अतुल्य चौबे
रायपुर। प्रदेश में न्यूज वेबपोर्टल और वेबसाइट का कारोबार अब धड़ल्ले से चल निकला है। कोई भी आदमी अब एक डोमिन रजिस्टर कर वेब-पोर्टल और वेबसाइट चला सकता है। छुटभैय्ये नेता, अवैध कारोबारियों, यहां तक बिल्डर और इंडस्ट्रलिस्ट के लिए भी यह धंधा फायदे का साबित हो रहा है। वेबपोर्टल शुरू कर पत्रकार का टैग लगाकर आसानी से अधिकारियों को धौंस दिखाकर सरकारी विज्ञापन हासिल करना, उगाही करना आसान हो गया है। बिना आरएनआई और बिना कंपनी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के इन वेबपोर्टलों को संबंधित विभाग द्वारा इम्पैनलिस्ट कर उन्हें सरकारी विज्ञापन उपलब्ध कराने से उनके हौसले बुलंद हैं। वेबपोर्टल और वेबसाइट के संचालकों-को अधिमान्यता देने के फैसले ने सोने पे सोहागा का काम किया है जिसके बाद इस कारोबार को शुरू करने की होड़ लग गई है। जिसे देखिए वही वेबसाइट शुरू कर रहा है। एक समय था जब अखबार के रजिस्ट्रेशन के लिए कोई अर्हता या मापदंड अनिवार्य नहीं होने से कोई भी साप्ताहिक-पाक्षिक व मासिक अखबार-पत्रिका का टाइटल लेकर सरकार के विभागीय कार्यालयों से विज्ञापन और अधिकारियों-ठेकेदारों से वसूली के लिए सक्रिय रहते थे। संबंधित विभाग में ऐसे लोगों की पूरे आफिस टाइम तक आमद बनी रहती थी। डीएवीपी की सख्ती के बाद कुछ समय पहले ऐसे धंधेबाजों की दुकानदारी बंद हो गई। अब ऐसा ही दृश्य वेबपोर्टल का धंधा शुरू होने के बाद दिखाई देने लगा है।
कमाई का नया रास्ता मिला
वेबपोर्टल के रूप में लोगों को कमाई का एक नया रास्ता मिल गया है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और छुटभैय्ये नेताओं के लिए तो यह वरदान बन गया है। जिनके मंत्रियों के करीबियों से संबंध हैं वे उनके माध्यम से संबंधित विभाग तक आसानी से पहुंच बना लेते हैं और खुद को पत्रकार बताकर अपने वेबपोर्टल के लिए सरकारी विज्ञापन हासिल कर लेते हैं। अवैध धंधा करने वाले, भू-माफिया और अपराधिक गतिविधि में लगे लोग भी वेबपोर्टल को अपनी कमाई और काम बनाने के लिए माध्यम बना रहे हैं। यहां तक बिल्डर और उद्योग के मालिक भी न्यूज वेबसाइट के माध्यम से खुद को पत्रकार बताकर अपने काम बना रहे हैं। सट्टे-जुए और नशे का धंधा करने वाले लोगों ने भी अपना वेबपोर्टल बना लिया है और संबंधित विभाग से महीने का पचास हजार का विज्ञापन ले रहे हैं। ऐसे लोग खुद को वेबपोर्टल का संचालक बताकर अधिमान्यता के लिए भी दावा ठोंक रहे हैं इससे आम और सालों से विशुद्ध पत्रकारिता करने वाले ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
न आरएनआई और न डीएवीपी से विज्ञापन दर निर्धारित
सरकार की डायरेक्टोरेट आफ एडवरटीजमेंट एंड विजुअल पब्लिसिटी(डीएवीपी) एजेंसी ही सरकारी विज्ञापनों की व्यवस्था संभालती है। यही सरकारी रेट निर्धारण करती है। इसी कंपनी के जिम्मे न्यूज पोर्टल की लिस्टिंग व विज्ञापन रेट तय करना होगा। अखबार व टीवी चैनलों की तरह यही एजेंसी सभी सरकारी विभागों व मंत्रालयों के विज्ञापन वेबसाइट्स को भी प्रदान करेगी। इसकी भूमिका सभी सरकारी महकमे और मंत्रालयों के बीच नोडल एजेंसी की होगी। छत्तीसगढ़ में एक भी वेबपोर्टल आरएनआई में रजिस्टर्ड नहीं है और नहीं डीएवीपी से इनके विज्ञापन का दर निर्धारित किया गया है। ऐसे वेबपोर्टलों को राज्य के संबंधित विभाग ने इम्पैनलिस्ट किया है और उन्हें सरकारी विज्ञापन उपलब्ध कराया जा रहा है।
डीएवीपी में यूनिक यूजर डेटा विज्ञापन के लिए आधार
डीएवीपी की ओर से सभी लिस्टेड न्यूज पोर्टल पर हर माह आने वाले विजिटर की चेकिंग होगी। जिस वेबसाइट के हर माह जितने अधिक यूजर होंगे, उसी आधार पर उसे विज्ञापन मिलेंगे। यानी यूनिक यूजर डेटा के आधार पर ही अधिक से अधिक विज्ञापन का लाभ मिलेगा। लिहाजा जिस पोर्टल के ज्यादा यूजर होंगे, वह ज्यादा विज्ञापन पाकर मालामाल होगी। जिन न्यूज पोर्टल को इंडियन ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री सूचीबद्द करेगी उसकी हर साल समीक्षा होगी। देखा जाएगा कि अब भी न्यूज पोर्टल पहले की तरह लोकप्रिय है या नहीं। हर साल के अप्रैल के पहले सप्ताह में यूनिक यूजर डेटा की सरकारी स्तर से समीक्षा होगी। इसके बाद हर साल नई सूची तैयार होगी। जिन पोर्टल पर यूजर की संख्या अच्छी-खासी बरकरार रहेगी वे सूची में बने रहेंगे बाकी बाहर कर दिए जाएंगे।
वेबपोर्टल का कंपनी नियमों के तहत पंजीकरण जरुरी
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की गाइड लाइन के अनुसार दिशा-निर्देशों और मानकों पर खरे उतरने व विश्वसनीय खबरों वाले पोर्टल-वेबसाइट को ही सूचीबद्ध करने का प्रावधान है। यह काम सरकारी एजेंसी डीएवीपी के जिम्मे है। सूचीबद्ध वेबपोर्टल को ही विज्ञापन मिल सकेगा। दरअसल वेबपोर्टल की संख्या हजारों की तादाद में हैं, जिसमें तमाम फर्जी ढंग से चल रहे हैं। बेसिर-पैर की खबरें प्रसारित करते हैं। इनके गिने-चुने यूजर ही हैं। इस नाते सरकार ने अधिक प्रसार संख्या वाले न्यूज पोर्टल्स की ही सूची तैयार कर रही है।
मंत्रालय ने यूजर डेटा के आधार पर तीन केटेगरी में पोर्टल-वेबसाइट्स को तय करेगा। उदाहरण के तौर पर अगर पोर्टल पर छह लाख यूजर प्रति महीने आ रहे हैं तो उसे ए ग्रेड में, तीन से छह लाख संख्या है तो बी ग्रेड और 50 हजार से तीन लाख हैं तो सी ग्रेड में रखा जाएगा। ऊंचे ग्रेड का विज्ञापन रेट ज्यादा होगा। मंत्रालय के मुताबिक उन्हीं वेबपोर्टल को सरकारी विज्ञापन मिलेगा, जिनका संचालन व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत यानी कारपोरेट तरीके से होता है। इनका पंजीकरण भी कंपनी नियमों के तहत जरूरी होगा। छग में एक भी पोर्टल कंपनी नियमों के तहत पंजीकृत नहीं है।
पोर्टल को कानूनी दायरे में लाना जरूरी
राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना जो भारत में संचालित वेब न्यूज पोर्टल की रीति-नीति बना पाएं, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को कानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा। इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्य सरकारों ने वेब मीडिया के पत्रकारों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों की भांति 'प्रेस अधिमान्यताÓ की सुविधा राज्य मुख्यालय एवं मण्डल / जिला स्तर पर प्रदान की है। परन्तु वे राज्य सरकारें भी पोर्टल को नियमानुसार कानूनी दायरे में लाने में असमर्थ है। वे विज्ञापन नीति जरुर बना पाई परन्तु पोर्टल को कानूनी नहीं कर पा रही है।
इन बातों पर हो फोकस
ठ्ठ सरकार को क्या करना चाहिए सबसे पहले गूगल ऐडसेंस वेबसाइट के लिए अनिवार्य मापदंड बनाना चाहिए, 3 साल पुरानी वेबसाइट होनी चाहिए वेबसाइट को संचालन करने के लिए कितने कर्मचारी है उसकी जांच होनी चाहिए. वेबसाइट में प्रतिदिन कितना खबर अपनी वेबसाइट में लगाते हैं इसकी अनिवार्यता को प्रतिबंध करना चाहिए, क्रहृढ्ढ पंजीयन नंबर अनिवार्यता के साथ ष्ठ्रङ्कक्क के अधिमान्य और कानून के अंतर्गत वेबसाइट संचालकों के लिए संवाद के द्वारा निर्धारित स्श्वह्र ऑडिटर नियुक्त होना चाहिए, वेबसाइट के लिए अधिमान्यता समिति को भंग कर टेक्निकल/सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ और वेबसाइट पर लंबे समय से काम करने वाले पत्रकारों को ही जगह मिलनी चाहिए।
ठ्ठ सरकार के लिए नुकसान क्या हो रहा है और क्या होगा, जिस तरीके से वेबसाइटों की संख्या प्रतिदिन लगातार बढ़ते जा रही है, सरकारी विभाग पुलिसकर्मी और राजनीतिक पार्टियां इस तरीके से वेबसाइट के मकडज़ाल में उलझ जाएंगी और वेबसाइट के संचालक अपना यूनियन बनाकर सरकार को, कर्मचारियों को और शासकीय कार्यालय में दखल देकर अवैध रूप से मनमानी करेंगे, ब्लैक मेलिंग करेंगे, जिसके लिए सरकार को अभी से ही उचित कदम उठाने चाहिए और निर्धारित मापदंड को मानक तौर पर अनिवार्यता के साथ लागू करना चाहिए।
ठ्ठ अधिमान्यता समिति के सदस्यों ने तेरा और मेरा नीति अपनाते हुए निर्धारित ष्ठ्रङ्कक्क के मापदंड और गूगल ऐडसेंस के मापदंड को दरकिनार कर छत्तीसगढ़ संवाद और छत्तीसगढ़ शासन के पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा कार्य अधिमान्यता समिति ने किया है । ऐसे हालातों में अधिमान्यता समिति को भंग कर टेक्निकल/सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ और वेबसाइट चलाने का अनुभव रखने वाले व्यक्ति को ही सदस्य बनाया जाए।
ठ्ठ प्रत्येक न्यूज़ पोर्टल के समाचार संपादक और कंपनी से शपथ पत्र प्रतिमाह गूगल एनालिस्टिक , गूगल ऐडसेंस के दस्तावेज के साथ लेना अनिवार्य करना चाहिए ताकि फर्जी गूगल एनालिस्टिक और गूगल ऐडसेंस को पकड़ा जा सके और संबंधित वेबसाइट के मालिक और संपादक के खिलाफ पुलिस की कानूनी कार्रवाई विभाग द्वारा आसानी से की जा सके।
ठ्ठ गुंडा-माफिया और नशे के अवैध कारोबारियों द्वारा संचालित जिन वेबसाइटों को अधिमान्यता समिति व विज्ञापन के लिए अप्रुवल दिया गया है, ऐसे सभी वेबसाइटों का तत्काल टेक्निकल/सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ के द्वारा ऑडिट कराकर उनकी अधिमान्यता रद्द करना चाहिए।
डीएवीपी की शर्तें
विज्ञापन उन्हीं को दिया जाएगा जो वेबमीडिया और पोर्टल कम से कम 3 साल से चल रहे हों।
ऐसे वेबसाइट और पोर्टल जिनके दर का निर्धारण केंद्र सरकार के ष्ठ्रङ्कक्क से किया गया हो।
वेबमीडिया और पोर्टल राज्य के जनसंपर्क विभाग में रजिस्टर्ड होना चाहिए।
विज्ञापन मान्यता के आवेदन के लिए वेबसाइट-पोर्टल को अपना रजिस्ट्रेशन सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय में कराना होगा।
विज्ञापन वितरण के उद्देश्य से वेब माध्यमों को 3 कैटगरी में बांटा जाएगा।
सरकारी विज्ञापन उसी वेबसाइट और पोर्टल को दिया जाएगा, जिसके पास हर महीने कम से कम ढाई लाख ॥ढ्ढञ्ज आते हों।
HIT की गणना के लिए पिछले 6 महीने का रिकार्ड देखा जाएगा।
इसके लिए भारत में वेबसाइट ट्रैफिक मॉनीटरिंग करने वाली कंपनी के रिकार्ड मान्य होंगे।