किसानों को पीछे की जमीन औने-पौने दाम पर बेचने मजबूर कर रहे जमीन माफिया
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में मुख्य मार्गों की जमीनों की खरीदी को लेकर कोई प्लानिंग करें या न करें बिल्डरों ने इस पर बहुत पहले ही प्लानिंग कर मुक्य मार्गो की ऐसी जमीन और उससे लगे जमीन तथा उसके पीछे की जमीन को खरीदने में एड़ी चोटी एक कर दी थी। इसके पीछे बिल्डरों का एक ही स्वार्थ था कि फ्रंट की जमीन कैसे भी करके खरीद लो बैक वाली जमीन तो मालिक खुद-ब-खुद बेच देगा और वहीं हो रहा है। बिल्डरों ने राजधानी के नामचीन मुक्य मार्गों की फ्रंट की जमीन को बहुत पहले खरीदने के लिए जोड़-तोड़ कर लिया था। जिससे आबादी बढऩे और शहर का विकास होने के साथ यह उनका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बन जाएगा। जमीन सरकारी हो या निजी बिल्डरों ने राज्य बनते ही धड़ाधड़ जमीनों की खरीदी में निवेश किया। आज राजधानी विकास मोड पर है, चारों तरफ मल्टी स्टोरी कामर्शियल काम्प्लेक्स के साथ बड़े बड़े मॉल तैयार हो रहे है। बिल्डरों ने बड़ी चतुराऊ से विवादित जमीनों की खरीदी की और उसे अपने स्तर पर निपटारा भी कर लिया। सारे रिहायशी जमीनों को कामर्शियल में बदल कर सरकार को करोड़ों का चूना लगाने का खेल में बहुत आगे निकल गए। सारे वैध-अवैध दस्तावेजों को अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर एनओसी तक ले ली है। रजिस्ट्री भी रिहायशी मकान बनाने के लिए की है, और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स बेकौप होकर बनाया जा रहा है। जिसके कारण राजधानी में धड़ाधड़ कामर्शियल काम्प्लेक्स बनते जा रहे है। बिल्डरों ने सोची समझी साजिश के तहत आत से 20 साल पहले मुख्य मार्गो की जमीनों को खरीदी कर उसे अपने एम्पायर में जोड़ लिया। जो जमीन बेचने में आनाकानी करते थे उनके पीछे दलालों को लगा दिया और सौदा कर लिया। इस खरादी में बिल्डरों ने एक खेल यह खेला कि मार्के की जमीन दलालों के माध्यम से फ्रंट की जितनी भी जमीन थी और उससे लगी जमीन का भाव दबाव बनाकर गिराकर खरीदी की। एक तरफ जिसकी जमीन थी, उस पर दो जमीनों के बीच फंसी जमीन का वास्ता देकर औने-पौने में सौदा किया। फिर उस जमीन को फ्री छोड़ दिया। मुख्य मार्ग से लगे जमीन को छोड़कर अंदर की जमीन का लेआउट पास कराया और दोनों जगह कंस्ट्रक्शन काम शुरु करवा दिया।
निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की मिली भगत
कुछ दिनों बाद फिर बिल्डर निगम और टाउनएंड कंट्री प्लानिंग की मिली लेआउट पास कराया और उसमें कामर्शियल बिल्डिंग तान कर सरकार का करोड़ों का राजस्व नुकसान किया। इसी तरह अधिकतर उद्योग मालिकों में कुछ लोगों का कंस्ट्रक्शन का काम भी साइड बिजनेस के रूप में कर रहे है। जो अपने उद्योग के लिए रियायती दर पर जमीन खरीदी उस पर बहुमंजिला बिल्ंिडग बना कर बेच रहे है। इस तरह सरकार ने जिस मद में जमीन दी उसका खुलेआम उल्लंघन कर रहे है। उद्योगपतियों ने सरकार को दोहरा चूना लगाने के खेल चल रहा है।
10 साल पहले छूट में जमीन ली, न उद्योग लगाया न स्टांप फीस अदा की
उद्योग खुलने से रोजगार बढ़ेंगे इसलिए 90 कंपनियों को स्टांप शुल्क बाद में चुकाने की दी गई थी छूट लेकिन 22 ने केवल घेरे बंदी कर जमीन को खाली छोड़ दिया। उद्योग खुलने से रोजगार बढ़ेंगे इसलिए 90 कंपनियों को स्टांप शुल्क बाद में चुकाने की दी गई थी छूट लेकिन 22 ने केवल घेरे बंदी कर जमीन को खाली छोड़ दिया।
रायपुर में 10 साल पहले सरकारी राहत लेकर नए उद्योग के लिए जमीन लेने वाले 22 कंपनियों की रजिस्ट्री रद्द करने की तैयारी है। इन कंपनियों ने स्टांप शुल्क तुरंत अदा न करने की राहत लेकर जमीन ली थी। कंपनियों को पांच साल के भीतर उद्योग स्थापित करने के साथ स्टांप शुल्क अदा करना था। मियाद की अवधि गुजरे भी पांच साल हो गए लेकिन कंपनी प्रबंधकों ने न तो उद्योग स्थापित किया और न ही स्टांप ड्यूटी अदा की है। ऐसे कंपनियों की लिस्ट बनाकर उन्हें नोटिस जारी कर दिया गया है।
जांच में ये भी खुलासा हुआ है कि 50 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने उद्योग तो लगाया लेकिन स्टांप शुल्क की अदायगी नहीं की। अब इन सभी कंपनियों पर सख्ती की तैयारी है। जिला रजिस्ट्री विभाग ने इन सभी उद्योगों की पहचान कर उद्योगपतियों को दो टूक कहा जा रहा है कि वे जल्द से जल्द स्टांप शुल्क की अदायगी करें नहीं तो उनकी रजिस्ट्री शून्य कर दी जाएगी। राजधानी में यह अपनी तरह का अलग मामला है।
जिन्हें जमीनें आवंटित की गईं उनमें ज्यादातर बाहरी राज्यों की कंपनियां
उद्योग लगाने के लिए जिन कंपनियों को रायपुर जिले में जमीन का आवंटन किया गया है उनमें ज्यादातर दूसरे राज्यों की कंपनियां हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों की कंपनियों ने रायपुर जिले में जमीन तो ले ली, लेकिन उसमें उद्योग नहीं लगाए। अधिकतर कंपनियों ने इन जमीनों पर बाउंड्रीवॉल करवा ली है ताकि उनकी जमीन पर किसी भी तरह का कोई कब्जा न हो। दस साल बाद भी उद्योग नहीं लगाने वाले उद्योगपतियों का जमीन आवंटन भी रद्द किया जा सकता है। इसके लिए संबंधित शासकीय विभाग ने कागजी प्रक्रिया शुरू कर दी है। नवा रायपुर में भी कई रियल एस्टेट बिल्डर और बाहरी राज्यों की कंपनियों को किया गया जमीन का आवंटन रद्द किया जा रहा है। इन्होंने भी जमीन लेने के बाद अपने प्रोजेक्ट शुरू नहीं किए।
1 प्रारंभिक जांच में पता चला है कि उद्योगों पर स्टांप शुल्क का 10 करोड़ से ज्यादा बकाया है। इन कंपनियों के प्रबंधकों ने रजिस्ट्री तो करा ली, लेकिन स्टांप शुल्क अब तक नहीं दिया गया। लगातार नोटिस और चेतावनी के बाद भी ये उद्योग बकाया स्टांप शुल्क का भुगतान नहीं कर रहे हैं।
यह वजह है कि इन उद्योगों को नोटिस जारी की जा रही है। अफसरों से मिली जानकारी के अनुसार जिन उद्योगों को नोटिस जारी की जा रही है उन्हें एक से तीन महीने का समय दिया जा रहा है। तय समय में स्टांप शुल्क की अदायगी नहीं की गई तो रजिस्ट्री शून्य करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
जिला पंजीयन विभाग की ओर से 3 साल पहले भी करीब दो दर्जन उद्योगों को नोटिस जारी की गई थी। उनमें से कई ने स्टांप शुल्क भी अदा किया था। बाद में सख्ती नहीं होने से बाकी बकायादारों ने शुल्क जमा नहीं किया। जिन उद्योगों को नोटिस दी गई है उनमें से ज्यादातर की जमीन मंदिरहसौद, आरंग, सारागांव, दोंदे, सिलतरा, धरसींवा आदि में स्थित है। इन उद्योगों को एकड़ों में जमीन दी गई है। कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें नवा रायपुर में भी जमीन मिली है। अफसरों का दावा है कि शुल्क की हर हाल में वसूली की जाएगी। कई कंपनियां ऐसी हैं जिनसे 50 लाख से 1 करोड़ तक की भी वसूली की जानी है।
जिला पंजीयक विभाग की ओर से जैसे ही नोटिस भेजने का सिलसिला शुरू किया गया, इसके विरोध में कुछ कंपनियां कोर्ट में चली गई हैं। उन्होंने कई कारणों से उद्योग शुरू नहीं होने का हवाला दिया है। स्टांप शुल्क देने के लिए अतिरिक्त समय की मांग करने के साथ ही शुल्क माफी की भी याचिका लगाई गई है। कुछ कंपनियों को नोटिस के खिलाफ कोर्ट का स्टे भी मिल गया है।
रेरा एप्रूव्हड प्रोजेक्ट को ही बैंकों से लोन उपभोक्तााओं के 1496 शिकायतों का निपटारा
छत्तीसगढ़ भू-सम्पदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के अध्यक्ष विवेक ढांड ने बैंकर्स, चार्टड एकाउन्टेड तथा बिल्डर्स की बैठक ली। राजधानी के न्यू सर्किट हाउस में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए श्री ढांड ने कहा कि बैंक उन्हीं हाउसिंग प्रोजेक्ट को प्राथमिकता से ऋण प्रदान करें जो रेरा द्वारा पंजीकृत हो। साथ ही बैंक उपभोक्ताओं को भी रेरा में पंजीकृत संपत्तियों को आसानी से तथा प्राथमिकता से ऋण प्रदान करें ताकि अपंजीकृत प्रोजेक्ट से आम उपभोक्ता बचे। ऐसे अपंजीकृत प्रोजेक्ट में निवेश करना जोखिम भरा होता है। श्री ढांड ने रेरा एक्ट के महत्व एवं क्रियान्वयन को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे देश में रियल स्टेट सेक्टर में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है इसका देश के जीडीपी में 6 प्रतिशत का योगदान था आने वाले 6-7 वर्षों में यह योगदान 10 प्रतिशत हो जाएगा। उन्होंने कहा रेरा के गठन के पहले छत्तीसगढ़ के रियल स्टेट सेक्टर में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की कमी थी परन्तु इसके गठन के पश्चात उत्तरदायित्व में वृद्धि हुई है। केन्द्र सरकार और मानवीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद रियल स्टेट सेक्टर को नियमित करने की आवश्यकता समझी गई इससे ही रेेरा एक्ट का जन्म हुआ।
उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में आम लोगों की आय बढऩे से हाउसिंग सेक्टर में भी वृद्धि होगी। रेरा ने रियल स्टेट सेक्टर को नियमित करने का कार्य किया है जिससे ग्राहकों और निवेशकों को कोई परेशानी न हो। इससे इस क्षेत्र में पारदर्शिता आई है। रियल स्टेट सेक्टर में पारदर्शिता आने से निजी क्षेत्रों में विश्वसनीयता बढ़ी है, इससे उपभोक्ता प्राइवेट बिल्डर्स के साथ-साथ हाउसिंग बोर्ड के मकानों में रूचि दिखा रहे है।
श्री ढांड ने कहा इस बार छत्तीसगढ़ सरकार रियल स्टेट सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। जमीन की गाइडलाइन पिछले तीन वर्षों से नहीं बढ़ाई गई है। उन्होंने कहा कि रेरा हर हाउसिंग प्रोजेक्ट पर बारीकी से नजर रखता है जिससे उपभोक्ता की रूचि हाउसिंग बोर्ड और निजी क्षेत्र के प्रोजेक्ट पर बनी रहे। रेरा द्वारा अनुमोदित प्रोजेक्ट गुणवत्ता मानक के रूप में माने जाते है। श्री ढांड ने कहा उपभोक्ताओं की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की जाती है। अभी तक 1496 शिकायतों का निवारण हो चुका है। रेरा डिजिग्नेटेड अकाउंट के माध्यम से हर प्रोजेक्ट पर नजर रखी जाती है। बैंकर्स और सीए की मदद से सुनिश्चित किया जाता है कि जो पैसा रेरा डिजिग्नेटेड अकाउंट में स्थानांतरित किया गया है वो सिर्फ प्रोजेक्ट के कार्यों के लिए ही उपयोग हो।
श्री ढांड ने छत्तीसगढ़ आवास योजना (सिंगल विंडो सिस्टम) के महत्व के संबंध में भी बताया। पहले इससे जुड़े प्रोजेक्ट की अनुमति प्राप्त करने में करीब 18 महीने लग जाते थे अब 6 महीने में अनुमति मिल जाती है। उन्होंने छत्तीसगढ़ रेरा की वेबसाइट के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि यह वेबसाईट आम लोगों के अनुकूल है और यह कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। इस कार्यक्रम में रेरा अकाउंट की ओपनिंग, रेरा डिजिग्नेटेड अकाउंट के प्रबंधन और प्रोजेक्ट से फाइनेंस पर चर्चा की गई। साथ ही बैंकर्स, चार्टड एकाउंटेड, बिल्डर्स के रेरा एक्ट के संबंधित शंकाओ का समाधान किया गया। इस कार्यक्रम को श्रीमती शीतल वर्मा निदेशक संस्थागत वित्त ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में रेरा की रजिस्ट्रार डॉ. अनुप्रिया मिश्रा, श्रीमती दीपा कटारे न्याय निर्णायक अधिकारी छत्तीसगढ़ रेरा, श्री राधाकृष्ण राव एसएलबीसी कन्वेनर तथा अन्य अतिथिगण उपस्थित थे।
जिन कंपनियों ने स्टांप शुल्क अदा नहीं किया है उनसे बकाया शुल्क और उस पर अब तक का ब्याज वसूला जाएगा। ऐसे सभी उद्योगों की पहचान कर ली गई है। शुल्क अदा न होने पर रजिस्ट्री शून्य करने की भी कार्रवाई की जाएगी।
बीएस नायक, वरिष्ठ मुख्य पंजीयक रायपुर
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