छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: 7 वर्षीय बच्ची ने इलाज के दौरान तोड़ा दम, परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लगाया गंभीर आरोप

Shantanu Roy
30 Sep 2021 3:05 AM GMT
छत्तीसगढ़: 7 वर्षीय बच्ची ने इलाज के दौरान तोड़ा दम, परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लगाया गंभीर आरोप
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मासूम मृतिका

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अंतागढ़। स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल मे कक्षा चौथी में अध्ययनरत 7 वर्षीयफाल्गुनी धनेलिया पिता देवनाथ धनेलिया की अचानक हुई मृत्यु से सभी स्तब्ध हैं, वही स्कूल प्रशासन ने मृतक बच्ची के लिए शोक सभा का आयोजन कर बच्चों को छुट्टी दे दी। फाल्गुनी के घर वालों से मिली जानकारी के अनुसार फाल्गुनी बिल्कुल स्वस्थ थी, किंतु पिछले दो दिनों से कुछ अलसाई सी लग रही थी, और स्कूल जाने से भी मना कर दिया था। दो दिनों से बुखार का एहसास होने पर स्वजनों ने अन्तागढ़ के एक प्राइवेट पैथालाजी रूखमणी पैथालाजी लैब मे फाल्गुनी का ब्लड सैंपल दिया, जिसकी रिपोर्ट में बच्ची को टाइफाइड होना बताया गया व जिसके उपचार के लिए स्वजनों ने न्यू बसस्टैंड स्थित एक निजी चिकित्सक से फाल्गुनी के लिए दवा लिया।

रात में दवा लेने के बाद फाल्गुनी सो गई किन्तु जब उसे यूरिन आई और उसके परिजन उसे यूरिन के लिए घर के बाहर ले गए तब फाल्गुनी बेहोशी की हालत में आ गई। स्वजनों द्वारा फाल्गुनी को तुरंत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डाक्टरों की लाख कोशिश के बाद भी फाल्गुनी को नहीं बचाया जा सका। जिला चिकित्सा अधिकारी व कलेक्टर के निर्देश पर कई बार इन झोला छाप डाक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी किंतु कुकुरमुत्तों की तरह निकलने वाले ये झोला छाप डाक्टर वापस सेटिंग कर अपनी जगह में उग जाते हैं।

स्कूली बच्ची की असामयिक मौत से जिले की स्वास्थ्य सेवा पर अनेक प्रश्न उठ रहे हैं, जब इन पैथालाजी लैब एवं निजी चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही की जाती है तो दोबारा इनके द्वारा वही कार्य कैसे संचालित क्या जाता है? क्या इन झोला छाप डाक्टर के पास कोई वैध दस्तावेज हैं, जो कार्यवाही के कुछ ही दिनों में ये डाक्टर और पैथालाजी संचालक प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। ब्लाक मेडिकल आफिसर भेषज रामटेके ने बताया कि बच्ची को जब स्वास्थ्य केंद्र लाया गया तब डा. गोटा ने इलाज शुरू किया, किन्तु वो बच्ची को बचाने में सफल नहीं हो सके, यदि प्रारम्भिक बुखार में ही बच्ची को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया होता तो सम्भवतः बच्ची की जान बचाई जा सकती थी।

निजी पैथालाजी लैब के संचालक निमेष साहू ने बताया कि बच्ची के स्वजनों द्वारा ही बच्ची को जांच के लिए यहां लाया गया था, जिसमें मलेरिया और टायफाइड का टेस्ट किया गया, किन्तु सिर्फ टायफाइड ही ट्रेस हो पाया। किस डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर उनके द्वारा मरीज का ब्लड सैम्पल लिया गया? इस पर लैब संचालक निमेष साहू ने बताया कि फाल्गुनी के घर वाले स्वतः ही उसे जांच के लिए लेकर आए थे व बच्ची के परिजनों के कहने पर ही मैने जांच की। मृतक बच्ची फाल्गुनी को न्यू बस स्टैंड स्थित जिस निजी चिकित्सालय में ले जाया गया, उसके संचालक राजेश कौशल ने बताया कि बच्ची के परिजन बच्ची को लेकर आये थे मेरे द्वारा टायफाइड के लिए प्राथमिक उपचार के के लिए सिट्रीजीन, आफलाक्सिन 200 एमजी साथ ही पैरासिटामाल 500 एमजी दिन में दो बार खाने हेतु दिया था। सुबह जानकारी मिली कि बच्ची अब नहीं रही यह बहुत दुःखद है।

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