दन्तेवाड़ा जिले की योगेश्वरी कोर्राम अपना अनुभव बताते हुए कहा कि सन् 2002 में संविदा शिक्षक के रूप में मेरा प्रथम नियुक्ति बालक आश्रम पोटाकेबिन अरनपुर (विकास खण्ड कुआकोण्डा) में हुआ। वहाँ पर कक्षा 1 व 8 वी तक शालाओ का संचालन होता था। एक प्रधान अध्यापक और दो शिक्षिका थे। प्रारंभ मे 30 छात्र अध्यनरत थे। 2004 में आश्रम शाला में 50 छात्र अध्ययनरत हुये। ब्लॉक मुख्यालय से अरनपुर बहुत अंदर क्षेत्र है। इस कारण परिवार वाले मुझे नौकरी पर जाने की अनुमति नहीं दे रहे थे। मैने उन्हें बहुत समझाया तो बाद में वे मान गये। नौकरी के शुरूआत में हमारे प्रधान अध्यापक श्री बी. के. सहारे सर ने अध्यापन के क्षेत्र में बहुत सहयोग प्रदान किये। समय समय पर वे हमारा मार्गदर्शन भी करते थे। 2002 से 2009 तक मैंने बालक आश्रम अरनपुर मे कार्य किये। उसके उपरान्त मैने 2009 में प्री. मै. छात्रावास पालनार मे अधीक्षिका के पद पर कार्य किया। वहाँ कार्य करते हुये मुझे जो भी परेशानी होती थी उसे वहाँ के प्रधान अध्यापक श्री के. डी. ठाकुर सर मेरा पूर्ण सहयोग देते थे। समय समय पर वे मुझे उचित अनुचित का भी ज्ञान देते थे। वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। सन् 2014 में मेरी पदोन्नति हुई। मेरा मूल संस्था बालक आश्रम अरनपुर ही था। 2015 मैने अधीक्षिका पद से त्याग पत्र दे दिया। उसके पश्चात 2016 में अतिशेष होने के कारण अन्य शाला में पदस्थापना हो गया। 2016 से आज पर्यन्त मैं पोटा केबिन 01 कुआकोण्डा में शिक्षक एल बी के पद पर कार्यरत हूँ। यहाँ कक्षा 1 व 10 वी तक कक्षाएं संचालित है। यहाँ 400 से अधिक छात्र अध्ययन करते है। मैं माध्यमिक स्तर के छात्रों को पढ़ाती हूँ। अपने अध्यापन में टी. एल. एम. का प्रयोग करती हूँ। बच्चों पढ़ाई से जुड़े रहे इसके लिए मैं कुछ छोटी छोटी गतिविधि कराती हूँ।