पीडब्ल्यूडी एसडीओ की दबंगई, सरकारी काम को निजी तरीके से दे रहे अंजाम
- एक ही जगह में बरसों से जमे चहेते उप अभियंताओं का स्टीमेट तुरंत हो रहा मंजूर
- उच्च अधिकारियों का करीबी बताकर विभाग में जमाते है धौंस
रायपुर (जसेरि)। लोक निर्माण विभाग में हमेशा से उल्टी गंगा बह रही है। इसके भागीरथी अपने चहेतों को उऋण करने के लिए अनाप-शनाप स्टीमेट को भी धड़ाधड़ मंजूर कर उपकृत करने का खेल चल रहे है। निविदा के खेेल में वैसे भी पीडब्ल्यूडी का कोई मुकाबला नहीं है। मरम्मत के नाम पर सरकारी धन को लुटाने वाला यह विभाग अधिकारियों की दबंगई और मनमानी का शिकार रहा है। इस विभाग के मंत्री से लेकर प्रमुख सचिव तक यह खबर ही नहीं लगता कि कितना गोलमाल हो चुका है। सड़क और बंगलों के मरम्मत को लेकर निविदा तो प्रकाशित करते है, लेकिन निविदा में शामिल चहेते ठेकेदारों और उपअभियंताओं का सिंडिकेट बना हुआ है जो अपने कमीशन कोड करके निविदा की रेट कम बताकर बड़े साहब के पास स्टीमेट प्रस्तुत करवाते है और बड़े साहब उपअभियंता की मार्किंग के हिसाब से स्टीमेट को मंजूरी देकर मालामाल हो रहे है। भले ही विभाग कंगाल हो जाए उन्हें कोई परवाह नहीं बस भ्रष्टाचार की गंगा बहती रहे।
लोक निर्माण विभाग द्वारा अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए निविदा फार्म जारी किया जाता है जो वर्षो से चल रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पीडब्लूडी कुरुद के एसडीओ जो कि पिछले कई सालों से एक ही जगह पदस्थ हैं ने नया कारनामा कर दिखाया, उन्होंने अब ठेकेदार को नहीं बल्कि अपने चहेते उप अभियंताओं के क्षेत्र में अधिकतर स्टीमेट बनाकर उन्हें उपकृत करने का मामला सामने आया है। शासन द्वारा दिए गए बजट में से उप अभियंताओं की जिम्मेदारी होती है कि अपने प्रभार क्षेत्र में अधिक से अधिक जनोपयोगी कार्य जैसे सड़क मरम्मत, भवन निर्माण या अन्य मरम्मत कार्य की स्टीमेट बनाकर एसडीओ को भेजे, जिसे एसडीओ द्वारा कार्यपालन अभियंता को भेजा जाता है फिर स्टीमेट का अमाउंट देखकर सक्षम अधिकारी द्वारा फाइनल किया जाता है। इसमें भी अभी ऐसा हो रहा है कि जो अपने हैं उनका काम तुरंत हो जाता है। जिन उप अभियंताओं के क्षेत्र में कम स्टीमेट बनते हैं उन को फिसड्डी करार दिया जाता है। और जिनके क्षेत्र में अधिक से अधिक स्टीमेट पास होता है वे शासन से उपकृत भी होते है, उन्हें पुरस्कार भी मिलता है। स्टीमेट को ऊपर तक भेजने का काम सम्बंधित एसडीओ का होता है। यह भी देखा जा रहा है कि पात्र बेरोजगारों को टेंडर देने हेतु आवेदन शुल्क लेने के बाद भी न तो फार्म दिया जाता है और न ही मनी रसीद दी जाती है। इस प्रकार से भी घोटाले किये जाते हैं। ऐसा करने से शासन को लाखों रुपये का नुकसान होता है। शासन के आदेशानुसार बेरोजगार इंजीनियर और डिप्लोमाधारी इंजीनियरों को काम दिया जाना है लेकिन विभाग के अधिकारियों की मनमानी से बेरोजगारों के साथ छल किया जा रहा है। तय समय पर आवेदन के लिए शुल्क तो लिया जाता है जब आवेदन देने की बारी आती है तो अधिकारियों द्वारा इन बेरोजगार इंजीनियरों के साथ सौतेला व्यव्हार किया जाता है। अधिकारियो द्वारा बेरोजगारों को यह कहते हुए आवेदन नहीं दिया जाता कि अंतिम तिथि निकल गई है या अन्य कारण बता दिया जाता है। जबकि उनके चेहेतों को रेवड़ी की तरह काम बांट परोस दिया जाता है। ठेकेदारों द्वारा टेंडर आवेदन तय तिथि के अनुसार ही जमा किया जाता है लेकिन लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों ने दूसरे दिन मनी रसीद देने की बात कहते हुए टाल दिया जाता है इस पूरे मामले में लोक निर्माण विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे है। निविदा फार्म जमा नहीं होने से शासन को ही लाखों रुपये का नुकसान होगा। गौरतलब है कि लोक निर्माण विभाग की ओर से भवन पोताई के साथ ही सड़क निर्माण और मरम्मत के लगभग करोड़ो रूपये के टेंडर पूरे प्रदेश में जारी किया जाता है।