वामी बोधन,कौशिल्या, सखाराम, गणेश व.कोल्हूराम,बैनबाई अन्य एक भूस्वामी लैनबाई पिता झंगलु ,सुकवारो पिता लहंगलु और हेम सिंह व दानी है। उपरोक्त भूमि को सामलात चरागन के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है। सरकार के आदेशानुसार चारागाह की भूमि को सुरक्षित रखा जाना है। फिर उक्त भूमि पर आवासीय प्रोजेक्ट लाना समझ से परे है।

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। छत्तीसगढ़ हॉउस हाउसिंग बोर्ड का पंच लाइन हम मकान नहीं घर बनाते हैं, सुनने में अच्छा लगता है लेकिन जिस जगह ये मकान नहीं घर बनाते हैं वहां कोई रहना ही नहीं चाहता। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि बोर्ड द्वारा प्रस्तावित छपोरा-भुरकोनी में राजीव नगर आवास योजना का छपोरा के सरपंच सहित ग्रामीणों ने विरोध किया है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार जब कभी भी कोई हाउसिंग प्रोजेक्ट लाये तो सबसे पहले ग्रामीणों को विश्वास में लेना चाहिए। एक ओर सरकार का कहना है कि चारागाह की भूमि को आरक्षित रखा जाये दूसरी ओर हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी चारागाह की जमीन पर मकान बनाने जा रही है। सरकार किसानो को बोनस और धान का चुकारा करने ऋण ले रही है और हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी पैसा पानी की तरह बहाना चाहती है। छपोरा-भुरकोनी के सरपंच,कोटवार सहित ग्रामीणों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनके गांव में कोई आवासीय प्रोजेक्ट आ रहा है। सब लोगो ने एक स्वर में इस आवासीय प्रोजेक्ट का विरोध किया है। हाउसिंग बोर्ड पहले जो कालोनियां बनाती थी हाथो हाथ बिक जाती थी लेकिन अब कमीशन के खेल ने हाऊसिंग बोर्ड के मकानों का जायका खऱाब कर दिया कर दिया है। लोग हाउसिंग बोर्ड का मकान खरीदना ही नहीं चाहते क्योकि बोर्ड के बनाये मकान को लोग गुणवत्ताविहीन मानते हैं।

एक ही साल में बोर्ड द्वारा बनाये गए मकानों की दीवारों में दरारें व सीपेज आने लगती है। छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल राजधानी सहित प्रदेशभर में मकान और दुकानें तो बना रहा है, लेकिन उन्हें बेचना मुश्किल हो रहा है। अकेले राजधानी सहित रायपुर जिले में हजारों मकान और दुकान ऐसी हैं, जिनकी बुकिंग नहीं हुई है। वहीं बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बस्तर, रायगढ़, जगदलपुर, कोंडागांव सहित पुरे छत्तीसगढ़ में कई जगहों पर अरबों रूपयों के निर्मित मकान नहीं बिक पाए हैं।

इसके चलते हाउसिंग बोर्ड के अलग-अलग डिविजन के कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया है। हाउसिंग बोर्ड मुख्यालय ने फंड भेजने से मना कर दिया है। और सभी डिविजन को मकान और दुकान बेचकर कर्मचारियों के लिए फंड जुटाने कहा जा रहा है। इसके लिए बोर्ड को जगह जगह स्टाल लगाकर मकान बेचने की कवायद करना पड़ रहा है। बोर्ड द्वारा करोडो के विज्ञापन विभिन्न अखबारों में समय-समय पर प्रकशित करवाया गया है जिसका भुगतान भी आज तक लंबित है। वहीं ऐसे मकानों की संख्या हजारों में है, जो बिक तो गए हैं, लेकिन आबाद नहीं हुए हैं। इन मकानों में ताले लटक रहे हैं। सरकार के हजारों करोड़ रूपये बोर्ड के अधिकारी और अध्यक्ष निजी कमाई के चलते फंस गए है जिसका ब्याज ही देखा जाये तो करोड़ों में है इसकी भरपाई किससे की जायेगी यह सोचनीय है। बोर्ड अध्यक्ष अपने कमाई के लिए कहीं भी प्रोजेक्ट लेकर आ रहे हैं उन्हें मकान बिकने नहीं बिकने से कोई वास्ता नहीं है। बोर्ड द्वारा बनाये गए मकान के नहीं बिकने के कारण अपराधियों के अड्डे बन गए हैं असामाजिक तत्वों का डेरा बना हुआ है।

लोकेशन का चयन सही नहीं

बोर्ड द्वारा बनाये जा रहे मकानों की लोकेशन सही नहीं होने के कारण ग्राहक आसानी से मिल नहीं पाते और मकान कई साल तक नहीं बिकने और गुणवत्ता सही नहीं होने के कारण दरवाजे खिड़किया छतिग्रस्त हो जाती है। सिर्फ जब केशन के चक्कर में कहीं भी मकान बना देते है बाद में बेचने के लिए परेशान होते है। किसी प्रकार अगर इन मकानों को खरीदने के बाद मकान मालिक जाने को तैयार नहीं है। वहीं लोकशन का सही चयन नहीं होने के कारण इन मकानों में रहने के लिए किराएदार नहीं मिल रहे हैं। हालांकि विभागीय मंत्री और अधिकारियों का कहना है कि लगातार अभियान चलाकर हाउसिंग बोर्ड मकानों को सेल कर रहा है। लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और है। मकान-दुकान बिक नहीं रहे हैं, खाली पड़े-पड़े कंडम होने के कगार पर है।

सरकार की मंशा के खिलाफ

एक ओर सरकार कहती है चरागाह की जमीनों पर अवैध कब्ज़ा नहीं होने दिया जायेगा दूसरी तरह सरकार के नुमाइंदे सरकार की नीतियों के खिलाफ जाकर अपने फायदे की लिए चरागाह में मकान बनाने जा रहे हैं. सरकार को बदनाम करने की सुनुयोजित चाल लगती है।

अकेले रायपुर सहित पूरे छग में हजारों मकान

देखा जाये तो पुरे छत्तीसगढ़ में अरबों रूपये सरकार का जाम हो गया है ऐसे में नया मकान बनाने का क्या औचित्य समझ से परे है। रायपुर जिले में हाउसिंग बोर्ड के हजारों मकान नहीं बिके हैं। केवल रायपुर में ही 2000 करोड़ की संपत्ति को खरीदने वाला कोई नहीं है। नहीं बिकने वाले मकानों में फ्लैट्स ज्यादा हैं। स्वतंत्र मकानों की संख्या कम है। वहीं काफी संख्या में दुकान भी है। अकेले बोरिया कला में फ्लैट्स बनकर तैयार हैं, लेकिन उनकी बुकिंग नहीं हो पाई है। डूमरतराई में काफी तादात में मकान खाली हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में इसकी संख्या हजारो में है। बनकर तैयार होने के साल भर बाद भी 3.50 लाख से 35 लाख की कीमतों वाले इन फ्लैट्स को अभी तक ग्राहकों का इंतजार है। वहीं शंकर नगर, खम्हारडीह, कचना, में 60 लाख तक महंगे स्वतंत्र मकान लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। नया रायपुर,मुनगी, धनसुली, आरंग, अभनपुर, भाटापारा, अर्जुनी और बलौदाबाजार हुए आसपास के छोटे कस्बो में बने में सैकड़ों स्वतंत्र मकान खाली पड़े हैं कोई लेने तैयार नहीं हैं।

हाउसिंग बोर्ड के अफसरों का कहना है कि सेल बढ़ाने के लिए मकानों की स्थिति और लोकेशन ऑनलाइन कर दिया गया है। काफी संख्या में मकान अंडर कंस्ट्रक्शन हैं, लेकिन इसमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। जो मकान नहीं बिकेंगे, उनका इस्तेमाल रेंटल हाउसिंग के रूप में किया जाएगा। लेकिन ऐसा दावा सिर्फ हवा हवाई लगती है। अगर ऐसा होता तो बोर्ड को स्टाल लगाकर मकान बेचने की नौबत नहीं आती।

आवासीय प्रयोजन के लिए एप्लीकेशन दिया है । अगर चारागाह की भूमि है और दो प्रतिशत से अधिक है तभी हमें मिल सकता है। ये सब तय करना रेवेन्यू डिपॉर्टमेंट का काम है। हमारे एप्लीकेशन पर उनके द्वारा दावा आपत्ति मंगाया जायेगा फिर तय होगा।

-डॉ. अयाज़ ताम्बोली (आईएएस ), कमिश्नर छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड

मुझे और गॉव वालो को इसकी जानकारी नहीं है , अगर सरकार गांव में कोई आवासीय परियोजना लाती है तो उनको चाहिए सरपंच और गांव वालो को भरोसे में लेना चाहिए। जिस खसरा की मांग बोर्ड ने की है वह चारागाह के लिए आरक्षित है। क्या गांव वालो के लिए भी मकान आरक्षित रहेगा।

-अरुण शुक्ला, सरपंच ग्राम पंचायत छपोरा

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