छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: नाबालिग बच्चों की तस्करी करने वाला आंध्रप्रदेश से गिरफ्तार, कोरबा के तीन बच्चे भी हुए बरामद

Shantanu Roy
18 Sep 2021 3:36 AM GMT
छत्तीसगढ़: नाबालिग बच्चों की तस्करी करने वाला आंध्रप्रदेश से गिरफ्तार, कोरबा के तीन बच्चे भी हुए बरामद
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400 रूपये रोजी में काम करवाने की फिराक में था आरोपी

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरबा जिले में गरीबी के चलते बेबस हुए 16 साल के तीन किशोर परिवार की गुजर-बसर में माता-पिता का हाथ बंटाने की सोच घर से 2200 किलोमीटर दूर पहुंच गए। घरेलू काम-काज के बदले प्रतिदिन 400 रुपये मेहनताना मिलने का लालच दे एक एजेंट उन्हें लेकर आंध्रप्रदेश पहुंच गया। स्टेशन में एक साथ कई बच्चों को घूमता देख तिरुचिरापल्ली रेलवे सुरक्षा बल ने शक के आधार पर रोककर पूछताछ की। पता चला, उन्हें काम दिलाने का झांसा देकर सात बच्चों को उत्तरप्रदेश व छत्तीसगढ़ से इतनी दूर ले गया, जिनमें से तीन कोरबा के रहने वाले हैं।

तिरुचिरापल्ली स्टेशन के आरपीएफ ने इस रेस्क्यू आपेरशन में कुल सात बच्चों को सुरक्षित किया। इनमें चार बच्चे उत्तरप्रदेश तो शेष तीन कोरबा के रहने वाले मिले। रेस्क्यू किए गए तीनो बालक करीब सोलह वर्ष की आयु के हैं। इनमें एक ग्राम घूंचापुर, दूसरा कटघोरा व तीसरा ग्राम कपोट का रहने वाला है। आरपीएफ ने तिरुचिरापल्ली की ओर से रेस्क्यू आपरेशन के बाद बच्चों की जानकारी वहां की बाल कल्याण समिति को प्रदान की।
इसके बाद पुलिस की सहायता से बच्चे समिति के समक्ष प्रस्तुत हुए, जहां काउंसिलिंग के बाद उन्हें तिरुचिरापल्ली स्थित बाल आश्रय गृह में सुरक्षित ठहराया गया है। तिरुचिरापल्ली बाल कल्याण समिति की ओर से बाल कल्याण समिति कोरबा से संपर्क करते हुए वहां तीनों बच्चों के होने की सूचना भेजी गई है। आगामी दिनों में वैधानिक प्रक्रिया पूर्ण कर उन्हें कोरबा वापस लाने व उनके गांव पहुंचाने की कार्रवाई की जाएगी।
कटघोरा में रहता है एजेंट गिरवर लाल चौहान एक के पिता नहीं, मां की मदद करने चला गया तिरुचिरापल्ली में रेस्क्यू किए गए तीन किशोरों में एक के पिता नहीं हैं। उसके पास सिर्फ मां का साथ और उसकी मां को केवल उसी का सहारा है। किसी तरह मेहनत-मशक्कत कर बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है। यही वजह है जो यह किशोर इतनी दूर जाने तो उसकी मां उसे अपने से दूर भेजने को मान गई।
कोरबा से तिरुचिरापल्ली की दूरी दो हजार किलोमीटर से अधिक है। ट्रेन की यात्रा करने पर भी 33 घंटे का समय लग जाता है। इस तरह करीब डेढ़ दिन के सफर में कोरबा से तिरुचिरापल्ली के बीच 52 स्टेशन गुजरते हैं। सफर के दौरान कई टीटीई, रेलवे स्टाफ एवं यात्रियों की नजर इन बच्चों पर पड़ी होगी। पर देखने वाली बात यह है कि अनगिनत आम यात्रियों एवं कर्मचारियों की निगाह से गुजरकर भी अनदेखी का शिकार हुए यह बच्चे इतनी दूर पहुंच गए। अगर स्टेशन में मुस्तैद रेलवे सुरक्षा बल की नजर न पड़ी होती, तो आगे क्या होता, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
इन तीनों बच्चों को झांसे में लेने वाला एजेंट गिरवर लाल चौहान और वह भी कोरबा के कटघोरा का ही रहने वाला है। वह उनके माता-पिता से संपर्क कर तिरुचिरापल्ली में काम दिलाने का झांसा दिया। इसके बदले किसी प्रकार की राशि एडवांस के तौर पर नहीं दी गई। सहमत होने पर 28 अगस्त को वह उन्हें ट्रेन से तिरुचिरापल्ली ले गया। वहां वह बच्चों से बर्तन व घर सफाई जैसे घरेलू काम के लिए लेकर गया था। 31 अगस्त को स्टेशन में एक साथ कई छोटे बच्चों को देख आरपीएफ टीम ने उन्हें रेस्क्यू किया। इसके बाद यह बात सामने आई और उन्हें कब्जे में लिया गया।
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