छत्तीसगढ़
छालीवुड कलाकार शिवकुमार दीपक का निधन, CM साय ने दी श्रद्धांजलि
Shantanu Roy
25 July 2024 3:36 PM GMT
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छग
Raipur. रायपुर। छत्तीसगढ़िया लोक कलाकार एवं छत्तीसगढ़ी फिल्म के सुप्रसिद्ध कलाकार शिवकुमार दीपक ( 91) का निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा 26 जुलाई को उनके निवास स्थान पोटियाकला , दुर्ग से दोपहर निकलेगी। वे शशि साहू, शैलेश साहू ( रंगकर्मी), सलभ साहू, संजीव साहू एवम संजय साहू के पिता थे। उनका जन्म पोटिया कला में 1933 में हुआ था। वही आज देर शाम मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि- छत्तीसगढ़ की पहली फिल्म "कहि देबे संदेस" से अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले, वरिष्ठ कलाकार शिवकुमार दीपक के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। उनका निधन छत्तीसगढ़ी फिल्म और कला जगत की अपूर्णीय क्षति है। ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति और परिजनों को संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं। ॐ शांति।
छत्तीसगढ़ की पहली फिल्म "कहि देबे संदेस" से अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले, वरिष्ठ कलाकार श्री शिवकुमार दीपक जी के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। उनका निधन छत्तीसगढ़ी फिल्म और कला जगत की अपूर्णीय क्षति है।ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति और परिजनों को संबल प्रदान करने की…
— Vishnu Deo Sai (@vishnudsai) July 25, 2024
गांव में होने वाले नाच तथा रामलीला, कृष्ण लीला देख देखकर वे बड़े हुए, और उनका कला की ओर बचपन से ही झुकाव हो गया। नाच तथा लीला से प्रभावित होकर अपने बाल सखाओ के साथ मिलकर कला साधना में जुट गए। स्कूल से भाग कर वे सदा इसी में लगे रहते। पढ़ाई के दौरान स्कूल के कार्यक्रम तथा नाटकों में भाग लेने लगे। एक बार गांधी जी का दुर्ग स्टेशन में दर्शन किया जो ट्रेन से कलकता जा रहे थे, गांधी जी के जय जय कार तथा आजादी के नारों से वे अत्यंत प्रभावित हुए। अपने बाल सखाओ के साथ आजादी की लड़ाई करने की ठान ली और ब्रिटिश ध्वज को आग लगाने दुर्ग के कोर्ट में चला गया ,जहां पकड़े जाने पर थाने में बंद किया गया। शहर के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने उन्हे पुलिस से छुड़ाकर लाया। फिर भी अपने साथियों के साथ प्रतिदिन जहां ब्रिटिश ध्वज लगा रहा वहां पत्थर मारते और भारत माता व महात्मा गांधी की जय का नारा लगाते। एक दफे शिव दीपक ने दक्षिणापथ से चर्चा करते हुए बताया था " स्कूल के नाटक, कार्यक्रम में मैने खैरागढ़ निवासी रमाकांत बक्शी का एकल अभिनय देख इतना प्रभावित हुआ कि उसे अपना गुरु बना तथा आशीर्वाद लेकर मैं भी एक पात्रीय अभिनय स्वयं बनाकर खेलने
लगा। पहला एक पात्रीय अभिनय मैंने 'जीवन पुष्प बनाया जो काफी सफल रहा, इसी अभिनय जीवन पुष्प को सन 1958 में अखिल भारतीय युवक महोत्सव नागपुर में प्रदर्शित किया जिसमें महोत्सव के मुख्य अतिथि पं. जवाहरलाल नेहरू (प्रथम प्रधानमंत्री) थे। जहां उनके द्वारा सम्मानित किया गया। जहां दीपक नाम से पद प्रदान किया गया तब से मैं शिवकुमार साब से शिव कुमार दीपक नाम से जाना जाने लगा। जीवन पुष्प प्रहसन के बाद मैंने स्वयं द्वारा रचित अनेकों एक पात्रीच अभिनय बनाकर प्रदर्शित करते रहा जिसमें से प्रमुख हैं। 1. हरितक्रांती, 2. सौत झगरा 3. छत्तीसगढ़ी महतारी 4. छत्तीसगढ़ी रेजीमेंट 5. बीस सूत्री, लमसेना, 6 चक्कर भिलाई का।
सन 1965 में प्रथम छत्तीसगढ़ी फिल्म कहि देबे संदेश का निर्माण हुआ जिसमें मुझे प्रमुख चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाने का अवसर मिला, साथ ही दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'घर द्वार' में भी चरित्र भूमिका निभाने के लिए बुलाया गया। इसी दौरान दुर्ग के दाउ रामचंद्र देशमुख द्वारा निर्मित लोक कला मंच चंदैनी गोंदा में हास्य भूमिका निभाने का अवसर मिला, चंदैनी गोंदा के साथ साथ दुर्ग के महासिंग चंद्राकर के सोन बिहना लोक कला में भी जुड़ा रहा जहां नाटक लोरिक चंदा हरेली में भाग लिया। इस तरह अनेकों लोक कला मंच में अपने अभिनय कला प्रदर्शन करते रहा। दिल्ली दूरदर्शन से लोरीक चंदा के प्रदर्शन के लिए दूरदर्शन दिल्ली जाना पड़ा। लोरिक चंदा का प्रदर्शन भारत के बड़े शहरों में करने इलाहाबाद, टाटा, जमशेदपुर, बंबई कलकत्ता, मद्रास, नागपुर, बनारस, आदि स्थानों में करते रहे।"
स्व दीपक ने बताया था कि लंबे अंतराल के बाद पुनः छत्तीसगढी फिल्मों का निर्माण शुरु हुआ जिसके निर्माता सतीश जैन द्वारा निर्मित फिल्म 'मोर छैय्या भूईया' में भूमिका निभाने का अवसर मिला। रायपुर के प्रेम चंद्राकर द्वारा निर्मित फिल्म 'मया दे दे मया ले ले', 'परदेशी के मया', 'तोर मया के मारे', फिल्मों में हास्य की भूमिका निभायी। तीन बार बेस्ट हास्य कलाकार का पुरस्कार मिला। इस तरह लगातार एक पात्रीय की हास्य भूमिका के लिए छत्तीसगढ़ फिल्म फेस्टीवल अनेकों छत्तीसगढ़ी फिल्मों में हास्य भूमिका करने का अवसर मिला।
जिसमें प्रमुख है- 'कारी', 'दुरी नं. 1', 'लेड़गा नं 1', 'दो लफाडू', 'टेटकूराम', 'मयारू भौजी', 'तिजा के लुगरा' 'ये है राम कहानी', 'तहूं दिवाना महूं दिवानी', 'धरती मैया', 'मितान 420', 'धुरंधर', 'सोन चिरैया', 'बाटा', 'सलाम छत्तीसगढ़ी', 'भोला छत्तीसगढ़ीया' इस तरह करीब 50 छत्तीसगढ़ी फिल्म में तथा 25 वीडियो फिल्मों में काम किया। इसी दौरान मालवी भाषा की फिल्म 'भादवा माता' में भूमिका निभाई तथा बंबई के निर्माता के भोजपुरी फिल्म 'सीता' तथा 'गांव आजा परदेशी' में हास्य भूमिका किया। इसी काल में दो हिंदी फिल्मों में काम करने का आफर मिला। बंबई के कलाकारों के साथ हिंदी फिल्म 'हल और बंदूक' तथा 'सौभाग्यवती' में हास्य एवं चरित्र भूमिका निभाई।
इस तरह 50 छत्तीसगढ़ी फिल्म 2 हिंदी फिल्म 2 भोजपुरी फिल्म और 1 मालवी फिल्म में काम करने का अवसर मिला। बंबई के निर्माता निर्देशक देवेंद्र खंडेलवाल की सीरियल 'हकीकत', 'घराना' में बंबई में रहकर शूटिंग किया। आज जीवन के अंतिम पड़ाव में भी हिंदी तथा छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कार्यरत हूं साथ ही चंदैनी गोंदा लोक कला मंच में कार्यरत हूं। कलासेवा के फलस्वरूप अनेकों साहित्य संस्था, सामाजिक संस्था, लोक कला मंच तथा शासन द्वारा राज्य तथा राज्य के बाहर अन्य स्थानों में सम्मानित किया जा चुका है।"
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Shantanu Roy
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