छत्तीसगढ़

वन्य प्राणियों का कब्रगाह बन गया है छत्तीसगढ़!

Admin2
8 Oct 2020 7:03 AM GMT
वन्य प्राणियों का कब्रगाह बन गया है छत्तीसगढ़!
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हर रोज शिकार हो रहे या आपदा-करंट से मारे जा रहे, सरकार की मंशा अनुरूप कार्य नहीं

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के वन विकास और वनवासियों के हित के लिए लगातार प्रयत्नशील है


वन विभाग राज्य सरकार के जनहितैषी योजनाओं पर अपनी कार्यप्रणाली से लगा रहा पलीता


वन विभाग लगातार मुख्यमंत्री की तमाम योजनाओं को दरकिनार कर भ्रष्टचार और मनमानी में लिप्त है


विभाग कार्ययोजना बनाने में मस्त, वन्य प्राणी शिकारियों से त्रस्त, कर्मचारियों का हौसला पस्त .


ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। प्रदेश के जंगल में अवैध शिकार की ऐसी आग लगी है कि वन्यप्राणियों को जान बचाने का भी मौका नहीं मिल रहा है। विभागीय अधिकारी कार्ययोजना पर कार्ययोजना बना रहे है, लेकिन पिछले 10 सालों में वन्य प्राणियों का जीवन सुरक्षित नहीं हो सका। लगातार शिकारी और तस्करों के जंगल में अनाधिकृत हस्तक्षेप वन्य जीवों के लिए मौत का फरमान बन चुका है। वन ग्रामों में आबादी होने से वहां शिकारियों को आसानी से शिकार का मौका मिल जाता है और मौका मिलते ही टपका देते है। अभी हाल ही में वन विभाग ने एक कार्ययोजना बनाई है जिसमें काले हिरण छोडऩे की योजना है साथ ही वनग्रामों को हटाने की कोई कार्य योजना नहीं जो अवैध शिकार को बढ़ावा भी दे रहे है। ऐसे में वन्य विभाग के संरक्षक अधिकारी पीवी नरसिंहा राव से जनता से रिश्ता ने चर्चा की तो नरसिंहाराव ने कहा जब वन ग्राम हटा लेंगे और और काले हिरण छोड़ देंगे उसके बाद मीडिया को जानकारी देंगे। जंगल वन्य जीवों की शरण स्थली न होकर कब्रगाह बन चुका है। लगातार शिकारियों का हौसला बढ़ते जा रहा है।

प्रदेश में पिछले एक साल में काफी तादात में वन्यजीवों का शिकार हुआ है, जिसमें तेंदुआ, पेंगोलिन, चीतल, सांभर, भालू, हाथी आदि वन्यजीव शामिल हैं। अपराधियों द्वारा वन्यजीवों के शिकार या फिर तस्करी की घटना को अंजाम देने के बाद वन विभाग अपराध दर्ज कर उसे भूल जाता है। वन विभाग बड़े-बड़े मामले में अभी तक कोर्ट में चालान पेश नहीं कर पाया है। अधिकारियों की सांठगांठ की वजह से मामला रफा-दफा हो जाता है। इसका जीता-जागता उदाहरण है कि पिछले तीन साल में तकरीबन दर्जन भर से अधिक बड़े मामले हैं, जिनका अभी तक विभाग चालान पेश नहीं कर पाया है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वनभैसा को राजकीय पशु और बस्तर के पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी का दर्जा दिया गया। तब वन विभाग वालों को लगा कि काफी तादाद में छत्तीसगढ़ में वनभैंस होगे। लेकिन वन विभाग का यह सोच उस वक्त काफूर हो गया तब वनभैसों की गिनती की गई, ऊंगलियों में गिनने लायक संख्या वनभैसा की पाई गई। वनभैसा के लिए उदंती-सीता नदी टाइगर रिसर्व फारेस्ट में अधिक संख्या में है ऐसा वन विभाग का अनुमान था लेकिन गणना में केवल 6 नर एवं एक मादा वनभैसा मिला। वन विभाग का मानो पैरों तले जमीन ही खिसक गया। इस बीच वन विभाग वन भैसों की संख्या बढ़ाने एवं नस्ल बचाने काफी प्रयास किया और काफी हद तक सफल भी हुए। वनभैसों की संख्या जरूर बढ़ी लेकिन नस्ल बिगडऩे का खतरा पैदा हो गया। लगभग डेढ़ करोड़ खर्च कर हरियाणा में वनभैस का क्लोन पैदा करवाया गया लेकिन नस्ल बिगडऩे के डर से इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और असम से नर और मादा वनभैंस को लाया गया। और उससे नस्ल बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। अभी पिछले दिनोंखबर आई थी कि बारनवापारा जंगल में काले हिरण छोड़े जाएंगे। काले हिरन विलुप्त होने की कगार पर है। हालांकि जंगल सफारी से 50 काले हिरणों को जंगल के अंदर बाड़े में छोड़ा जाएगा। जो कि इनके लिए एक प्रकार से पूरा जंगल ही है चूंकि ये इसके पहले जंगल सफारी के छोटे से इलाके में रह रहे थे अब इन्हे जनता के पहुंच से दूर घने जंगल में लगभग 100 हेक्टेयर के बाड़े में रखा गया है। जिससे ये पूरी तरह से जंगल में रहने का एहसास करेंगे। फिर देर सबेर इन्हे जंगल में छोड़ दिया जायेगा। जहां वे स्वछंद विचरण कर पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र बनेंगे। पर सवाल ये उठता है कि जब तक अवैध शिकारियों पर शिकंजा नहीं कसा जाएगा सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा और हर गांवों में काले हिरण के लिए कई सलमानखान पैदा हो जाएंगे। लाख टके का सवाल है वन्यप्राणियों के अवैध शिकार को कैसे रोका जाए। वनग्रामों को जब तक हटाया नहीं जायेगा तब तक शिकार पर प्रतिबंध लगना बेमानी होगी। अधिकारी कमरे में बैठकर सिर्फ कार्य योजना बनाते है। जब तक उस कार्य योजना को धरातल पर उतरा नहीं जायेगा तब तक अवैध शिकार नहीं रुक सकता। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने एक दो वनग्रामों को हटाया भी था। लेकिन वर्तमान में यह योजना हवा-हवाई हो गई है। एक भी वनग्रामों को हटाने का निर्णय नहीं लिया गया। जब तक वनग्राम नहीं हटेंगे तब तक अवैध शिकार पर प्रतिबंध नहीं लग सकता। और अधिकारियों की हर कार्य योजना सफ़ेद हाथी साबित होगी। अधिकारियों को जमीनी स्तर पर उतरना होगा तब जाकर अवैध शिकार रोका जा सकता है। अभी वन विभाग सिर्फ कार्य योजना बनाने में मस्त है और कर्मचारियों का हौसला पस्त है। वन्य प्राणियॉं के अवैध शिकार पर कठोर कानून बनना चाहिए जो राजस्थान में देखा जा सकता है। अधिकारियों के रवैये से लगता है हिरण भी एक दिन विलुप्त प्राणी की श्रेणी में ना आ जाए। जिस प्रकार अधिकारियों की लापरवाही से वर्ष 2020 में ;लगभग 4 दर्जन हाथी मारे गए और इनकी मौत को रोकने सिर्फ कागजी कार्य योजना बना पाए है। वनमंत्री मो. अकबर के कड़े रुख के बाद अधिकारी जागे थे लेकिन बाद में फिर सो गए।


25 मामलों में नहीं हुआ चालान पेश

वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि वन्यप्राणी अपराध के मामले में दो साल के अंदर चालान पेश करना रहता है, लेकिन अधिकारी नहीं कर पा रहे हैं। 25 मामलों में चालान पेश नहीं हो पाया है। इसमें धरमजयगढ़ स्थित दो हाथियों की मौत के मामले में तथा रायपुर स्थित गुप्ता की दो अलग-अलग दुकान से तकरीबन दस करोड़ रुपये कीमती वन्यजीवों के अंग बरामद किए गए थे। इसमें में हैदराबाद की फारेंसिंक लैब में जांच भी हो गई है। इसमें एक दुकान में मिले वन्यजीवों के अंग सही पाए गए हैं। रिपोर्ट आने के बाद भी वन विभाग कार्रवाई नहीं कर पा रहा है और न ही इस मामले में अभी तक चलान पेश हो पाया है।

अभी तक नहीं मिला सुराग

सितंबर, 2019 में मैनपुर के जंगल में एक ग्रामीण से 50 हजार रुपये में तेंदुए के दोनों बच्चों को खरीदकर उसे बेचने कार से रायपुर ला रहे थे। वाहन चेकिंग में फंसने के डर से उन्होंने बीच रास्ते में कार छोड़कर एक्टिवा क्रमांक सीजी 04 एमएम 1645 के सामने तेंदुए के बच्चों को झोले और पिंजरे में रखकर ला रहे थे। सूचना पर पुलिस ने पकड़कर जांच की तो एक्टिवा के सामने रखे दो झोले और पिंजरे में बंद तेंदुए के दो बच्चे मिले। पुलिस ने मौके पर ही तस्कर मोहम्मद साबिर और राकेश निषाद को गिरफ्तार किया था, लेकिन मुख्य आरोपित अभी तक फरार हैं।

वनग्रामों को हटाने और काले हिरण छोड़े जाने के बाद मीडिया को जानकारी देंगे।

-पीवी नरसिंहाराव (पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ)


वन्य जीवों की सुरक्षा पर विभाग को कड़े फैसले लेने होंगे, तभी शिकारियों पर अंकुश लगेगा और वन्य जीव सुरक्षित रह सकेंगे।

-मो. फिरोज, वन्य जीव प्रेमी एवं समाज सेवी

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