Chhattisgarh : शिक्षिका को हाईकोर्ट से फटकार, प्रताड़ना का मामला
बिलासपुर bilaspur news। स्कूलों में शिक्षा या अनुशासन बनाने के नाम पर बच्चों के साथ मारपीट या प्रताड़ना को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट chhattisgarh high court ने अहम टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने कहा है कि बच्चे पर शारीरिक दंड लगाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत उसके जीवन के अधिकार के अनुरूप नहीं है। संवैधानिक अधिकार बच्चे को उपलब्ध हैं और उसे सिर्फ इसलिए इनसे वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह छोटा है। छोटा होना उसे वयस्क से कमतर नहीं बनाता। शारीरिक दंड बच्चे की गरिमा के अनुरूप नहीं है।
chhattisgarh news दरअसल, अंबिकापुर के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल Carmel Convent School में नियमित शिक्षिका के पद पर कार्यरत सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस के खिलाफ अंबिकापुर के मणिपुर थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई थी। इसमें 6वीं की छात्रा को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। पुलिस ने शिकायत पर आईपीसी की धारा 305 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। विवेचना के बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट पेश की है। आरोपी शिक्षिका ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें खुद के खिलाफ प्रस्तुत चार्जशीट को निरस्त करने की मांग करते हुए बताया गया कि मृतका 6वीं की छात्रा थी। वह केजी-2 से ही स्कूल में पढ़ रही थी। chhattisgarh
छात्रा या उसके परिजन ने कभी भी दुर्व्यवहार या उत्पीड़न की शिकायत स्कूल प्रबंधन से नहीं की थी। वह चौथी में पढ़ाती है।
उसे 5वीं और 6वीं में नहीं पढ़ाती थी। वह मृतिका को नहीं जानती थी। मामले में हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिका खारिज कर दी।
हिंसा से बच्चे पर असर - सीजे सिन्हा की बेंच ने कहा है कि शारीरिक दंड से बच्चे के शरीर के साथ उसके दिमाग पर भी असर करता है। यह उसकी गरिमा को छीन लेता है। हिंसा का कोई भी कार्य जो बच्चे को आघात पहुंचाता है, आतंकित करता है या उसकी क्षमताओं पर विपरीत असर डालता है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। सरकार का यह दायित्व है कि वह बच्चे को सभी प्रकार की शारीरिक या मानसिक हिंसा, चोट, दुर्व्यवहार, यातना, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार, यौन शोषण से सुरक्षित करने विधायी, प्रशासनिक, सामाजिक और शैक्षिक उपाय करे।