छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: रखरखाव के अभाव में खंडहर न हो जाए भोरमदेव मंदिर

Admin2
16 Dec 2020 5:59 AM GMT
छत्तीसगढ़: रखरखाव के अभाव में खंडहर न हो जाए भोरमदेव मंदिर
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संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग संरक्षण को लेकर उदासीन

सरकार को उद्योगों की मदद से ऐतिहासिक धरोहरों और पर्यटन स्थलों को संरक्षति कर संवारना चाहिए

रामकुमार सिंह परमार

रायपुर। भोरमदेव मंदिर, कवर्धा कबीरधाम जि़ले के ग्राम चौरागांव में स्थापित छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहे जाने वाले ऐतिहासिक एवं धार्मिक धरोहर भोरमदेव मंदिर रखरखाव के अभाव में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। 7 से 11 वीं शताब्दी में बने इस पौराणिक मंंदिर का बुरा हाल है। सहीं ढंग से देखरेख नहीं होने के कारण मंदिर की हालत जर्जर होती जा रही है, वहीं साफ-सफाई में ध्यान नहीं होने के कारण कलात्मक पत्थर से निर्मित दीवारों में काई जम गए हैं और इन दीवारों में छोटे-छोटे झाड़ भी उग आए हैं। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है। मंदिर के मुख्य द्वार की भी हालत काफी जर्जर इसके चलते इस गेट को टीना टिकाकर बंद कर दिया गया है। यही हाल रहा तो इस मंदिर को खंडहर में तब्दील होने से कोई नहीं रोक सकता। वैसे तो भोरमदेव महोत्सव 1995 से प्रारंभ है। लेकिन इस मंदिर के नाम पर सही आयोजन सन 2005 से 2015 पिछले 10 सालों तक करोंड़ों खर्च कर हर साल 3 दिवसीय भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया जाता रहा। आयोजन में चर्चित गायकों एवं कलाकारों को आमंत्रित किया जाता रहा। लेकिन मंदिर के रखरखाव पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इस बीच इस मंदिर से कई छोटी-छोटी मूर्तिंया चोरी हो चुकी हैं। गौरतलब है कि काफी वर्षों पहले इस भोरमदेव मंदिर से ऐतिहासिक मूर्ति चोरी होने पर बवाल मच गया था तथा यह काफी समय तक पुरातत्व विभाग में चर्चा का विषय रहा।

इस मंदिर को लेकर दुख तो इस बात का है कि छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहे जाने वाले ऐतिहासिक एवं धार्मिक भोरमदेव मंदिर की तुलना दक्षिण एवं अन्य राज्यों की ऐतिहासिक मंदिर से तुलना की जाए तो यह मंदिर कहीं नहीं ठहरता। देश के दूसरे राज्यों की मंदिरों में लगातार देखभाल एवं साफ-सफाई के कारण इन मंदिरों की चमक लगातार बनी हुई है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आंध्र प्रदेश स्थित तिरूपति बालाजी मंदिर है। इसके अलावा भी देश के अन्य मंदिर भी इसके उदाहरण हैं।

कबीरधाम जि़ले में कवर्धा से 18 कि.मी. तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में स्थापित भोरमदेव मंदिर करीबन एक हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर को लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था।इस मंदिर को देखने से खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है। इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख नितांत आवश्यक है। पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह एवं वर्तमान में क्षेत्रीय विधायक एवं राज्य में कई विभागों के मंत्री मोहम्मद अकबर के रहते हुए इस मंदिर का सही ढंग से रखरखाव नहीं हो पाना समझ से परे है।

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