छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ मॉडल: परम्परागत व्यवसायों और आस्था के केन्द्रों का हो रहा विकास

Nilmani Pal
16 Dec 2021 4:25 PM GMT
छत्तीसगढ़ मॉडल:  परम्परागत व्यवसायों और आस्था के केन्द्रों का हो रहा विकास
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में कृषि और इससे जुड़े व्यवसाय के लिए सामाजिक ताना-बाना आज भी माकूल है। राज्य में खेती-किसानी लोगों की जीवन चर्या पर अभिन्न अंग है। यह न केवल उनकी आजीविका का स्रोत है, बल्कि उनकी ग्रामीण संस्कृति से भी जुड़ी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का भी काम कर रही है। छत्तीसगढ़ के लोगों में अपनी संस्कृति पर गर्व की भावना जगाने के लिए छत्तीसगढ़ के तीज-त्यौहारों पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की गई है। वहीं वनांचल में रहने वाले आदिवासी लोगों की संस्कृति को सहेजने और संवारने का भी काम कर रही है। राज्य सरकार द्वारा आदिवासी समुदाय के आस्था स्थल देवगुड़ी का विकास किया जा रहा है। वहीं इन वर्गों के युवाओं के लिए घोटुल का भी निर्माण किया जा रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में विकास को व्यवस्थित और उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने के लिए आदिवासी क्षेत्र विकास प्राधिकरणों का गठन कर उन्हें पहले से अधिक अधिकार दिए गए हैं।

राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण संस्कृति में खेती-किसानी को मजबूत बनाने के लिए जहां सुराजी गांव योजना, गोधन न्याय योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना संचालित की जा रही है। इससे राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों आर्थिक क्रियाकलापों को और अधिक गति देने के लिए ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ तेलघानी विकास बोर्ड, छत्तीसगढ़ लौहशिल्प विकास बोर्ड, छत्तीसगढ़ चर्म शिल्पकार बोर्ड और छत्तीसगढ़ रजककार विकास बोर्ड का गठन किया है।

छत्तीगसढ़ परंपरागत रूप से तेल पेराई, लोहारी, चर्मशिल्प और रजककार का काम करने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति में इन बोर्डों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इन बोर्डों को इन वर्गों से जुड़े लोगों को रोजगार के साथ-साथ उनके परंपरागत धंधों को आधुनिक बनाने की जवाबदारी सौंपी गई। नवगठित बोर्डों के जरिए परंपरागत कुटीर उद्योगों से जुड़े लोगों के लिए नवीन योजनाएं भी संचालित की जाएंगी तथा इनके व्यवसाय और व्यापार को बढ़ाने के लिए बैंक ऋण एवं अनुदान योजनाएं संचालित होंगी। राज्य सरकार द्वारा इन नवीन बोर्डों के गठन की प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है तथा इन बोर्डों को ग्रामीण शिल्पियों की उन्नति के लिए कार्ययोजना तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में छत्तीसगढ़ तेलघानी विकास बोर्ड के लिए 10 लाख रूपए की राशि का प्रावधान किया गया है।

खेती-किसानी में काम आने वाले औजारों के उत्पादन को बढ़ावा देने तथा स्थानीय लोहारों की कार्य कुशलता तथा उनके उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ लौह शिल्पकार विकास बोर्ड काम करेगा। यह बोर्ड लौह शिल्पकार को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्वरोजगार स्थापित करने में भी मदद करेगा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में छत्तीसगढ़ लौह शिल्पकार विकास बोर्ड के लिए 10 लाख रूपए की राशि का प्रावधान किया गया है। चर्म शिल्प के शिल्पियों को आधुनिक तौर-तरीके से उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षण और नवीनतम तकनीक की मशीने उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें स्वरोजगार स्थापित करने के लिए छत्तीसगढ़ चर्म शिल्पकार विकास बोर्ड मदद करेगा। राज्य सरकार द्वारा इस बोर्ड के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में 10 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है। रजककारों को आधुनिक लाउंड्री की स्थापना तथा इसके संचालन में मदद के लिए छत्तीसगढ़ रजककार विकास बोर्ड का गठन किया गया है। यह बोर्ड रजककार समुदाय की बेहतरी के लिए काम करेगा तथा इन समुदाय से जुड़े युवाओं को स्वरोजगार के लिए बैंक ऋण एवं अनुदान दिलाने में सहायता करेगा। राज्य सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 में 10 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है।

आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और विकास के लिए आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में उनके पूजा एवं श्रद्धा स्थलों-देवगुड़ी के निर्माण और मरम्मत के लिए प्रदान की जाने वाली राशियों में 5 गुना की वृद्धि की है। वर्ष 2017-18 से प्रति देवगुड़ी निर्माण के लिए एक लाख रूपए की राशि उपलब्ध कराई जा रही थी। राज्य शासन द्वारा इसमें वृद्धि कर प्रति देवगुड़ी निर्माण के लिए 5 लाख रूपए का अनुदान दिया जा रहा है। इसके साथ ही अबूझमाड़िया जनजाति समुदायों में प्रचलित घोटुल प्रथा को संरक्षित रखने के लिए भी विशेष प्रयास किया गया है। विगत तीन वर्षों में एक हजार 176 देवगुड़ी निर्माण कार्य स्वीकृत किए गए हैं। वर्ष 2021-22 में 164 देवगुड़ी के लिए 164.20 लाख रूपए का आबंटन जिलों को उपलब्ध कराया गया है।

राज्य सरकार ने आदिवासी समुदाय की भावनाओं के अनुरूप पूर्व में गठित आदिवासी विकास क्षेत्र प्राधिकरणों का पुनर्गठन करते हुए इसके प्रशासन का विकेन्द्रीकरण भी किया है। इन प्राधिकरणों को पहले से अधिक अधिकार सम्पन्न बनाया गया है तथा इनके अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष स्थानीय विधायकों को नियुक्त किया गया है। प्राधिकरण के काम-काज में सुविधा के लिए संभागीय आयुक्त जगदलपुर, सरगुजा एवं दुर्ग को संबंधित प्राधिकरण का सदस्य सचिव बनाया गया है। इन संभागीय मुख्यालयों पर ही प्राधिकरण का मुख्यालय स्थापित किया गया है। इससे पहले इन प्राधिकरणों के अध्यक्ष मुख्यमंत्री हुआ करते थे। राज्य सरकार द्वारा नवीन मध्य क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण का गठन करते हुए अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पदों पर क्षेत्रीय विधायकगण को नियुक्त किया गया है। संभागीय मुख्यालय रायपुर प्राधिकरण का मुख्यालय स्थापित किया गया है।

आलेख: श्री ललित चतुर्वेदी, श्री घनश्याम केशरवानी

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