छत्तीसगढ़। भारत को यूं ही प्रतिभाओं का देश नहीं कहा जाता है. अब तक आपने किसी भी शख्स को बांसुरी मुंह से लगाकर बजाते हुए देखा होगा. लेकिन क्या कभी बांसुरी को हवा में हिला कर उससे मधुर आवाज निकालते हुआ देखा है. जी हां ये बिल्कुल सच हैं और छत्तीसगढ़ के एक शख्स ने ऐसा कर दिखाया है. क्या कभी आपने ऐसे यंत्र के बारे में सुना या देखा है? छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के रहने वाले मनीराम होठों से लगाकर नहीं बल्कि बांसुरी को हवा में हिलाकर बजाते हैं. पीपुल्स अर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया ने मनीराम मंडावी की एक छोटी क्लिप साझा की ही जिसमें वो बांसुरी को हवा में हिलाकर बजाने की अवधारणा को विस्तार से बता रहे हैं.
उन्होंने बताया, जब आप इसे हवा में झुलाते हैं तो ये बांसुरी संगीत बजाते हैं. गोंड आदिवासी समुदाय के बांसुरी बनाने वाले मनीराम ने कहा कि झूलते हुए बांसुरी का इस्तेमाल न केवल संगीत पैदा करने के लिए किया जाता था, बल्कि जंगलों से यात्रा के दौरान जंगली जानवरों को भगाने के लिए भी किया जाता था.
मनीराम ने कहा, "हमारी झूलती हुई बांसुरी का उपयोग संगीत पैदा करने के लिए किया जाता है. इसका उपयोग लोग जानवरों, जैसे कि बाघ, चीता और भालू से बचने के लिए करते हैं. जब हम जंगल (कुछ आदिवासी समुदायों की परंपरा) में जाते हैं. यदि आप इन बांसुरी को झुलाते हैं तो जानवर आपसे दूर रहते हैं. पीपुल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया ने इस खास बांसुरी को लेकर बताया कि बांस को आकार देने, चिकना करने और उसे छीलने के लिए काटा जाता है और फिर एक गर्म उपकरण के साथ ज्यामितीय डिजाइनों का उपयोग करके इसे तैयार किया जाता है. इसके बाद गर्म उपकरण से बांसुरी पर प्रकाश और अंधेरे का पैटर्न बनता है.एक अन्य वीडियो में मनीराम ने भावुक होते हुए बताया था कि जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं और इन्हें लगातार काटा जा रहा है. "जंगल बड़े पेड़ों से भरा हुआ था. अब कोई बड़े पेड़ नहीं हैं. हवा से बजने वाली बांसुरी बनाना मुश्किल होता जा रहा है. सोशल मीडिया पर मनिराम के इस कला के लोग मुरीद हो गए हैं और उसकी खूब तारीफ कर रहे हैं.