छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन का कारनामा, दवा परिवहन निविदा के मूल्यांकन में गड़बड़ी की आशंका

Admin2
27 May 2021 5:14 AM GMT
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन का कारनामा, दवा परिवहन निविदा के मूल्यांकन में गड़बड़ी की आशंका
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अपात्र निविदाकार का चयन किस आधार पर किया गया?

दूसरे अपात्र घोषित फर्म ने लगाई आपत्ति

गुमास्ता के नाम पर भी गुमराह किया गया

गणपति इंडस्ट्रीज को गुमास्ता के नाम अलग होने के आधार पर अपात्र किया गया है तो ऐसे में एस के इंटरप्राइजेज के द्वारा जमा किए गए दस्तावेज में भी इंटरप्राइजेज के नाम नहीं है बल्कि शशि कपूर उपाध्याय का नाम है जोकि दोनों में समान अंतर दर्शाता है इसके बावजूद भी एस के इंटरप्राइजेज को पात्र घोषित कर दिया गया। ऐसा लगता है कि विभाग द्वारा जानबूझकर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचने के लिए ऐसा किया गया है।

ज़ाकिर घुरसेना

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा दवाई आपूर्ति हुए भ्रष्टाचार का बड़ा कारनामा लोग भूले नहीं हैं अब दूसरा कारनामा कर दिया गया । दवा परिवहन हेतु बुलाई गई निविदा के मूल्याकन में गड़बड़ी कर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाये जाने की आशंका है। इसके पहले सीजीएमएससी द्वारा राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की गई पोविडोन आयोडीन एंटीसेप्टिक साल्यूशन (घोल) को जांच में नकली पाया गया था । मामला खुलने के बाद शासन ने आनन-फानन में सभी अस्पतालों से दवा को वापस मंगा लिया था । राजधानी के आंबेडकर अस्पताल समेत प्रदेश के कई सरकारी अस्पतालों से लंबे समय से दवा के बेअसर होने की शिकायतें मिल रही थीं। आंबेडकर अस्पताल की शिकायत पर औषधि विभाग ने जांच की तो दवा गुणवत्ताहीन पाई गई थी । इस दवा की आपूर्ति हिमाचल के नालागढ़ स्थित एल्विस हेल्थकेयर कंपनी ने की थी । औषधि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 100 मिलीलीटर पोविडोन आयोडीन में 500 मिलीग्राम आयोडीन की मात्रा होनी चाहिए। लैब जांच में आयोडीन की मात्रा शून्य पाई गई थी , जो पूरी तरह गलत है है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने उस समय बयान दिया था कि दवाएं मरीजों के लिए संजीवनी है। अस्पतालों में नकली दवा की आपूर्ति बेहद गंभीर मामला है। इसकी पूरी जानकारी लेता हूं। जांच के बाद निश्चित तौर पर दोषियों पर कार्रवाई होगी। दोषियों पर करवाई हुई कि नहीं पर अब सीजीएमएससी के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से छत्तीसगढ़ में दवा परिवहन के लिए बुलाई गई निविदा में भी गोलमाल का अंदेशा नजऱ आ रहा है।

सीजीएमएससी लिमिटेड के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से दवा परिवहन हेतु वाहनों को लगाने/ दर अनुबंध हेतु 5 दिसंबर 2020 को निविदा आमंत्रित की गई थी जिसमें कुल 3 निविदाकारों ने भाग लिया था उक्त निविदा में दिनांक 24 फऱवरी 2021 को दावा आपत्ति चाही गई थी जिसके तहत तीनों निविदाकारों को अपात्र घोषित कर दिया बाद में एक निविदाकार एस के इंटरप्राइजेज को पात्र कर दिया गया। दावा आपत्ती में गणपति इंडस्ट्रीज को अपात्र होने का कारण दो गाडिय़ों के पुराने एवं गुमास्ता में फर्म का नाम गणपति इंडस्ट्रीज की जगह गणपति ट्रांसपोर्ट लिखा हुआ होना बताया गया जबकि निविदा में गुमास्ता जमा करने हेतु कहीं पर भी किसी भी बात का उल्लेख नहीं है साथ ही उनके द्वारा जमा किए गए फॉर्म के जीएसटी रजिस्ट्रेशन में उल्लेखित नाम को स्वीकार नहीं किया गया जबकि जीएसटी रजिस्ट्रेशन हेतु निविदा के दस्तावेज में चाहा गया था। उक्त समस्त जवाब गणपति इंडस्ट्रीज द्वारा उचित जानकारी के साथ विभाग को प्रदाय भी किया गया। उस फर्म द्वारा दिनांक 1 मार्च 2021 एवं 20 मार्च 2021 को शासन के नियमानुसार कवर ए के दस्तावेज ऑनलाइन अपलोड करने के लिए आग्रह किया गया था। जबकि गणपति इंडस्ट्रीज की गाडिय़ां पहले से ही सीजीएमएससी लिमिटेड से जुड़कर अपनी सेवाएं पिछले 4 सालों से देती आ रही है और जैसा कि सीजीएमएससी द्वारा निकाले गए निविदा में पात्रता मापदंड में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि निविदाकार को किसी शासकीय अनुसंधान/कार्यालय में न्यूनतम 2 वर्ष का अनुभव प्राप्त होना चाहिए इसके तहत उक्त गणपति इंडस्ट्रीज पूरी तरह पात्र है लेकिन जिस एस के इंटरप्राइजेज को इसके लिए पात्र किया गया है उनको पहले इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव ही नहीं है इससे जाहिर होता है कि इसके मूल्यांकन में गड़बड़ी कर जमकर भ्रस्टाचार किया गया है।

विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि वहीं टेंडर भरने की अंतिम तारीख तक एमडी की राशि जमा की जाती है लेकिन एस के इंटरप्राइजेज द्वारा आज दिनांक तक भी एमडी की राशि जमा नहीं की गई किंतु वित्तीय मूल्यांकन में निविदाकार द्वारा पुरानी निविदा में जमा की गई ईएमडी राशि के रूप में स्वीकार कर लिया गया है जिसके संबंध में प्रबंध संचालक द्वारा किसी भी तरह का अनुमोदन नहीं लिया गया है जो कि निविदा के नियम के विरुद्ध है। साथ ही ऐसी जानकारी भी मिली है कि इस निविदा के अंदर जो वाहन मांगी गई है उसके अंतर्गत टाटा 207/टाटा जेमोन/ पिकअप या समतुल्य गाड़ी व टाइप 2 के अनुसार टाटा 407/ आईसर/स्वराज माजदा अथवा समतुल्य गाड़ी निविदाकार के पास होनी चाहिए लेकिन निविदा में शामिल हुए प्रतिभागी सफल निविदाकार द्वारा जमा किए गए दस्तावेज में प्रदाय वाहन निविदा में चाही गई टाइप 1 एवं टाइप टू के अनुसार नहीं है। और ना ही निविदाकार के पास समस्त टाइप ए एवं टाइप टू के वाहन भी नहीं है।उनके द्वारा जमा किए गए वाहनों के दस्तावेज में केवल 15 वाहन के दस्तावेज निविदा समय के भीतर अपलोड किया गया था जबकि एक वाहन के दस्तावेज समय पर उनके द्वारा अपलोड नहीं किया गया। दिनांक 5 मार्च 2021 को प्राप्त आदेश के अनुसार उनके द्वारा केंद्र शासन के किसी आदेश का हवाला देते हुए बताया गया है कि अप्राप्त दस्तावेज को दिनांक 31 दिसंबर 2020 तक शासन द्वारा वैध कर दिया गया है। निविदा में 16 वाहन के दस्तावेजों की जानकारी मांगी गई थी जिसमें गणपति इंडस्ट्रीज के द्वारा 18 वाहन के दस्तावेज जमा किए गए हैं जबकि उक्त फर्म को दो वाहन के दस्तावेज पूर्ण नहीं है कह कर अपात्र कर दिया गया। जबकि निविदाकार एस के इंटरप्राइजेज के द्वारा पहले तो समस्त टाइप 1 एवं टाइप 2 वाहन के दस्तावेज जमा नहीं किए गए एवं जिन गाडिय़ों के दस्तावेज उनके द्वारा जमा किए गए हैं उनमें से तीन वाहन 3 साल पुराने हैं जो कि निविदा समिति द्वारा नजरअंदाज किया गया है एवं उसी आधार पर मेसर्स गणपति इंडस्ट्रीज को अपात्र करार दे दिया गया।

जीएसटी भी फर्म के नाम पर नहीं

वही निविदा में जीएसटी रजिस्ट्रेशन की ओरिजिनल सर्टिफिकेट जो ऑनलाइन जीएसटी की साइट से निकाला जा सकता है उसके मांग पर भी एस के इंटरप्राइजेज द्वारा जीएसटी के पूरे सर्टिफिकेट जमा नहीं किए गए हैं और जो अनुभव प्रमाण पत्र एस के इंटरप्राइजेज के नाम से जमा किया गया है वह फर्म के नाम पर नहीं है बल्कि व्यक्ति शशि उपाध्याय के नाम पर है। इसके बावजूद पत्र घोषित किया जाना संदेह के घेरे में है।

इन सबको देखते हुए इस बात से इंकार नहीं जा सकता कि निविदा मूल्यांकन में भारी गड़बड़ी हुई है या फिर यह भी हो सकता है कि जल्दबाजी में इस ओर गहराई से निरीक्षण नहीं किया गया। जिस तरह जिन बातों को लेकर गणपति इंटरप्राइजेज को अपात्र करार दिया गया उनसे कहीं ज्यादा अनियमितताएं एस के इंटरप्राइजेज में देखने को मिली उसके बावजूद भी इन्हें पात्र की श्रेणी में चयनित किया गया है। ऐसे मे इन अनियमितताओं को देखते हुए सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक को हस्तक्षेप करते हुए निविदा का पुन: मूल्यांकन हेतु एक नवीन समिति गठित करना चाहिए ताकि किसी के साथ भी अन्याय ना हो एवं शासन को भी राजस्व की क्षति ना हो। इस संबध में सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक से चर्चा करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।

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