बिल्डर, भू-माफिया अवैध धंधा करने वालों का भी न्यूज पोर्टल!
- दबंगई, दादागिरी और राजनीतिक धौंस दिखाकर ले रहे सरकारी विज्ञापन
- पोर्टलों की बाढ़ और अधिकारियों की मिलीभगत से जनसंपर्क विभाग को लग रहे करोड़ों का चूना
- प्रदेश में गुंडे-बदमाश और अपराधियों ने सरकारी विभाग के अधिकारियों को ब्लेक मेल करने चालू किया न्यूज पोर्टल
- साप्ताहिक अखबारों को सरकार ने विज्ञापन देना बंद किया तो अधिकारियों ने उन्हें ज्ञान देकर पोर्टल खुलवा दिया
- भाजपा शासनकाल में पोर्टलों को बिना भौतिक सत्यापन के मिले करोड़ों के विज्ञापन
- भूपेश सरकार बनने के बाद भी माफिया पोर्टलों का वर्चस्व जनसपंर्क विभाग में बरकरार
- जनता से रिश्ता लगातार सरकार के संज्ञान में लाने मुद्दे को उठाते रही
- फर्जी यूजर संख्या कम होने के बाद भी उन पोर्टलों को भाजपा शासनकाल से जमे अधिकारी और बाबू कर रहे उपकृत
- वहीं जिन पोर्टलों के देशभर में वास्तविक सबक्राइबर सबसे ज्यादा है उन पोर्टलों को अधिकारी उपेक्षा कर रहे
- भाजपा शासन के बाद सरकार बदलते ही प्रदेश में न्यूज पोर्टलों की भीड़ बढ़ी
- सरकार के निर्देश के बाद भी अधिकारी नहीं कर रहे पोर्टलों का भौतिक सत्यापन
- अधिकारियों और नेताओं के सबसे ज्यादा पोर्टल - सरकार किसी की भी हो छुटभैया नेताओं और अधिकारियों के परिजनों के हितों को कोई भी नहीं रोक सकता, क्योंकि अधिकारियों ने ही सरकार बदलने के साथ सत्ता से जुड़े छुटभैया नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़े उनके दूरदराज के रिश्तेदारों को पोर्टल खोलने की सलाह देने के साथ पोर्टल बनवाने में मदद की। सरकार बदलने पर अधिकारियों और नेताओं लगने लगा था कि उनकी कमाई में ब्रेक लग जाएगी ऐसे कमाई को बदस्तूर जारी रखनेके लिए हाथपार मार रहे थे, ऐसे हालात में छुटभैया नेताओं और अधिकारियों के परिजनों ने मिलकर एक सिंडिकेट बनाया और जनसंपर्क में पदस्थ अधिकारियों से सलाह ली जिससे दोनों पक्षों का काम आसानी से चल सके। इस पर अधिकारियों ने अपने नफा नुकसान का ध्यान रखते हुए शार्टकट रास्ता न्यूज पोर्टल शुरू करने का दिया। सत्ता के बदलते ही अधिकारियों ने साप्ताहिक अखबार वालों के साथ छुटभैया नेताओं और अधिकारियों के परिजनों को न्यू पोर्टल को धड़ाधड़ अनुमोदित करते हुए पूर्ववत विज्ञापन देने का सिलसिला जारी रखा जो आजतक जारी हो रहे है।
- हद तब हो गई जब फर्जी पत्रकारों और छ़ुटभैय्या वेब पोर्टल के मालिकों ने मिलकर एक संगठन बनाया और जनसंपर्क विभाग के खिलाफ मोर्चे बाजी शुरू कर दी। अब ये लोग किसी एक बड़े वेब साईट के जुगाड़ मे मिले विज्ञापन के आरो के सहारे सूचना के अधिकर के तहत दस्तावेज ले कर हाईकोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। जनता से रिश्ता के संवाददाता से बातचीत में फर्जी पत्रकार वेब पोर्टल संगठन के कर्ता-धर्ता ने बताया की प्रदेश के कुछ चर्चित 3-4 न्यूज वेब पोर्टलों को 5 लाख तक का प्रति माह राईटअप विज्ञापन मिलता है। जैसे ही हमे इसके सबूत मिल जाऐंगे इसकी उच्चस्तरीय शिकायत करने के साथ हाईकोर्ट मे भी याचिमा लगाई जाएगी।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। सरकार बदले या नहीं बदले हेराफेरी करने वाले अधिकारियों और बाबुओं की चापलूसी वाला चरित्र कभी नहीं बदलता। जिसकी सरकार आई उसकी ओर पल्टी मारकर विभागों में कुंडली मारकर बैठने में माहिर अधिकारी और बाबुओं के सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ता। अधिकारी अपने करीबियों और रसूखदार छुटभैया नेताओं को ऐनकेन प्रकारेण उपकृत करने का रास्ता निकाल कर अपना उल्लू सीधा कर ही लेते है। पिछले तीन सालों में भाजपा सरकार के पतन के बाद भी भाजपा सरकार के खासमखास रहे अधिकारी कांग्रेस सरकार में उन तमाम लोगों को लाभ पहुंचा रहे जो अपात्र है और जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। मोबाइल से न्यूज पोर्टल चलाकर वाट्सएप के जरिए पोर्टलों में न्यूज पोस्ट करने की चलती फिरती दुकान चला रहे है। कांग्रेस सरकार ने जो नीति बनाई है उसमें भी भाजपा सरकार में जनसंपर्क विभाग में पदस्थ रहे अधिकारियों ने भाजी मारकर नियमों में उलटफेर कर अपने करीबियों को मालामाल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है। शायद बड़े अधिकारियों के संज्ञान में यह बात नहीं आई कि फर्जी सबक्राइबर वालों को अधिकारी और बाबू अनुचित लाभ पहुंचा रहे है या फिर जैसा चल रहा वैसा चलने देने की नीति अपनाकर बड़े अधिकारी जानबूझ कर गड़बडिय़ों की अनदेखी कर रहे है और इस अनदेखा का खामियाजा सरकार को करोड़ों रुपए लूटा कर उठाना पड़ रहा है। आनलाइन आवेदन के जरिए आवेदनों पर बड़े अधिकारी छोटे अधिकारी और बाबुओं के बिहाफ पर नोटशीट में धड़ाधड़ मंजूरी कर रहे है। जिसका कोई स्थायी पता ठिकाना नहीं ऐसे पोर्टलों के आवेदनों को सरकारी नियम कायदे को ताक में रखकर फर्जियों को लाभ पहुंचाने का खेल जनसंपर्क और संवाद में चल रहा है। क्योंकि ये सभी भाजपा शासन काल से अनुमोदित हुए न्यूज पोर्टल है जिसका कभी भौतिक सत्यापन ही नहीं हुआ। सरकार बदलने के बाद विज्ञापन नीति तो बदली लेकिन वहां के बाबू और अधिकारी नहीं बदले गए जिसके कारण वहां के अधिकारी और बाबुओं ने इंटरनल सिंडिकेट चला रहे है। जिसमें उनके करीबियों को भाजपा शासन की तर्ज पर कांग्रेस सरकार में भरपूर दोहन का मौका मिल रहा है।
सरकारी नियम कानून को ताक में रखकर मंजूरी का खेल
जिन पोर्टलों के बमुश्किल सौ लोग भी सबक्राइबर नहीं है उन पोर्टलों को सरकारी खजाने से लाखों के विज्ञापन जारी हो रहे है, वहीं जिन पोर्टलों के लाखों की संख्या में सबक्राइबर है उन पोर्टलों को नियम कानून कायदे का पाठ पढ़ाकर विज्ञापन देने की नीति समझा कर एक महीने में एक या दो विज्ञापन 5-5 हजार के दिए जा रहे है। जनसंपर्क में बैठे बड़े और वरिष्ठ अधिकारी अपने सहयोगी अधिकारियों और बाबुओं के व्दारा फाइल प्रस्तुत करने पर धड़ाधड़ आख मूंदकर विज्ञापनों की मंजूरी कर रहे है। जनसंपर्क विभाग में विज्ञापन देने के नियम कायदे को बाबुओं ने अपने बिसाब से बना रका है. वहीं तय करते है कि किसको कितने का विज्ञापन जारी करना है। ऊपर से अधिकारियों को भी समझा देते है कि सभी आवेदन ऑनलाइन आए है, और सभी न्यू पोर्टल पहले से ही अनुमोदित है। बड़े अधिकारी भी छोटे अधिकारियों और बाबुओं की बात मानकर या उनके साथ हां में हां मिलाकर नियम कानू को ताक में रखकर पोर्टलों के बहाने छुटभैया नेताओं और अधिकारियों के परिजनों को लाभ पहुंचाने का खेल खेल रहे है।
आरएनआई में पंजीयन नहीं
प्रदेश में न्यू पोर्टलों की बाढ़ सी आ गई है। पूरे प्रदेश में न्यूज पोर्टल वाले तथाकथित आईडी लेकर घूम रहे है। जिनका पंजीयन भारत सरकार के दिल्ली स्थित पंजीयन कार्यालय में पंजीयन तक नहीं हुआ है। पार्टल वाले जिला मुख्यालयों में जिला कलेक्टर और तहसीलदार को ब्लेक मेलिंग कर रहे है। जिस पर सरकार और जिला प्रशासनिक अधिकारियों का कोई नियंत्रण नहीं है। सरकारी नियम कानून के तहत न्यू पोर्टलों का आरएनआई में पंजीयन अनिवार्य है, जिसकी जांच तक नहीं हो रही है। जिला के अधिकारी, एसपी-सीईओ, तहसीलदार उन न्यू पोर्टल वालों के कंधे में हाथ रखकर उनके ब्लेकमेलिंग के खेल को बढ़ावा दे रहे है।
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