छत्तीसगढ़

ईडब्ल्यूएस की छूट डकार रहे बिल्डर...

Nilmani Pal
23 May 2022 5:46 AM GMT
ईडब्ल्यूएस की छूट डकार रहे बिल्डर...
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  1. सरकार की योजनाओं को लगा रहे पलीता, करोड़ों के राजस्व की पहुंचाई क्षति, निगम अधिकारी से सांठगांठ
  2. गरीबों की आरक्षित जमीन ईडब्ल्यूएस मकान बनाने के बजाय निगम में बंधक रखने का खेल
  3. ऐसी जमीन की तलाश करते है जो सरकार ने आरक्षित कर रखा हो उसे कब्जाने करते है धनबल और बाहुबल का उपयोग
  4. किसानी जमीन को लालच देकर पावर ऑफ अटर्नी लेकर करते है बेजा इस्तेमाल

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। बिल्डरों के सारे प्रोजेक्ट में गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस मकान बनाने के लिए जमीन आरक्षित करना अनिवार्य है। यदि आरक्षित नहीं रखा है तो निगम में उसके कीमत मूल्य का डिपाजिट करना होता है। इसका तोड़ अधिकारी और बिल्डर ने निकाल कर सरकार को चूना लगाने के खेल खेल रहे है। निगम में बंधक ईडब्ल्यूएस की जमीन को बिल्डर अधिकारियों से साठगांठ कर उस जमीन पर प्रोजेक्ट बेच देते है, जिससे गरीब मकान से वंचित हो जाते है। यह मामला निगम के अधिकारियों और बिल्डर को ही मालूम है, कि बिना ईडब्ल्यूएस बंधक के लाइसेंस नहीं मिल सकता। इसलिए पैसा जमा करने के बजाय बिल्डर जमीन को निगम में बंधक रखते है। गरीबों को मकान देने के लिए आरक्षित जमीन को बिल्डर बड़ी चतुराई से निगम में बंधक रखकर पैसा देने से बच जाते है बाद में उसे बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में शामिलकर बिल्डिंग बनाकर बेच देेता है। जिससे बेघर गरीब को मकान से वंचित होना पड़ता है। निगम अधिकारियों और बिल्डरों के प्रोजेक्ट में गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस मकान बनाकर देना अनिवार्य है, या जमीन के कीमत के बराबर निगम में पैसा जमा करना पड़ता है, इसका तोड़ बिल्डरों ने निकाल कर उस जमीन को निगम में बंधक रख देते है। अफसरशाही के चलते अधिकारी बदलते रहते है और मामला फाइलों में दबता चला जाता है। जिसके कारण सरकार को करोड़ों का राजस्व और गरीबों को मकान नहीं मिल पाता। ईडब्ल्यूएस जमीन को निगम और बिल्डरों कूटरचना कर अपने ब्रोशर में धोखाधड़ी करने के साथ सरकारी गार्डन की जमीन, गरीबों के लिए आरक्षित जमीन, घास जमीन, तालाब के आसपास की जमीन, कोटवारी जमीन, सड़क, स्कूल के लिए आरक्षित जमीन को अपने प्रोजेक्ट में शामिल कर बेचने का खेल शुरू कर दिया है। सबसे मजेदार बात यह है कि राजधानी के आउटर में किसानों की सड़क किनारे खेत जिसके आसपास सरकारी जमीन आरक्षित हो उसे जगह को चुनकर खरीदने के लिए दांवपेंच कर दबाव बनाते है। यदि किसान जमीन नहीं बेचता तो उसके खेत जाने के रास्ते की जमीन दूसरे किसान से खरीद कर उसका रास्ता बंद कर देते है। मजबूरन किसान को खेत बेचना पड़ता है।

हाल ही में रेरा ने सरोना स्थित प्रोजेक्ट पार्थिवी प्रोविंस के प्रमोटर्स के किलाप मकान में घटिया निर्माण को लेकर आदोश पारित किया है इसमें रेरा के प्रावधानों का उल्लंघन किए जाने के कारण प्रमोटर्स के विरूद्ध नियमानुसार कार्रवाई किए जाने के लिए रेरा के रजिस्ट्रार को निर्देशित किया है। प्राधिकरण ने एक अन्य प्रकरण में सुनवाई के दौरान यह पाया कि प्रमोटर्स व्दारा प्रोजेक्ट में मकानों का विक्रय करने के बावजूद भी भूखंडीय प्रोजेक्ट के रूप में रेरा में पंजीयन कराया है, जो अनुचित है और अधिनियम के प्रावदानों का उल्लंघन है। वहीं प्राधिकरण व्दारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट के अनुसार विवादित मकान की फ्लोरिंग में सेटलमेंट होने के कारण टाइल्स में दरारें है, कुछ कमरों की दीवारों में सीपेज की समस्या है, कई जगह दीवारों में दरारें है, मकान के ब्रोशर के अनुरूप सुविदाएं उपलब्ध नहीं कराई गई विवादित मकान के निर्माण में आधिपत्य फ्राप्त करने के लगभग दो वर्ष के भातर संरचनात्मक त्रुटियों व कार्य के कौशल संबंधी कमियां पाई गई ।

रियल स्टेट कारोबारियों का दबदबा: छुटभैय्ये नेताओं विभागीय अधिकारियों से सांठ-गांठ कर दबा रहे सरकारी जमीन पूरे राजधानी एवं आऊटर में बिल्डर और दलाल कर रहे हैं । राजधानी रायपुर और उससे लगे आस-पास के इलाकों में सरकारी खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग और हाउसिंग प्रोजेक्ट डेव्हल्प कर बिल्डर रियल स्टेट कारोबारी सरकार को बड़े राजस्व की हानि पहुंचा रहे हैं। अपनी राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर ये भू-माफिया करोड़ों का प्रोजेक्ट लांच कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं।

अभी हाल में एक बिल्डर और दलालों द्वारा स्कूल के पीछे की सरकारी जमीन को घेर कर अवैध प्लाटिंग किया जा रहा है। उपभोक्ता जब दलालों से जमीन खरीद कर मकान बनाना शुरू करते हैं तब निगम और जिला प्रशासन की नींद खुलती है तब तक आम नागरिक लुट चुका होता है। लोगों ने बताया कि बिल्डर और दलाल रसूखदार होने के वजह से लोग शिकायत करने से कतराते हैं उन लोगों ने कहा कि शासन-प्रशासन संज्ञान में लेकर कार्रवाई करें तो स्थिति साफ हो जाएगी।

सरकारी जमीन को निजी जमीन बताकर बिल्डरों एवं दलालों द्वारा भोले-भाले लोगों को सस्ते में बेचा जा रहा है। लोग जीवन भर की अपनी गाढ़ी कमाई इन बिल्डरों और दलालों के हवाले कर देते हैं और बाद में परेशान होते हैं। वैसे भी बिल्डरों द्वारा सरकारी जमीनों से लगे किसानों की कृषि जमीनों को औने-पौनेे दाम पर खरीद कर सरकारी जमीनों की पटवारियों व राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर कई बड़े-बड़े बिल्डर अपना धंधा चमका रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें बिल्डरों ने खरीदे हुए जमीन के बीच में आने वाली सरकारी जमीनों और सड़क व रास्ते के जमीनों को दबा कर अपने आलीशान प्रोजेक्ट तैयार किए। सरकारी जमीन के साथ कई निजी जमीनों को भी कूटरचना कर इन बिल्डरों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी की। शहर से लगे माना, नवा रायपुर, मुजगहन, डूंडा, बोरियाखुर्द, बोरियाकला, सरोना, चंगोराभाठा, डूमरतालाब, गोगांव, गोंदवारा, बिरगांव, भनपुरी, सिलतरा, खम्हारडीह, कचना आदि इलाके की खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग करने के सौ से अधिक शिकायतें रायपुर और बिरगांव नगर निगम तक पहुंची है जिसपर कार्रवाई भी हो रही है। अवैध प्लाटिंग के मामले में नगरीय निकायों ने कई छोटे-बड़े बिल्डरों और सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए हैं। हालांकि दूसरों की जमीन पर जबरिया कब्जा कर उसे प्लाटिंग कर बेचने की कोशिश करने वाले बिल्डर, उनके पार्टनरों के राजनीतिक रसूख के चलते छोटी शिकायतों पर तो पुलिस और नगर निगम में कार्रवाई की, लेकिन जिस जमीन पर बड़े भू-माफियाओं के नाम जुड़े निकले, उन शिकायतों को जांच के नाम पर या तो रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया या फिर पीडि़त पक्ष को कोर्ट जाने की सलाह देकर जिम्मेदारों ने अपने हाथ खींच लिए।

सरकारी जमीन बेचने का चल आ रहा खेल: खाली जमीनों-प्लाटों पर बिल्डरों का कब्जा रायपुर जिले में पिछले कई सालों से दूसरे की खाली और सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचने का खेल चला आ रहा है। खासकर शहर के आउटर इलाके की खाली जमीन छोटे-बड़े बिल्डरों के निशाने पर है। प्रशासन चाहकर भी इस पर लगाम कसने में नाकाम है। हालांकि, कुछ शिकायतों पर नगर निगम अमले ने कार्रवाई भी की है, लेकिन ये वह जमीन है, जो सरकारी है। आम लोगों की जमीन पर कब्जे की शिकायतों पर न तो पुलिस कार्रवाई कर रहा है और न ही प्रशासन ही कारगर कदम उठा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बिल्डरों ने सत्तापक्ष के नेताओं को भी साध रखा है। यही वजह है कि करोड़ों की जमीन हथियाने का खेल आउटर इलाके में चल रहा है।

हालांकि टॉउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने लिखकर वे 2007-08 के बाद जितनी भी कॉलोनियों के लेआउट पास हुए हैं, उनकी बारीकी से जांच करने का कहा था। लेकिन जाँच का रिज़ल्ट अभी तक लोगों को पता नहीं चल पाया। जांच के नाम पर राजधानी के आधा दर्जन से अधिक बड़े बिल्डरों की कॉलोनियों के लेआउट प्लान की जांच की बात कही गई थी।

जाच हुई जरूर लेकिन बड़ी मछली जाल तोड़कर भागने में कामयाब हो गई और छोटी मछली फंस गई। कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग अवैध प्लाटिंग को लेकर सबसे ज्यादा खेल आउटर इलाके में किया जा रहा है। 25 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को ग्रीनलैंड में तब्दील करने का पर्दाफाश हुआ था। वहां कई लोगों ने सरकारी और घास जमीन पर अवैध प्लाटिंग और कब्जा कर लोगों को बेचने की कोशिश की थी।

इन सभी जगहों की जमीन पर निगम ने बाउंड्रीवाल बनाकर उसे ग्रीनलैंड में तब्दील किया था। जिस कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग की गई है, खेती की जमीन पर अवैध प्लाटिंग होने पर पूरे क्षेत्र की जमीन को फिर से ग्रीनलैंड में बदला जाएगा। मास्टर प्लान में जो क्षेत्र कृषि या आमोद-प्रमोद का है और वहां अवैध प्लाटिंग की गई है उसे फिर से ग्रीनलैंड में तब्दील किया जाएगा। फर्जी दस्तावेज तैयार कर दूसरों की खाली जमीनों को जानबूझकर बिल्डर विवादों में लाते हैं। जमीन मालिक उस जमीन को खोने के डर से विवश होकर सस्ती दरों पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में मध्यस्थता निभाने के लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि या बड़े छुटभैय्ये नेता आगे आते हैं। उनके द्वारा इन जमीनों को अपने खास लोगों को सस्ती दरों पर दिलवा दिया जाता है। इस तरह से महंगी जमीन भी सस्ती दर पर भू-माफियाओं को मिल जाती है।

ऐसी कई शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती है, जिसमें जमीन पर जानबूझकर कब्जा करने या उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का मामला सामने आता है। पुलिस ऐसे लोगों को चिह्नित जरूर करती है, लेकिन उन पर कार्रवाई करने में सालों लगा देती है। मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता में किसी खबर को छपवाने अथवा खबर को छपने से रूकवाने का अगर कोई व्यक्ति दावा करता है और इसके एवज में रकम वसूलता है तो इसकी तत्काल जानकारी अखबार प्रबंधन और पुलिस को देवें और प्रलोभन में आने से बचें। जनता से रिश्ता खबरों को लेकर कोई समझोता नहीं करता, हमारा टैग ही है- जो दिखेगा, वो छपेगा...

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