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छत्तीसगढ़: वाह...रे फर्जीवाड़ा, न्यूज पोर्टल ने खुद को बताया नंबर-1

Admin2
7 Nov 2020 5:47 AM GMT
छत्तीसगढ़: वाह...रे फर्जीवाड़ा, न्यूज पोर्टल ने खुद को बताया नंबर-1
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इम्पेनलिस्ट होने की होड़ में फर्जी दावा, 'जनता से रिश्ता' का गूगल एनालिस्टिक रिपोर्ट देखकर स्वयं फैसला करें

जसेरि रिपोर्टर

इम्पेनलमेंट कमेटी के सारे नियम कायदे-निर्णय पूर्वाग्रह से ग्रसित

गूगल को भूगल करने को बढ़ावा, एनालेस्टिक जंग की शुरूआत

तथातकथित न्यूज पोर्टल भी एक टीवी चेनल के नक्शे कदम पर

डीपीआर को जारी करना चाहिए नोटिस एवं फर्जी एनालिस्टिक रिपोर्ट दिखाने पर एफआईआर दर्ज कराएं

सबूत के साथ देखिए जनता से रिश्ता का अक्टूबर माह की गूगल एनालिटिक रिपोर्ट

कौन है नंबर वन...जनसंपर्क विभाग जांच करे

15000 में वेबसाइट बनवाओ, 50,000 का विज्ञापन पक्का हमारी बात सच साबित हो रही है

छुटभय्ये नेतागण फर्जी वेबसाइट बना कर जनसंपर्क विभाग में अक्सर देखे जाते हैं

अधिकांश गुंडा गैंग संचालन करने वाले ही वेबसाइट बनाकर फर्जी पत्रकार बन गए और पुलिस एवं विभागीय अधिकारियों के परेशानी का सबब बन रहे हंैे

वेबपोर्टल व वेबसाइट की भी आरएनआई में रजिस्ट्रेशन नियमत: अनिवार्य, इसका पालन जरूरी किया जाए

रायपुर। छत्तीसगढ़ में न्यूज पोर्टल और वेबसाइट लोगों को खबर पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभा रहीं हैं। इससे खबरों की विश्वसनीयता बढ़ी हैं और लोग अब प्रिंट मीडिया के बजाय न्यूज पोर्टल और वेबसाइट को ही समाचारों और खबरों के लिए माध्यम बना रहे हैं। लेकिन अपनी बढ़ती सक्रियता और लोकप्रियता के फेर में कुछ वेबपोर्टल और वेबसाइट स्वयं को पूरे प्रदेश में नंबर एक बताकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। जबकि प्रदेश के संबंधित विभाग ने साफ शब्दों में इस बात से इंकार किया है कि उसके द्वारा न ही किसी वेबपोर्टल-न्यूज वेबसाइट के लिए कोई सूची जारी की गई है और नहीं किसी को नंबर एक का तमगा दिया गया है।

गूगल एनालिस्टिक के आधार पर अगर कोई इस तरह का दावा करता है तो वह अमान्य है, इसके लिए संबंधित वेबसाइट-वेबपोर्टल को नोटिस जारी किया जा सकता है। गौरतलब है कि राजधानी से संचालित एक वेबसाइट ने दावा किया है कि राज्य सरकार की इम्पैनल कमेटी ने 500 से ज्यादा न्यूज वेबसाइटों के आकलन और कड़ाई से परीक्षण के बाद उसे प्रदेश का नंबर वन न्यूज वेबसाइट घोषित किया है। इस वेबसाइट ने करीब 8 लाख प्रतिमाह गूगल हिट का दावा किया है। जबकि दूसरे नंबर रही न्यूज वेबसाइट उसके आधे भी नहीं हैं। अगर न्यूज वेबसाइट और वेबपोर्टल गूगल एनालिस्टिक को आधार मानकर नंबर एक होने का दावा करता है तो इस आधार पर जनता से रिश्ता पूरे मध्य भारत में सर्वाधिक देखे जाने और व्यूवर्स संख्या वाला न्यूज वेबसाइट है। जनता से रिश्ता बाकायदा इसके लिए गूगल एनालिस्टिक का रिपोर्ट भी अपने व्यूवर्स के लिए प्रस्तुत कर रहा है। जिसे देखकर नंबर वन का दावा करने वाले वेबसाइट के दावे खोखले साबित हो जाएंगे।

साल 2013 में जब न्यूज वेबसाइट की इंटरनेट पर सक्रियता बढ़ी तभी से जनता से रिश्ता ने अपनी पहचान बनाना शुरू किया था, जिसे आज लोगों को इतना प्यार और भरोसा मिल रहा है कि यह वेबसाइट त्वरित और विश्वसनीय खबरें लोगों तक सबसे पहले पहुंचाने में सफल हो रहा है। लोगों के भरोसे को जनता से रिश्ता ने कभी कमजोर नहीं पडऩे दिया। जनता से रिश्ता के विगत तीस दिनों का जो औसत है उसके अनुसार 1.36,720 पाठक, और पूरे महीने का 36,13,456 पाठक हैं। मध्य भारत और छत्तीसगढ़ प्रदेश में 2013 से हमारा रजिस्टर्ड वेबसाइट है जो एक मात्र कापीराइट एक्ट के तहत व टे्रडमार्क के साथ भी रजिस्टर्ड है। जनता से रिश्ता ने समय-समय पर फर्जी वेबसाइट के आडिट, गूगल एनालिस्टिक रिपोर्ट की जांच करने की जरूरत बताई थी और आज भी यह मांग करती है कि फर्जी वेबसाइट्स पर रोक लगाने के लिए उसकी आडिट और एनालिस्टिक रिपोर्ट की जांच की जाए ताकि ऐसे वेबसाइट पाठकों को गुमराह न कर सकें।

फर्जी व्यूवर्स दिखाकर सरकारी खजाने की लूट

छत्तीसगढ़ में न्यूज पोर्टल और वेबसाइट की बाढ़ सी आ गई है। पत्रकार तो पत्रकार कारोबारी, बिल्डर, ठेकेदार, इंजस्ट्रलीस्ट हर कोई एक न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। लोग पान ठेलों और मोबाइल फोन से वेबसाइट व न्यूजपोर्टल चलाकर लाखों व्यूवर्स का दावा बिना प्रमाण के कर रहे हैं। सरकार को चाहिए इसके लिए भौतिक सत्यापन करवाए और जनसम्पर्क वालो को सभी अख़बार और टीवी चैनलों के दफ्तर जाकर पड़ताल करना चाहिए। सभी वेबसाइट का आईटी एक्सपर्ट और गूगल एनालिटिक एक्सपर्ट के साथ सत्यापन होना चाहिए साथ ही न्यूज़ चैनल और लोकल टीवी वाले सब की जांच रायपुर पुलिस को करना चाहिए जिससे फर्जीवाडा पकड़ में आ सके। प्रिंट मीडिया में सर्कुलेशन और टीवी में टीआरपी ही सब कुछ होता है इसके बिना ये रीढ़ विहीन है बिना दन्त के शेर होते हैं इसका घोटाला कैसे होता है सब को मालूम है। सरकार भी जानती है लेकिन जब तक टीवी या अख़बार वाले सरकार की गुणगान करते रहते हैं तब तक इस पर ध्यान किसी का जाता नहीं। जब सरकार के हितों को चोट इनके द्वारा चोट पहुंचती है तब सरकार जागती है और कार्यवाही करती है। सरकार और जनता दोनों को स्वहित से ऊपर उठ कर इस पर कार्य करना होगा तब जाकर देश का भला हो सकेगा।

न्यूज़ पोर्टल को कानूनी दायरे में लाना जरूरी

डिजिटल इंडिया के बढ़ते ग्राफ के साथ ही खबरों की दुनिया में आए वेब न्यूज मार्केट में बूम की कई वजह हैं। जिसमें से सबसे अहम मानी जाती है विज्ञापन वह भी विशेष तौर पर सरकारी। महज 10 से 25 हजार रुपए खर्च कर कोई भी अपनी वेब न्यूज पोर्टल सर्विस शुरु कर रहे हैं। वेब न्यूज की बाढ़ को देखते हुए अखबारों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ ही अब वेब पोर्टल को भी सरकारी विज्ञापन देने से पहले नीति निर्धारण किया जाएगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने वेबपोर्टलों के लिए विज्ञापन नीति बनाने समिति गठित की है। विज्ञापनों के लालच में चल रहे कई वेब पोर्टलों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। चंद सेकेंड में हजारों-लाखों लोगों तक वेब न्यूज पोर्टल के माध्यम से खबरे पहुंचाने का दावा करने वाली न्यूज सर्विसेज को अब सर्विलांस में रखा गया है। ताकि उनके दावों और खबरों की विश्वसनीयता परखी जा सके। साथ ही दस्तावेजी, व अन्य जरुरी नियमों की तस्दीक के लिए भी बाकायदा हर माह यूनिक यूजर डेटा(यूयू)भी गठित कर सरकारी विज्ञापनों के वितरण को सुनिश्चित करने नीति बनाई गई है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसके लिए गाइडलाइंस भी जारी किए है। जल्द ही दिशा-निर्देश धरातल पर उतरेंगे। वेब मीडिया की बढ़ती ताकत और प्रसार के मद्देनजर सरकार की ओर से लिए गए इस फैसले से दोनों पक्षों को लाभ होगा। सरकारी विज्ञापनों से न्यूज पोर्टल की माली हालत अच्छी होगी, वहीं आनलाइन उपलब्ध करोड़ों यूजर्स तक सरकार आसानी से अपनी बात पहुंचा सकेगी। सरकारी रीति-नीति के प्रचार-प्रसार में सहूलियत होगी। कमोबेश इस नियम से कई ऐसे चिल्हर व फेक वेब न्यूज पोर्टलों पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा जो चंद मिनटों में ही न्यूसेंस क्रियेट कर सकते हैं।

वेबपोर्टल का कंपनी नियमों के तहत पंजीकरण जरुरी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की गाइड लाइन के अनुसार दिशा-निर्देशों और मानकों पर खरे उतरने व विश्वसनीय खबरों वाले पोर्टल-वेबसाइट को ही सूचीबद्ध करने का प्रावधान है। यह काम सरकारी एजेंसी डीएवीपी के जिम्मे है। सूचीबद्ध वेबपोर्टल को ही विज्ञापन मिल सकेगा। दरअसल वेबपोर्टल की संख्या हजारों की तादाद में हैं, जिसमें तमाम फर्जी ढंग से चल रहे हैं। बेसिर-पैर की खबरें प्रसारित करते हैं। इनके गिने-चुने यूजर ही हैं। इस नाते सरकार ने अधिक प्रसार संख्या वाले न्यूज पोर्टल्स की ही सूची तैयार कर रही है। मंत्रालय ने यूजर डेटा के आधार पर तीन केटेगरी में पोर्टल-वेबसाइट्स को तय करेगा। उदाहरण के तौर पर अगर पोर्टल पर छह लाख यूजर प्रति महीने आ रहे हैं तो उसे ए ग्रेड में, तीन से छह लाख संख्या है तो बी ग्रेड और 50 हजार से तीन लाख हैं तो सी ग्रेड में रखा जाएगा। ऊंचे ग्रेड का विज्ञापन रेट ज्यादा होगा। मंत्रालय के मुताबिक उन्हीं वेबपोर्टल को सरकारी विज्ञापन मिलेगा, जिनका संचालन व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत यानी कारपोरेट तरीके से होता है। इनका पंजीकरण भी कंपनी नियमों के तहत जरूरी होगा। छग में एक भी पोर्टल कंपनी नियमों के तहत पंजीकृत नहीं है।

पोर्टल को कानूनी दायरे में लाना जरूरी

: राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना जो भारत में संचालित वेब न्यूज पोर्टल की रीति-नीति बना पाएं, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को कानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा। इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्य सरकारों ने वेब मीडिया के पत्रकारों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों की भांति 'प्रेस अधिमान्यताÓ की सुविधा राज्य मुख्यालय एवं मण्डल / जिला स्तर पर प्रदान की है। परन्तु वे राज्य सरकारें भी पोर्टल को नियमानुसार कानूनी दायरे में लाने में असमर्थ है। वे विज्ञापन नीति जरुर बना पाई परन्तु पोर्टल को कानूनी नहीं कर पा रही है।

इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत

छत्तीसगढ़ सरकार ने वबपोर्टल को विज्ञापन जारी करने के लिए नीति तय करने सेिमति गठित कर डिजिटल प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री और जनसंपर्क आयुक्त व उनके विभागीय अधिकारियों ने सराहनीय पहलकिया है। समिति इसे लेकर अपनी राय तो सरकार को देगी, जाहिर है इसके लिए केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के ऊपर दर्शाए गए गाइडलाइन और दिशा-निर्देश को भी ध्यान में रखा जाएगा, इससे इतर कुछ और बातों पर भी समिति और सरकार को ध्यान देने की जरूरत है जो छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में जरूरी है:-

छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित होने से संवेदनशील राज्य है, वेबसाइट्स-न्यूजपोर्टल संचालकों व संचालित करने वाली संस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराना जरूरी हो।

केन्द्रीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप राज्य में संचालित वेबपोर्टल का कंपनी नियमों के तहत रजिस्ट्रेशन और जीएसटी के दायरे में होना अनिवार्य हो।

वेबपोर्टल का राज्य जनसंपर्क विभाग में पंजीयन के साथ डीएवीपी से रजिस्टर्ड व विज्ञापन दर का निर्धारण अनिवार्य हो।

वेबपोर्टल को भी कानूनी दायरे में लाने के लिए मापदंड तय हो।

अविश्वसनीय और अश्लील समाचार-वीडियो अपलोड करने वाले वेबपोर्टल का पंजीयन निरस्त हो।

वेवपोर्टल के परीक्षण के लिए सर्वर सर्टिफिकेट, सर्वर डिटेल, बैंडस्विच और सर्वर सीपीयू की संख्या को भी आधार माना जाए।

सर्वर का प्रत्येक माह का बिल जिससे सर्वर में यूजर्स ट्रैफिक के अनुसार सर्वर चार्जेस निर्धारित किया जाता है, से भी वेबपोर्टल को परखा जा सकता है।

प्रत्येक वेबसाइट के यूनिक यूजर्स की सही संख्या का पता लगाने उसके बाउंस रेट तथा यूजर्स फ्लो के कॉलम को जांचना अनिवार्य हो।

डीएवीपी ने हर वेबसाइट के लिए कामस्कोर रिपोर्ट को अनिवार्य और विज्ञापन देने का आधार बनाया है, राज्य के हर वेबपोर्टल का कामस्कोर में रजिस्टे्रशन और उसके एनालिटिक रिपोर्ट को अनिवार्य किया जाए।

गूगल एडसेंस के द्वारा प्रत्येक वेबसाइट को एडसेंस प्वाइंट के आधार पर विज्ञापन दिया जाता है और उसी को आधार मानकर यूजर की संख्या गूगल एनालिटिक में दर्ज की जाती है, इसे भी आधार बनाया जा सकता है।

अधिकांश वेबसाइट संचालकों ने फर्जी गूगल एनालिस्टिक आकंड़े बढ़ाकर डीपीआर में प्रस्तुत किए हैं, जनता से रिश्ता ने अपने खबरों और शिकायतों के माध्यम से जनसंपर्क संचालनालय को अवगत करारा था।

जिन वेबसाइट संचालकों के पास एक भी कर्मचारी नहीं और मोबाइल से वेबसाइट का संचालन करते हैं ऐसे वेबसाइट को संज्ञान में लेकर इसकी जांच की जानी चाहिए। जनता से रिश्ता ने स्पष्ट रूप से अपने शिकायत में कहा था कि इंटरनेट का कनेक्शन, यूजर्स के आधार और गूगल एडसेंस के यूजर , पेज व्यूवर्स को ही पैमाना मानकर वेबसाइट का आंकलन किया जाता है और इसी तरीके डीएवीपी ने मान्यता दी है। और इसी के आधार पर ही हम वेबसाइट के आंकलन की हम लगातार मांग कर रहे हैं।

जनता से रिश्ता ने पहले ही आशंका जताई थी कि जिनके पास एक भी कर्मचारी नहीं हैं या तो नगण्य हैं ऐसे फर्जी वेबपोर्टल वाले अपने आप को नंबर वन बताने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।

कुकुरमुत्ते के जैसे वेबसाइटों की बाढ़ आ गई है, किराए के एक कमेरे से मोबाइल में न्यूज अपलोड कर न्यूज पोर्टल चला रहे फर्जी पत्रकार।

सरकार से लेकर विभागीय अधिकारी इन वेबपोर्टल वाले मोबाइल छाप फर्जी पत्रकारों की उगाही से हलाकान।

राज्य सरकार को इनके खिलाफ केंद्र सरकार और आरएनआई की गाइड लाइन पर कार्रवाई करनी चाहिए।

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