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रायपुर न्यूज़
रायपुर: लोगों के सिर पर छत देने वाले छत्तीसगढ़ के हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। आलम ये है कि अपने कर्मचारियों को वेतन, भत्ते देने की चुनौती भी खड़ी हो गई है। हाउसिंग बोर्ड जहां करीब एक हजार करोड़ की प्रॉपर्टी नहीं बिक पाने के चलते वित्तीय संकट से जूझ रहा हैं, तो वहीं आरडीए सिर्फ एक प्रोजेक्ट के चलते साढ़े सात सौ करोड़ के कर्ज में धंस गया है। मौजूदा पदाधिकारी इसके लिए सीधे सीधे बीजेपी काल के लोगों को दोषी ठहरा रहे हैं।
सबसे किफायती दाम पर घर बनाकर लोगों को देने वाला छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वजह है, करीब एक हजार करोड़ रुपये की अनसोल्ड प्रॉपर्टी जो अब एक बोझ की तरह चुनौती बन कर खड़ी है। ये वो प्रॉपर्टी हैं जो पिछले 7 से 10 सालों में भी बिक नहीं पाई है। बोर्ड के सैकड़ों करोड़ रुपये तो फंसे ही हैं, प्रोजेक्ट के मेंटेनेंस पर भी लाखों, करोड़ों खर्च करने पड़ रहे हैं. सवाल है, इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? नियम तो ये है कि हाउसिंग बोर्ड उतने ही मकान का निर्माण करेगा, जितने मकानों या दुकानों की प्री बुकिंग हुई हो, लेकिन इस नियम को दरकिनार कर बिना प्री बुकिंग डिमांड और बगैर किसी सर्वे के हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों ने हजारों मकान और फ्लैट्स तान दिए। बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष सीधे सीधे भाजपा काल के पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा रहे हैं।
यही हाल RDA का भी बताया जाता है। मौजूदा पदाधिकारी बताते हैं कि कमल विहार प्रोजेक्ट के पहले प्राधिकरण करीब 400 करोड़ के मुनाफे में था, लेकिन केवल एक प्रोजेक्ट ने आरडीए को करीब साढ़े 7 सौ करोड़ का कर्जदार बना दिया, जिसका ब्याज चुकाना भी मुश्किल हो गया है। हालांकि भाजपा नेता इस आरोप को मौजूदा प्रबंधन की नाकामी से जोड़कर बता रहे हैं
आरोप-प्रत्यारोप जो भी हो, लेकिन सच्चाई यही है कि लोगों के सिर पर छत देने वाली दोनों संस्थाएं खुद बेसहारा सी हालत में हैं और इसके पीछे कहीं ना कहीं वित्तीय कुप्रबंधन ही जिम्मेदार कहा जाएगा।
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