कैट ने पीयूष गोयल को पत्र भेजकर ई-कॉमर्स नीति एवं नियमों को जल्द लागू करने की मांग की
रायपुर। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, एवं कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल ने बताया कि कन्फेडेरशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज वाणिज्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री श्री पीयूष गोयल को एक पत्र भेजकर भारत में ई-कॉमर्स व्यापार को सुव्यवस्थित करने से संबंधित तीन सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत पहलुओं जिनमें उपभोक्ता क़ानून के अंतर्गत ई-कॉमर्स नियम, ई-कॉमर्स नीति एवं ई-कॉमर्स में एफडीआई नीति पर एक नए प्रेस नोट को लागू करने की ओर उनका ध्यान दिलाते हुए कहा की जिस प्रकार से विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियाँ अपनी मनमानी कर रही हैं, उस पर लगाम लगाने के लिए ई-कॉमर्स नीति एवं नियमों को तुरंत लागू करना आवश्यक हो गया है।
कैट के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने बताया की अनेक व्यापारिक मुद्दों पर आगामी 4 अगस्त को कैट दिल्ली में एक बेहद महत्वपूर्ण बैठक आयोजित कर रहा है जिसमें कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया विशेष रूप से नागपुर से आ रहे हैं। देश भर में व्यापारी विदेशी ई-कॉमर्स के हाथों पहले ही बहुत उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। व्यापारिक समुदाय कई वैश्विक ई-कॉमर्स दिग्गजों द्वारा कानूनों और नियमों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन से बुरी तरह प्रताड़ित हो रहा है।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की यह अत्यंत खेद की बात है कि दो साल से अधिक समय से विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई बार श्री पीयूष गोयल की सख्त और स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद ई-कॉमर्स कंपनियां नियमों एवं कानूनों का खुला उल्लंघन कर रही है जिसने एक तरह से देश के ई-कॉमर्स व्यापार में “माई वे या हाईवे“ जैसी स्थिति पैदा कर दी है।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की ई-कॉमर्स के माध्यम से कोई भी एफडीआई भारत में प्रवेश नहीं कर रहा है, बल्कि एफडीआई की आड़ में आने वाले पैसे का इस्तेमाल ई-कॉमर्स कंपनियां कैश बर्निंग या उनके द्वारा किये गए भारी नुकसान की भरपाई करने के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा की भारत में ई-कॉमर्स लोकतंत्र से बिल्कुल भी समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
पारवानी एवं दोशी ने कहा कि कैट का आग्रह है की ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे में सख्त प्रावधान को ई-कॉमर्स नियमों में या ई-कॉमर्स नीति में या एफडीआई नीति में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। भारत में समान स्तर का ई-कॉमर्स व्यवसाय प्रदान करने के लिए ई-कॉमर्स को एक समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
पारवानी एवं दोशी ने कहा कि अब यह स्पष्ट है कि कई विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स कंपनियां अपने व्यवसाय प्रथाओं में लागत से भी कम मूल्य पर माल बेचना , गहरी छूट, हानि वित्तपोषण, एक्सक्लूसिविटी ,इन्वेंट्री का मालिक होना और तरजीही विक्रेता प्रणाली को खुले रूप से अपनाये हुए हैं। कैट का स्पष्ट मत है कि भारी छूट और फ्लैश बिक्री पर रोक लगाने वाले प्रावधान, ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को उनके प्लेटफॉर्म पर बेचे जाने वाले सामान की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार बनाना, ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा मजबूत शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना, बाजार-विकृतियों को रोकना, माल और सेवाओं की गलत बिक्री, उनके प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत सभी विक्रेताओं के साथ समान व्यवहार और वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री के लिए विक्रेताओं का चयन करने की स्वतंत्रता वाली गतिविधियों पर रोक लगाने हेतु नियमों एवं नीति में शामिल करना बेहद जरूरी है अन्यथा फिर किसी भी नियम एवं नीति का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की कैट व्यापारियों के लिए किसी विशेष उपकार के लिए आग्रह नहीं कर रहा हैं बल्कि देश के नियमों एवं कानूनों का अवश्य पालन किये जाने हेतु जोर दे रहा है जिससे देश के घरेलू व्यापारियों को “डिजिटल इंडिया“ के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के अनुसार ई-कॉमर्स को बड़े पैमाने पर अपनाने की सुविधा मिले। यदि ई-कॉमर्स को समान स्तर का व्यापार करने का मौका नहीं दिया जाता है तो देश के व्यापारियों को ई-कॉमर्स कंपनियों के जोड़-तोड़ और अनैतिक व्यवसाय प्रथाओं के कारण चरणबद्ध तरीके से अपने व्यवसाय को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। कैट को यकीन है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की ऐसी मंशा नहीं होगी।